Menu
blogid : 321 postid : 1350132

सरकार के दबाब में आकर महाभारत के दो सीन पर चलानी पड़ी थी कैंची!

आपको याद होगा, पिछले दिनों ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म पर सेंसर की कैंची चली, हर तरफ जमकर आलोचना की गई. वैसे देखा जाए तो ये ऐसा पहला मौका नहीं था, जब किसी फिल्म पर सेंसर का उस्तरा चला हो, लेकिन बहस का मुद्दा ये था कि पंजाब में बढ़ती ड्रग्स की समस्या दशकों से चलती आ रही है, जिसके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं, ऐसे में समाज की एक सच्चाई पर पर्दा डालना कहां का न्याय था. बहरहाल, जब फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म में मां-बहन की बेहिसाब गालियां थी. कमाल की बात तो ये थी कि न ही इन गालियों को सेंसर करने के लिए इतनी हाय-तौबा मचाई गई और न ही किसी तरह का कोई डिसक्लेमर चलाया गया. ऐसे में सेंसर और समाज का दोहरा चेहरा तो यहीं दिख जाता है.


mahabharat


चलिए, ये बात हुई फिल्मों की, अब बात करते हैं 1988 में लोकप्रियता के नए आयाम छूते ‘महाभारत’ की. कहा जाता है कि बीआर चोपड़ा के महाभारत के पहले ही एपिसोड पर तत्कालीन सरकार ने सेंसर का उस्तरा फिरा दिया था. टीवी और फिल्म जगत के कुछ महानुभावों का तो ये भी कहना है कि उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी और देश के प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी, ऐसे में ये कट्स उनके कहने पर ही लगवाए गए थे.


mahabhart 2


इस वजह से सेंसर करने पड़े थे कुछ सीन

राजनैतिक कटाक्ष करने की वजह से महाभारत के कुछ सीन्स को एडिट कर दिया गया. हालांकि, कुछ लोगों का ये भी कहना था कि शूटिंग के तुरंत बाद एडिट करके पहले ही सीन को हटाया जा चुका था, जबकि एपिसोड को देखकर कोई भी बता सकता था कि जल्दबाजी में पूरे एपिसोड को खराब कर दिया गया है. इसमें भरत के दरबार के बाद सीधे राजमाता शकुंतला के कक्ष का दृश्य और भरत के शासन के बाद सीधे शांतनु के दृश्य जिस तरह से दिखाए गए हैं उसमें साफ नजर आता है कि बीच के दृश्य काटे गए हैं.



mahabharat 3

’ दूसरी तरफ ‘सत्ता का अधिकार जन्म से नहीं, कर्म से मिलता है’ इस दमदार डॉयलाग पर भी कैची चला दी गई, क्योंकि इन दोनों ही बातों को सुनने के बाद दर्शकों की सोच राजनीति में परिवारवाद की अवधारणा की ओर चली जाती, जो कि तत्कालीन सरकार को मंजूर नहीं था.


mahabharat 1

उस समय दूरदर्शन के डीजी थे भास्कर घोष

इसके कुछ समय बाद ही चुनाव होने वाले थे. ऐसे में सरकार को अपने प्रचार-प्रसार के लिए दूरदर्शन पर पूरी तरह कंट्रोल करना था. अपनी किताब ‘दूरदर्शन डेज’ में भास्कर लिखते हैं, ‘एक दिन अचानक संडे को गोपी अरोड़ा का फोन आया कि तुम ऑफिस आओ. घर पर कुछ गेस्ट थे, तो मैंने कहा कि मंडे को आऊंगा. गोपी ने कहा कि जरूरी है, अभी आओ. मैं गया तो बोले कि तुम्हारे लिए बैड न्यूज़ है. तुम्हें दूरदर्शन के डीजी का पद छोड़ना होगा.’



bhaskar

तो देखा आपने, जहां ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को लोकतंत्र की विशेषताओं में शामिल किया जाता है, वहां फिल्मों को तो छोड़िए, कई बार धार्मिक सीरियल भी सेंसर की कैंची से नहीं बच पाते…Next

Read more

इटली की इस जगह रहती थी सोनिया, उनका असली नाम था ये

गोबर के गंध से ‘युधिष्ठिर’ को बचाने के लिये तैनात किये गये दर्जन भर से अधिक पुलिसवाले

ओवरकॉफिडेंस ये क्या कर बैठे चेला-चपाटे!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh