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राजकुमारी जो बनीं देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री, एम्‍स की स्‍थापना में थी प्रमुख भूमिका

मोदी मंत्रिमंडल विस्‍तार में निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाए जाने के बाद से उनकी चर्चाएं चारों ओर हैं। हर तरफ पहली महिला पूर्णकालिक रक्षा मंत्री के रूप में उनकी बातें हो रही हैं। इनके साथ ही विभिन्‍न क्षेत्रों में मुकाम हासिल करने वाली देश की पहली महिलाओं का भी जिक्र हो रहा है। मगर क्‍या आपको पता है कि देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री कौन थी। आइये हम आपको बताते हैं देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री के बारे में।


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कपूरथला के राजा की बेटी अमृत कौर थीं पहली महिला कैबिनेट मंत्री

राजकुमारी अमृत कौर आजाद भारत की पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला। वे जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल थीं। उन्होंने 1957 तक स्वास्थ्‍य मंत्रालय का कार्यभार संभाला। वे सन् 1957 से 1964 में अपने निधन तक राज्‍यसभा की सदस्य भी रही थीं। उनका जन्‍म 2 फरवरी 1889 को उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा इंग्‍लैंड में हुई। ऑक्‍सफोर्ड विश्‍वविद्यालय से एमए करने के बाद वे भारत वापस लौटीं। उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला, पंजाब के राजा थे और मां रानी हरनाम सिंह थीं। हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें अमृत कौर अपने सात भाइयों में अकेली बहन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।


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महात्‍मा गांधी के प्रभाव में छोड़ी भौतिक जीवन की सुख-सुविधाएं

अमृत कौर के पिता के गोपाल कृष्‍ण गोखले से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव अमृत कौर पर भी पड़ा। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं। शीघ्र ही अमृत कौर का सम्पर्क महात्‍मा गांधी से हुआ। महात्‍मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। यह सम्पर्क अंत तक बना रहा। उन्होंने 16 वर्षों तक गांधीजी के सचिव का भी काम किया। गांधीजी के नेतृत्व में सन् 1930 में जब दांडी मार्च की शुरुआत हुई, तब अमृत कौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। वर्ष 1934 से वे गांधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान भी जेल हुई। अमृत कौर भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर सन् 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्‍नू गईं। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार व संवैधानिक सुधार के लिए गठित ‘लोथियन समिति’ तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा।


AIIMS Delhi


एम्‍स की स्‍थापना में थी महत्‍वपूर्ण भूमिका

नई दिल्‍ली में एम्‍स की स्‍थापना में अमृत कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। वे एम्‍स की पहली अध्यक्ष भी बनार्इ गई थीं। इसकी स्थापना के लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, ऑस्‍ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमेरिका से मदद भी हासिल की थी। उन्होंने और उनके एक भाई ने शिमला में अपनी पैतृक सम्पत्ति व मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए ‘हाॅलिडे होम’ के रूप में दान कर दिया था। 1950 में उन्हें विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियाई थीं।


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अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-संस्‍थापक

महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की गई। कौर इसकी सह-संस्‍थापक थीं। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया वुमन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। कौर 14 साल तक इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की चेयरपर्सन भी रहीं।


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