डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म होने के बाद दो राष्ट्रपति इस पद पर आसीन हो चुके हैं लेकिन कलाम की लोकप्रियता का आलम यह है कि जनता के लिए वे अबतक राष्ट्रपति ही हैं. अपने निधन के बाद भी उनकी राष्ट्रपति की छवि जनता के दिलों में बरकरार है. कहना गलत नहीं होगा कि कलाम भारतीय गणतंत्र के इतिहास में सबसे गैरपारंपरिक राष्ट्रपति होते हुए भी सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति साबित हुए. परंतु यह कम लोग ही जानते हैं कि जुलाई 2002 में राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले डॉ कलाम एनडीए सरकार की पहली पसंद नहीं थे.
फरवरी 2002 के गुजरात दंगों के बाद एनडीए सरकार अपनी धर्मनिरपेक्षता के प्रति निष्ठा प्रकट करने के लिए किसी गैर हिन्दू व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी. तब जॉर्ज फर्नांडिस अटल बिहारी की सरकार में रक्षामंत्री थे. डॉ. कलाम तब रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार हुआ करते थे. पूर्व भाजपा नेता और पत्रकार सुधीन्द्र कुलकर्णी लिखते हैं कि उस समय राष्ट्रपति डॉ. के आर नारायणन दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए इच्छुक थे वहीं उप राष्ट्रपति कृष्ण कांत भी राष्ट्रपति भवन में प्रवेश पाने के लिए ललायित थे परंतु भाजपा हर हालत में किसी गैर मुस्लिम व्यक्तित्व को ही राष्ट्रपति बनाना चाहती थी.
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एलेक्जेंडर तब महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद पर आसीन थे. डॉ. एलेक्जेंडर एक अनुभवी नौकरशाह थे. उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांंधी और राजीव गांधी के प्रमुख सचिव के तौर पर अपनी सेवा दी थी. उस समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी दोनों ही उनके नाम पर सहमत थे. खैर राष्ट्रपति पद के लिए डॉ. एलेक्जेंडर का नाम कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को मंजूर नहीं था.
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वाजपेयी राष्ट्रपति पद के लिए ऐसे उम्मीदवार को चुनना चाहते थे जिसपर सभी दलों की सहमति हो. ऐसे में जॉर्ज फर्नांडिस ने डॉ. अब्दुल कलाम का नाम सुझाया जिसे झट से मान लिया गया. डॉ. कलाम के नाम पर एनडीए के सभी घटक दलों के साथ विपक्ष भी सहमत हो गया और इस तरह राजनीतिक गलियारों से दूर रहने वाले अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति चुन लिए गए. Next…
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