गाय और गोबर का जितना सम्बन्ध आपसी है उससे कम भारतीय जनता पार्टी से नहीं है. इसका आभास गाय को भी नहीं होगा कि कब वो गाँव के घरों से निकल प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आयी. राजनीति में घसीटे जाने के इस क्रम में गाय का कद जरूर बढ़ा लेकिन, इसका एहसास न होने के कारण गाय ने अपने ही पैरोकारों को बिहार में जुगाली पर मज़बूर कर दिया.
गाय के आशीर्वाद के आकांक्षी लोगों के लिये कल का दिन ज़ोखिम भरा था. जिस गाय को धुरी बनाकर राजनीति की जाती रही हो उसी गाय के गोबर का खौफ़ कल पुणे में देखा गया. एक ऐसा खौफ़ जिससे जितने विचलित ‘युधिष्ठिर’ रहे होंगे, उससे कम दर्जन भर से ज्यादा पुलिसवाले भी नहीं थे. एफटीआईआई के आस-पास इस खौफ़ का असर देखा गया. शांत दिखने वाली गाय के गोबर का खौफ़ एक प्रशिक्षण संस्थान के आस-पास देखा जाना निश्चित रूप से गाँव में गोबर से आँगन लीपने वालों के लिये आश्चर्य भरा रहा होगा.
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भला गोबर से भी लोग खौफ़ खाते रहे, वो भी महाभारत के “युधिष्ठिर”! गाय के लिये भी यह क्षण यकीनन पीड़ादायी रही होगी. इस खौफ़ से पार पाने के लिये युधिष्ठिर-नियुक्ति विरोधी लोगों को पहले से समझाया गया कि विरोध करने से बाज आएँ. ऐसा न करने पर उनके विरूद्ध आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई करने की सूचना दी गयी. एफटीआईआई परिसर में गोबर लाने पर पाबंदी लगा दी गयी. ‘युधिष्ठिर’ पहली बार सफलतापूर्वक यहाँ आये और बैठक की.
ब्लॉगर पहले भी मानता रहा कि महाभारत में काम करने का मौक़ा उन्हें यूँ ही नहीं मिला. किसी सिनेमा, धारावाहिक में काम कर लेना एक बात होती है, वास्तविक जीवन में उन्हीं स्थितियों को पैदा कर सफल होना दूसरी. इस लिहाज से टीवी के ‘युधिष्ठिर’ की काबिलियत पर संदेह करना वास्तविकता से आँखे चुराना है.
स्कूल में गणतंत्र दिवस के दौरान आये मुख्य अतिथि विद्यार्थियों के नेतृ्त्व में बदलाव की उम्मीद करते थे. ठीक उसी तरह अभी भी गायों से उम्मीदें हैं. कहते हैं, उम्मीद पर दुनिया कायम हैं. गौ-माता का आशीर्वाद शायद आगे काम आ जाये! जीत की कल्पना का हक़ सबको है, होना भी चाहिये. इस पर कोई किसी को डिक्टेट नहीं कर सकता.Next….
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