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कैसे टूटा अम्मा की जगह लेने का ‘चिनम्मा’ का सपना, वीडियो पार्लर से लेकर जेल तक शशिकला का सफर

तमिलनाडु की सक्रिय राजनीति से पूरी तरह दूर रहने के बावजूद पिछले करीब दो दशक से शशिकला सूबे की सियासत का खास चेहरा हैं। आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल में सजा काट रहीं शशिकला 25 साल पहले वीडियो पार्लर चलाती थीं। जयललिता के साथ उनकी 25 साल की गहरी दोस्ती ही एकमात्र वजह है, जो उन्हें सूबे की सियासत में एक मजबूत हैसियत के साथ खड़ा करती है। जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी शशिकला के नजदीक आती दिख रही थी। मगर सत्‍ता के शीर्ष तक पहुंचते-पहुंचते शशिकला की सियासत ऐसी फिसली कि वे जेल की सलाखों तक सिमट गईं। मंगलवार को संयुक्‍त एआईएडीएमके की बैठक में उन्‍हें जनरल सेक्रेटरी के पद से हटाते हुए पार्टी से भी बाहर कर दिया गया। शशिकला का जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। वीडियो पार्लर चलाने वाली शशिकला कभी जयललिता की सबसे खास बनीं, फिर दोनों के रिश्‍तों में दरार आ गई। इसके बाद दोबारा शशिकला जयललिता के सबसे करीबियों में शामिल हो गईं। शशिकला के जीवन का अब तक का सफर किसी फिल्‍मी कहानी से कम नहीं है। आइये जानते हैं कैसे टूटा अम्‍मा की जगह लेने का ‘चिनम्‍मा’ का सपना और वीडियो पार्लर से लेकर जेल तक का शशिकला का सफर।


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ऐसे आईं जयललिता के करीब

जयललिता और शशिकला की दोस्ती की शुरुआत 1984 में हुई थी। उस वक्त शशिकला एक वीडियो पार्लर चलाती थीं और जयललिता तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन की प्रोपेगैंडा सेक्रेटरी थीं। शशिकला के पति नटराजन उस वक्त राज्य के सूचना विभाग में काम करते थे। उन्होंने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर जयललिता की सभी जनसभाओं के वीडियो शूट का ठेका शशिकला को दिलवाया। जयललिता को शशिकला का काम पसंद आया और दोनों के बीच रिश्ते गहरे होने शुरू हो गए। 1987 में एमजी रामचंद्रन की मृत्यु के बाद जब जयललिता मुश्किल दौर से गुजर रही थीं, तब शशिकला ने उन्हें सहारा दिया। उस वक्त पार्टी में एमजी रामचंद्रन की पत्‍नी जानकी रामचंद्रन के समर्थकों की ओर से जयललिता का विरोध हो रहा था और उन्हें पार्टी से बाहर निकालने की मांग हो रही थी। इसी दौरान शशिकला अपने पति नटराजन के साथ जयललिता के घर उनकी ‘मदद’ करने के लिए रहने लगीं।


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जयललिता ने नटराजन को घर से निकाला

जयललिता और शशिकला के रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव भी आए। 1991 में जयललिता के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शशिकला के रिश्तेदारों पर जयललिता से नजदीकी का गलत फायदा उठाने के आरोप लगे, लेकिन शशिकला पर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। विपक्षी दल शशिकला पर अक्सर यह इल्‍जाम लगाते रहे हैं कि उनका परिवार खुद को कानून से ऊपर समझता रहा है। उन्हें और उनके परिवार को राजनीतिक गलियारों में ‘मन्नारगुड़ी माफिया’ कहा जाता रहा है। ऐसा उनके जन्मस्थान से जोड़कर कहा जाता है। इन आरोपों से नाराज होकर जयललिता ने नटराजन को अपने घर से बाहर निकाल दिया, लेकिन शशिकला ने समझदारी दिखाते हुए इस फैसले में जयललिता का साथ दिया और उनके साथ ही रही थीं।


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अम्‍मा ने भतीजे को लिया था गोद

दोनों के बीच रिश्ते इतने प्रगाढ़ थे कि अम्‍मा यानी जयललिता ने शशिकला के भतीजे वीएन सुधाकरन को गोद ले रखा था और उसकी भव्य शादी भी करवाई थी। 1996 में चुनाव हारने और सत्ता से बाहर होने के बाद भी जयललिता ने शशिकला को पार्टी से हटाने की कैडरों की मांग नहीं मानी थी। पार्टी के कैडरों का कहना था कि शशिकला पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता के दुरुपयोग की वजह से पार्टी की छवि खराब हो रही है। इसी साल शशिकला को प्रवर्तन निदेशालय ने फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट के तहत गिरफ्तार किया था, लेकिन तब भी जयललिता ने उनसे दूरी नहीं बनाई।


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टिकट बांटने में होती थी अहम भूमिका!

हालांकि इन सब मामलों के बाद जयललिता ने शशिकला के गोद लिए भतीजे सुधाकरन और परिवार के कुछ दूसरे सदस्यों को छोड़ दिया। दो बार शशिकला को जयललिता के घर से बाहर का रास्ता देखने की नौबत आई, लेकिन दोनों ही बार वो जयललिता के घर में एक विजेता की तरह लौटीं। इससे पता चलता है कि जयललिता शशिकला पर कितना भरोसा करती थीं। पार्टी के अंदखाने में यह बात हमेशा होती रहती है कि टिकट बांटने में शशिकला की अहम भूमिका होती थी, इसलिए पार्टी के वरिष्ठ नेता, मंत्री और विधायक उनके वफादार बने रहते थे।


… और दूर हो गई मुख्‍यमंत्री की कुर्सी

5 दिसंबर 2016 को जयललिता के निधन के बाद पैदा हुई अनिश्चितता की स्थिति में पनीरसेल्वम मुख्यमंत्री जरूर बन गए थे, लेकिन पनीरसेल्वम के नाम को लेकर पार्टी में पूरी तरह से सहमति नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में शशिकला के नाम पर पार्टी सदस्यों को संभावनाएं नजर आईं कि वे पनीरसेल्वम की जगह ले सकती हैं। मगर पनीरसेल्वम की बगावत और अदालत के फैसले से मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे दूर हो गई। जयललिता के निधन के बाद दिसंबर 2016 में ही शशिकला को पार्टी महासचिव बनाया गया था। जयललिता के घर-परिवार और उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने वाली शशिकला ने अपने भाषण में खुद को ‘पार्टी की उद्धारक’ और अम्मा के सपनों को पूरा करने वाली बताया था। मगर अब राजनीति में खुद को स्‍थापित करना शायद शशिकला के लिए सपना ही रह जाएगा।


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