पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के ऐसे राजनेता हैं, जिनका सम्मान विरोधी पार्टियां भी करती हैं। देश का कोई राजनेता हो या आम आदमी, उनके नाम के आगे ‘जी’ जरूर लगाता है। आमतौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को ‘वाजपेयी जी’ के नाम से ही संबोधित करते हुए सुना जाता है। उनका राजनीतिक व्यक्तित्व न सिर्फ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए, बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं के लिए भी प्रेरणास्रोत है। उनके अंदर राजनीतिक विरोध की आवाज को भी समाहित करने की गजब की क्षमता थी। अपने सक्रिय राजनीतिक कॅरियर के दौरान वे जितना अपनी पार्टी में लोकप्रिय थे, उतना ही विरोधी खेमे में भी थे। राजनीति में आने से पहले वाजपेयी पत्रकार थे। पत्रकार से पॉलिटिक्स में कदम रखने की उनकी कहानी दिलचस्प है। 25 दिसंबर यानी आज उनका जन्मदिन है। आइये जानते हैं उनकी जिंदगी की इस दिलचस्प कहानी के बारे में।
दिल्ली में पत्रकार के रूप में करते थे काम
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 1953 में वे दिल्ली में पत्रकार के रूप में काम कर रहे थे। इस दौरान भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के खिलाफ थे। वाजपेयी बताते हैं कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए जम्मू-कश्मीर चले गए। पत्रकार के नाते वाजपेयी उनके साथ थे। परमिट सिस्टम के तहत किसी भी भारतीय नागरिक को जम्मू-कश्मीर में बसने की अनुमति नहीं थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर जाने के लिए हर भारतीय नागरिक के पास पहचान पत्र होना जरूरी था। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के खिलाफ थे।
डॉ. मुखर्जी की अस्पताल में हो गई मौत
इंटरव्यू में वाजपेयी ने बताया, ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर आंदोलन के सिलसिले में परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर गए थे। पत्रकार के नाते मैं उनके साथ था। वो गिरफ्तार कर लिए गए, हमलोग वापस आ गए। डॉ मुखर्जी ने मुझसे कहा, वाजपेयी जाओ और दुनियावालों को कह दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं, बिना किसी परमिट के। थोड़े ही दिन बाद ही कश्मीर में नजरबंदी की अवस्था में, सरकारी अस्पताल में डॉ. मुखर्जी की मौत हो गई।
इस घटना ने वाजपेयी को राजनीति में आने के लिए किया प्रेरित
इस घटना ने वाजपेयी जी को बेहद दुखी किया और इसी घटना ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। इसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि मुझे लगा कि मुझे डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए। इसके बाद पत्रकार अटल बिहारी वाजपेयी ने पॉलिटिक्स में कदम रखा। सन् 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार सांसद बनकर लोकसभा में पहुंचे। 1996 में वे पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी सरकार मात्र 13 दिनों तक चली। 1998 में वे दोबारा प्रधानमंत्री बने और 2004 तक इस पद पर रहे…Next
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