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सिद्धू की जिंदगी की मनहूस शाम जब उन पर लगा हत्या का इल्जाम, ये है वो कहानी

उन्हें आप कपिल के शो में तालियां ठोंकते हुए और शायरी सुनाते हुए देखते हैं. कभी उनके क्रिकेट के दिनों की यादें ताजा होती है तो कभी उनकी जिंदगी के पन्ने पलटे जाते हैं.


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जी हां, हम बात कर रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू की, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस ज्वॉइन करके बीजेपी से दुश्मनी मोल ली. कभी बीजेपी को मां बताकर पार्टी में एंट्री लेने वाले सिद्धू अब खुद को पैदाइशी कांग्रेसी कहने में भी गुरेज नहीं कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी की ओर से तीखी टिप्पणियों का दौर शुरू हो गया है. इनमें से कुछ नेता तो दबी आवाज में सिद्धू के गैर इरादतन हत्या के केस को भी उठा रहे हैं. आइए, डालते हैं एक नजर सिद्धू के कॅरियर पर लगे उस धब्बे के बारे में, जिसका फायदा विरोधी लेने की कोशिश कर रहे हैं.


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क्या है वो केस ?

मामला है 27 दिसम्बर 1988 का. दरअसल, सिद्धू पर मामूली कहा सुनी पर एक 75 साल के बुर्जुग की गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज है. इस मामले में उन्हें पटियाला पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था. उन पर आरोप यह था कि उन्होंने एक व्यक्ति की हत्या में मुख्य आरोपी की मदद की है जबकि सिद्धू ने इन आरोपों को गलत बताया था.


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क्या हुआ था उस दिन

सिद्धू उन दिनों क्रिकेटर हुआ करते थे. इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते हुए 1 साल हो चुका था. सबकुछ अच्छा-खासा चल रहा था कि एक शाम अपने एक दोस्त रुपिंदर सिंह संधू के साथ पटियाला के शेरावाले गेट मार्किट पहुंचे. अपने घर से करीब 1.5 किलोमीटर दूर जाने पर स्टेट बैंक के सामने कार पार्किंग को लेकर उनकी कहा सुनी हो गई. जिस शख्स के साथ उनकी कहासुनी हुई वो 75 साल के बुर्जुग थे. गुरनाम सिंह नाम के इस शख्स के साथ उनका एक भांजा भी था. भांजे की कोर्ट में दी गई गवाही के अनुसार सिद्धू ने गुरनाम सिंह को अपने घुटनों से मारकर गिरा दिया था. जिसके बाद वो बेहोश हो गए और अस्पताल ले जाते समय उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई. बाद में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये बात खुलकर सामने आई थी कि मौत दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है. इस तरह सिद्धू और उनके दोस्त संधू पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हो गया और उन्हें हिरासत में ले लिया गया.


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3 साल की सजा लेकिन फिर मिल गई जमानत

2006 में सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी मानते हुए दोनों को 3 साल की सजा और 1-1 लाख रुपए जुर्माने की सजा दी गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया. इसी बीच सिद्धू ने लोकसभा से इस्तीफा भी दे दिया. सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी को चंडीगढ़ कोर्ट में सरेंडर किया गया. साथ ही बेल के लिए भी अर्जी डाल दी. लेकिन बेल के लिए एक बार अरेस्ट होना जरूरी था. इसलिए सरेंडर करने के कुछ समय बाद ही अगले दिन यानी 12 जनवरी को सिद्धू और उनके दोस्त को जमानत मिल गई. इसके बाद सिद्धू इसी साल हुए लोकसभा उपचुनाव में खड़े हुए और उन्होंने अमृतसर से जीत हासिल की.


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आज इतने सालों बाद भी विरोधी उनके हर बयान पर इस केस का जिक्र करते हैं. कांग्रेस ज्वॉइन करने पर एक बार फिर से उनकी जिंदगी के ये स्याह पन्ने पलटे जा रहे हैं…Next


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