ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक को प्रधानमंत्री बनते देखा। वे 1952 की पहली लोकसभा के सदस्य बने। 94 वर्ष की उम्र में सन् 2014 में राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने पर राजनीति को अलविदा कह दिया। मगर उस वक्त वे बहुत दुखी थे। उन्होंने कहा था कि यह वो संसद नहीं है, जिसे मैं जानता था। वे सात बार विधायक रहे और चार बार मणिपुर के मुख्यमंत्री बने। आज यानी 25 अक्टूबर को रिशांग कीशिंग का जन्मदिन है। आइये जानते हैं उनके बारे में खास बातें।
16 वर्ष की उम्र में बन गए थे शिक्षक
रिशांग कीशिंग का जन्म 25 अक्टूबर 1920 को मणिपुर के उखरुल जिले में हुआ था। 16 वर्ष की उम्र में ही प्राइमरी स्कूल के शिक्षक बन गए थे। हालांकि, आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। 1945 में उन्होंने 12वीं पास की। इसके बाद कोलकाता के पॉल कैथेड्रल कॉलेज में पढ़ाई करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने। यहीं से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की, फिर राजनीति में प्रवेश किया।
पहली लोकसभा के थे सदस्य
रिशांग 1952 में पहले आम चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से आउटर मणिपुर से चुनावी मैदान में थे। उन्होंने यह चुनाव जीता और पहली लोकसभा के सदस्य के रूप में 1952 से 1957 तक कार्यकाल पूरा किया। यह वही सोशलिस्ट पार्टी थी, जो 1948 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस से टूटकर बनी थी। इसके बाद 1957 के लोकसभा चुनाव में वे हार गए।
इस बात से नाराज होकर शामिल हुए कांग्रेस में
सन् 1964 में जवाहरलाल नेहरू चीन के खतरे को लेकर लोकसभा में बोलने वाले थे। सोशलिस्ट नेताओं ने तैयारी की थी कि अगर नेहरू अंग्रेजी में बोलेंगे, तो वे प्रदर्शन करेंगे। रिशांग अपनी पार्टी के नेताओं की इस तैयारी से नाराज हो गए। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। सेशन के बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से मिलकर कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जताई, जिसके बाद नेहरू ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया।
कहा था- संसद में अब बस चीखना-चिल्लाना बचा है
2014 में राज्यसभा से विदाई के साथ ही राजनीति से रिटायरमेंट लेते समय रिशांग बहुत दुखी थे। उनका दुख सदन की वर्तमान स्थिति के कारण था। उन्होंने कहा था कि संसद अब पहले जैसी नहीं रही। यहां बहस का स्तर बहुत गिर गया है। संसद में अब बस चीखना-चिल्लाना ही बचा है। यह वो संसद नहीं है, जिसे मैं जानता था।
चार बार रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री
रिशांग कीशिंग चार बार मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे। वे पहली बार 1980-85, दूसरी बार 1985-88, तीसरी बार 1994-95 और चौथी बार 1995 से 1998 तक मुख्यमंत्री थे।
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