भारतीय जनता पार्टी के सबसे काबिल राजनेता कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी आज 90 साल के हो गए हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का वो दौर भी था जब आडवाणी भाजपा के पितामह कहलाते थे। लाल कृष्ण आडवाणी जिधर चलते थे उधर आंधी चलती थी। जय-जयकार होती थी और उन्हीं की गूंज भी। तब नारा दिया जाता था- ‘गूंज रही है नभ में वाणी-आडवाणी आडवाणी…।’
पाकिस्तान के कराची में हुआ जन्म
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को उस समय के एकीकृत हिन्दुस्तान के कराची शहर में हुआ। लालकृष्ण आडवाणी का सिंधी में नाम लाल किशनचंद आडवाणी है।कराची के सेंटर पैट्रिक्स हाई स्कूल और सिंध में हैदराबाद के डीजी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई करने वाले आडवाणी ने बंबई युनिवर्सिटी के गवर्मेंट लॉ कालेज से स्नातक किया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तौर पर शुरु का करियर
आडवाणी को 1947 में कराची में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सचिव बनाया गया। इसके साथ ही उन्हें मेवाड़ भेजा गया, जहां सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। 1951 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की तो आडवाणी इसके सदस्य बन गए। जनसंघ में कई पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आडवाणी 1972 में इसके अध्यक्ष चुने गए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की मिली जिम्मेदारी
जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के बाद आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में लोकसभा चुनाव लड़ा। केन्द्र में जब पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी, जनता पार्टी की सरकार बनी तो आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई।
भारतीय जनता पार्टी के रहे अध्यक्ष
जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी बनी तो आडवाणी इसके प्रमुख नेताओं में थे और उन्हें राज्यसभा में विपक्ष का नेता चुना गया। 1986, 1993 और 2004 में आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अध्यक्ष चुना गया। कभी उनकी एक झलक पाने और नजर-ए-इनायत के लिए कार्यकर्ता और पदाधिकारी और बड़े-बडे़ नेता धक्के खाते थे।
राम मंदिर के आंदोलन में शामिल थे आडवाणी
1989 में बीजेपी ने आडवाणी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। जिसकी परिणति 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस के रूप में सामने आई। राम मंदिर के आंदोलन में आडवाणी की बहुत बड़ा योगदान था, उन्होंने जो रथ यात्री की थी उसे आज भी याद किया जाता है। गुजरात से निकली ये रथ यात्रा पूरे भारत में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही थी।
2005 में छोड़ा पार्टी अध्यक्ष का पद
2004 में अटलबिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद आडवाणी बीजेपी के सबसे बड़े और प्रमुख नेता बन गए। दिसंबर 2005 में मुंबई में आयोजित बीजेपी के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया और राजनाथ सिंह को बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया।
कभ बीजेपी के लक्ष्मण कहे जाते थे आडवाणी
एक समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का राम और आडवाणी को लक्ष्मण कहा जाता था। साल 2002 से 2004 के बीच आडवाणी देश के उप-प्रधानमंत्री रहे। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा।
बेहद फीका रहा जन्मदिन
कभी पार्टी के जान कहे जाने वाले आडवाणी का जन्मदिन बेहद फीका रहा, आडवाणी शनिवार की शाम काशी में अपने 90वें जन्मदिन पर बहुत तन्हा और अकेले से थे। न पार्टी के दिग्गजों का आसपास जमावड़ा था, न कार्यकर्ताओं में मिलने की होड़। आडवाणी अपनी बेट के साथ काशी के तट पर बैठे थे।
90 साल के हुए आडवाणी
बहुत ही सादगी के साथ आडवाणी ने भोले की नगरी में अपना 90 वां जन्मदिन देव दीपावली के अवसर पर खिड़किया घाट पर मनाया। इस खास मौके पर बस वो थे और उनकी बेटी प्रतिभा। बाकी पार्टी के गिनती के पदाधिकारी, एक मंत्री और चंद लोग।…Next
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