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15 अगस्त 1947 ही नहीं, 1 जनवरी 1947 भी है खास…क्या जानते हैं आप?

इस बार हम देश की आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाएंगे, हजारों-लाखों देशभक्‍तों के कड़े संघर्ष, बलिदान और त्‍याग के बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो पाया. ये खयाल दिल में आते ही एक तरफ उन शहीदों के सम्‍मान में सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है, तो दूसरी ओर अंग्रेजों के खिलाफ दिल में रोष भी पैदा होता है. पर क्‍या आपको पता है कि भारत को आजाद करना अंग्रेजों की मजबूरी बन गई थी और 1 जनवरी 1947 को ही यह प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी.


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दरअसल, भारत में अंग्रेजों के विरोध, क्रांतिकारियों के प्रदर्शन और बलिदान की वजह से अंग्रेजी हुकूमत जबरदस्‍त दबाव में तो थी ही. साथ ही ब्रिटिश शासन खुद भी कमजोर को चुका था. द्वितीय विश्‍वयुद्ध ने इग्‍लैंड की कमर तोड़ दी थी. उनके लोगों में जबरदस्‍त असंतोष भरा हुआ था. उद्योगधंधे चौपट हो गए थे। ब्रिटिश हुकूमत के सरकारी खजाने खाली हो गए थे. 20 लाख से भी ज्‍यादा अंग्रेज बेरोजगार हो गए थे। इन विप‍रीत परिस्थितियों को देखते हुए ब्रिटेन की सियासत को यह समझ में आ गया था कि अब भारत पर शासन करना आसान नहीं होगा।

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पिछले वर्षों की तरह अंग्रेजों का 1947 का पहला दिन भी आशंका, अभाव, दुख और भयानक असुरक्षा के माहौल में शुरू हो रहा था, लेकिन एक चौथाई धरती पर फैला अंग्रेजों का साम्राज्‍य उस दिन भी लगभग ज्‍यों का त्‍यों खड़ा था. कहते हैं कि यह वह साम्राज्‍य था, जहां सूरज कभी डूबता नहीं था, मगर इस स्थिति में बदलाव के लक्षण तभी दिखने लगे थे, जब‍ 1945 में किलमेंट एटली और उसकी लेबर पार्टी ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ली थी. एटली ने उसी समय यह घोषणा की थी कि अब ब्रिटिश साम्राज्‍य को समेटने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. इसका सीधा सा अर्थ था कि अंग्रेज भारत से अपना शासन हटा लेंगे.


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1 जनवरी 1947 को 10 डाउनिंग स्‍ट्रीट (यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास) पर लुई फ्रांसिस एल्‍बर्ट विक्‍टर निकॉलस माउंटबेटन पहुंचता है, जिसका ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली इंतजार कर रहे थे। उस समय माउंटबेट की उम्र करीब 46 वर्ष थी. माउंटबेटन को मालूम था कि उसे लंदन क्‍यों बुलाया गया है. एटली, माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजना चाहता था. यह पद ब्रिटिश साम्राज्‍य में बहुत महत्‍वपूर्ण माना जाता था. तमाम अंग्रेजों ने इस पद पर बैठकर दुनिया के पांचवें हिस्‍से की जनसंख्‍या पर शासन किया था. मगर माउंटबेटन को शासन करने के लिए नहीं, बल्कि शासन हटाने के लिए भेजा जाना था, जो शायद किसी भी सच्‍चे अंग्रेज के‍ लिए बड़ा मुश्किल था.


प्रधानमंत्री एटली ने बताया कि एक-एक दिन बीतने के साथ ही भारत की स्थिति भयानक होती जा रही है. जरूरी हो गया है कि जल्‍द ही कुछ किया जाए. एटली ने माउंटबेटन से कहा कि रोजाना संदेश मिल रहे हैं कि हर दिन भारत का कोई नया कोना कौमी दंगों की लपेट में आ रहा है। स्थिति ऐसी ही रही, तो जल्‍द ही वहां खून की नदियां बहनी शुरू हो जाएंगी. ऐसा वास्‍तव में होने लगे, इससे पहले ही इंग्‍लैंड को भारत से निकल जाना चाहिए.

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दूसरी ओर सच्‍चाई यह भी थी कि इग्‍लैंड यदि हड़बड़ी में निकला, तो भारत की आंतरिक स्थिति बद से बदतर हो जाएगी. सच में खून की नदियां बहनी शुरू हो जाएंगी. अंग्रेजों के जाने के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा का ढांचा लड़खड़ा कर गिर न जाए, इसे सुनिश्चित करना आवश्‍यक था, नए वायसराय को इसी का उपाय खोजना था.


वहीं, मांउटबेटन बिल्‍कुल नहीं चाहता था कि वह इस पद को संभाले, हालांकि इसका मतलब यह नहीं था कि वह भारत को आजाद करने से सहमत नहीं था. उसकी समस्‍या यह थी कि शासन समेटने का पीड़ादायक कार्य उसे ही क्‍यों करना पड़ेगा. वह जानता था कि एटली उसे हर हालत में भारत भेजना चाहता है. ऐसे में एटली पर दबाव बनाने के लिए माउंटबेटन ने तरह-तरह की और न जाने कितनी ही शर्तें एटली के सामने रखीं. वह चाहता था कि एटली कोई भी शर्त मानने से मना कर दे और वह आसानी से भारत जाने यानी भारत का नया वायसराय बनने से बच जाए। मगर एटली ने उसकी सभी शर्तें स्‍वीकार कर लीं.

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करीब एक घंटे बाद माउंटबेटन जब बाहर निकला, तो निराशा उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी. तय हो गया था कि उसे भारत का अंतिम वायसराय बनना है. वापस जाने के लिए कार में बैठते ही वह सोचने लगा कि एक-एक घंटे का हिसाब लगाएं, तो भी आज उस दिन को ठीक सत्‍तर वर्ष पूरे हो रहे थे, जब रानी विक्‍टोरिया को दिल्‍ली से बाहर के एक मैदान में भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया था. माउंटबेटन उन्‍हीं रानी का प्रपौत्र था. पूरे भारत से राजा-महाराजा उस अवसर पर एकत्र हुए थे और उन्‍होंने ईश्‍वर से प्रार्थना की थी कि रानी विक्‍टोरिया की शक्ति और प्रभुसत्‍ता हमेशा-हमेशा के लिए अखंड रहे. अब रानी विक्‍टोरिया के प्रापौत्र को ही वह प्रक्रिया शुरू करनी थी, जिससे एक तारीख तय होगी और उस दिन भारत को आजाद करना होगा. उस भारत को, जिस पर शासन करना अंग्रेज अपनी महानता समझते थे. इस तरह 1 जनवरी 1947 को ही भारत को आजाद करने की उल्‍टी गिनती शुरू हो गई थी…Next

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