पाकिस्तान की सीमा के निकट सतलज नदी के किनारे स्थित हुसैनीवाला में वैसे तो पूरे साल चहल-पहल रहती है लेकिन स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और शहीद दिवस के मौके पर यहां का नजारा अलग ही देखने को मिलता है. यहां की फिजाओं में राष्ट्र भक्ति और देश प्रेम जिस तरह से घुला है उससे एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित पड़ोसी देश पाकिस्तान भी बेचैन हो जाता है.
आपको बता दें हुसैनीवाला गांव वही जगह है जहां 23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अन्तिम संस्कार किया गया था. यहीं पर उनके एक और साथी बटुकेश्वर दत्त का भी 1965 में अन्तिम संस्कार किया गया था जिन्होंने अंग्रेजी शासन के समय भगत सिंह के साथ मिलकर केन्द्रीय असेंबली में बम फेंका था. बटुकेश्वर दत्त की चाहत थी कि उनका अंतिम संस्कार वहां पर ही हो जहां भगत सिंह और उनके अन्य साथियों का अंतिम संस्कार हुआ है.
वैसे आजादी के बाद विभाजन के समय हुसैनीवाला गांव पाकिस्तान के हिस्से चला गया था. लेकिन भारत में आजादी के सपूतों के प्रति लोगों का प्यार देखते हुए भारत सरकार ने पाकिस्तान को 12 गांव देकर 1960 के दशक मे हुसैनीवाला को भारत में मिलाया था.
हुसैनीवाला स्थित इस स्थान को राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में 1968 में विकसित किया गया. पाकिस्तान से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हुसैनीवाला गांव में लोग बाघा बॉडर की तरह रीट्रीट सेरेमनी का लुत्फ उठाते हैं. 1972 की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों इसे नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन देश के पूर्व राष्ट्रपति एवं पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने 1973 में इस स्मारक को फिर से विकसित करवाया था.
पिछले साल मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हुसैनीवाला पहुंचे थे. प्रधानमंत्री का यह दौरा बेहद ही खास था क्योंकि 30 साल बाद कोई प्रधानमंत्री शहीदों को श्रद्धांजलि देने हुसैनीवाला पहुंचा था…Next
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