अमेरिका ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे अपने दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम में स्थानांतरित कर देंगे। ट्रंप ने अमेरिकी प्रशासन को इस बारे में निर्देश देते हुए कहा है कि इजरायल के तेल अवीव स्थित अमेरिकी दूतावास को यरुशलम ले जाने की प्रक्रिया शुरू की जाए। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वे यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देंगे। उन्होंने वादा किया था कि वे अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम शिफ्ट करेंगे। ट्रंप के इस कदम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के साथ-साथ अमेरिका में भी विरोध हो रहा है। आइए आपको बताते हैं कि क्यों इतना संवेदनशील है यरुशलम का मुद्दा और क्या है विवादों की वजह।
यहूदी, मुस्लिम और ईसाई मानते हैं पवित्र शहर
यहूदी, मुस्लिम और ईसाई, तीनों ही धर्म के लोग भूमध्य और मृत सागर से घिरे यरुशलम को पवित्र मानते हैं। यहां की आबादी 8.82 लाख है, जिसमें 64 फीसदी यहूदी, 35 फीसदी अरबी और एक फीसदी अन्य धर्मों के लोग रहते हैं। इस ऐतिहासिक शहर में मुस्लिम, यहूदी और ईसाई समुदाय की धार्मिक मान्यताओं से जुड़े प्राचीन स्थल हैं। यहां स्थित टेंपल माउंट यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है और अल-अक्सा मस्जिद को मुस्लिम समुदाय के लोग पाक मानते हैं। मुस्लिमों की मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद वही जगह है, जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। वहीं, कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि यरुशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां स्थित सपुखर चर्च को ईसाई बहुत पवित्र मानते हैं।
दोनों देश बताते हैं अपनी राजधानी
इजरायल और फिलिस्तीन, दोनों ही देश यरुशलम को अपनी राजधानी बताते हैं। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के ज्यादातर देश पूरे यरुशलम पर इजरायल के दावे को मान्यता नहीं देते। 1948 में इजरायल की आजादी की घोषणा के एक साल बाद 1949 में यरुशलम का बंटवारा हुआ। इसमें यरुशलम का पश्चिमी हिस्सा इजरायल और पूर्वी हिस्सा जॉर्डन को मिला। 1967 में 6 दिनों तक चले युद्ध के बाद इजरायल ने पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इस शहर को इजरायल का प्रशासन चला रहा है। मगर फिलिस्तीन पूर्वी यरुशलम को भविष्य की अपनी राजधानी के रूप में देखता है।
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तेल अवीव में ही इतने देशों के दूतावास
1980 में इजरायल ने यरुशलम को अपनी राजधानी बनाने का एलान किया, जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास कर पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की निंदा की। इसी वजह से यरुशलम में किसी भी देश का दूतावास नहीं है। जो देश इजरायल को मान्यता देते हैं, उनके दूतावास तेल अवीव में हैं। तेल अवीव में कुल 86 देशों के दूतावास हैं।
1995 में यूएस कांग्रेस ने पास किया था कानून
अमेरिका का दूतावास यरुशलम में कभी नहीं रहा। हालांकि, 1995 में यूएस कांग्रेस ने एक कानून पास किया था, जिसके तहत अमेरिका को तेल अवीव स्थित अपने दूतावास को यरुशलम शिफ्ट करना था। मगर 1995 से लेकर अभी तक हर अमेरिकी राष्ट्रपति अपना दूतावास यरुशलम शिफ्ट करने से बचते रहे। इसके पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दिया जाता रहा और यूएस कांग्रेस में पास हुए कानून के अमल पर रोक लगाती रही।
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ट्रंप के कदम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध
अमेरिकी दूतावास को यरुशलम शिफ्ट किए जाने की ट्रंप की योजना से फिलिस्तीनियों में नाराजगी है। वे पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी मानते हैं। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वे ऐसा करता है, तो इससे क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ जाएगी। सऊदी अरब के किंग सलमान ने ट्रंप से कहा है कि यह विश्व में मौजूद मुस्लिमों के लिए निंदनीय होगा। चीन ने पूरे पश्चिम एशिया में हालात खराब होने की आशंका जताई है। ब्रिटेन ने भी इसे चिंताजनक बताया है। कई अन्य देशों ने भी ट्रंप से अपील की है कि वे इस तरह की घोषणा न करें। ज्यादातर देशों को इस बात की आशंका है कि ट्रंप के फैसले से दुनिया में एक बड़ा विवाद छिड़ सकता है। इस मुद्दे को लेकर फ्रांस, मिस्र और ब्रिटेन सहित आठ देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक भी बुलाई है…Next
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