बहुत कम लोग जानते होंगे कि अपनी भाषण शैली के लिए मशहूर और शायद भारत के सबसे पॉपुलर नेता अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाषणों के लिए भारत ही नहीं पूरी दुनिया में मशहूर रहे हैं. 80 के दशक में टाइम मैगजीन ने आचार्य ओशो रजनीश के साथ अटल बिहारी वाजपेयी को एशिया के सबसे प्रभावशाली वक्ता की लिस्ट में शामिल किया था. 1996 में अटल ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अमेरिकी संसद में हिंदी में भाषण दिया. अटल बिहारी की यह भाषण शैली भाजपा के भी बहुत काम आई. कांग्रेस को किनारे कर पहली बार 5 सालों तक एक स्थिर सरकार दे पाने में सफल रहने में अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक समय भाजपा भारत की सबसे पॉपुलर पार्टी बन सकी थी. अब वापस वही पॉपुलरिटी भाजपा नरेंद्र मोदी को पीएम इन वेटिंग के रूप में चुनावी मैदान में उतारकर पाना चाहती है. नरेंद्र मोदी कई बार अटल जी का जिक्र भी अपने भाषणों में कर चुके हैं. 1998 के चुनावों में अटल जी और भाजपा की एक अलग ही लहर थी जो भाजपा के लिए जीत की लहर बनी. आज वह लहर मोदी लहर के रूप में एक बार फिर बह रही है लेकिन सौ टके का सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी का मुकाबला कर सकते हैं?
1999 से 2004 तक पहली बार कांग्रेस को बीट कर सत्ता में रहने का सुख भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिला. उसके बाद से लेकर अब तक दो लोकसभा चुनावों में दुबारा सत्ता में आने के लिए बीजेपी ने एड़ी-चोटी की जोर लगा ली लेकिन भाजपा को दिल्ली नहीं मिली. 2004 में लाल कृष्ण आडवाणी की ‘इंडिया शाइनिंग’ की कैंपेन भी लोकसभा चुनाव के नतीजों में फुस्स साबित हुई. अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी नेतृत्व के चेहरे से दूर रखना इस हार की बड़ी वजह मानी जाती रही. 1998 के चुनावों में पीएम पद के लिए भाजपा का नेतृत्व चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी ही थे. 2004 और उसके बाद के चुनावों में अटल को इससे दूर और आडवाणी के नेतृत्व में आने के साफ-साफ संकेत थे और जनता ने सीधे-सीधे इसे नकार दिया. अब नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा वाजपेयी की तरह चमत्कारिक चुनाव परिणामों की उम्मीद कर रही है पर वाजपेयी और अटल बिहारी में बहुत फर्क है.
एक झूठ को सौ बार बोलो तो सच बन जाता है
अपने विरोधियों को भी अपनी चुटकी लेने के अंदाज से निरुत्तर कर देने वाले और मुस्कुराने को बाध्य कर देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी और बात-बात पर विरोधियों पर सीधा निशाना साधते, बस अपनी ही अपनी तारीफें करते नरेंद्र मोदी किस तरह जुदा हैं हम आपको बता रहे हैं.
समानताएं
मोदी और वाजपेयी जी में एक मात्र समानता यही है कि दोनों ही अपने भाषणों के लिए देश-विदेश में पॉपुलर हैं लेकिन दोनों की पॉपुलेरिटी अलग तरह की है. कैसे? आगे समझ जाएंगे.
एक चुनावी भाषण के दौरान मोदी के इस स्टेटमेंट पर ध्यान दें:
”मैं कामदार हूं, वे नामदार हैं. ऐसे बड़े नामदार एक कामदार से मुकाबला करना बुरा मानते हैं, खुद का अपमान मानते हैं”
इंटरनेट और मीडिया में मोदी के भाषण रिसर्च का विषय रहे हैं लेकिन अपने बहुत प्रभावी अंदाज के कारण नहीं बल्कि अपने बड़बोलेपन के कारण. इन्हीं रिसर्च रिपोर्टों की मानें तो आंकड़े कुछ इस तरह निकलते हैं:
-अपने 20 मिनट के भाषण में मोदी कम से कम 5356 शब्द इस्तेमाल करते हैं जिनमें कम से कम 25 बार गुजरात का जिक्र जरूर होता है.
-मोदी द्वारा अब तक दिए कुल 68 भाषणों में 1335 बार गुजरात का जिक्र किया गया है.
– और तो और शुरुआत में तो अपने भाषणों के लिए गलत ऐतिहासिक तथ्यों के प्रयोग के लिए भी मोदी की अच्छी-खासी हाय-तौबा मचाई गई. मोदी के कई भाषणों में ऐसी कई ऐतिहासिक बातें कही गईं जिनका इतिहास में या तो कोई जिक्र ही नहीं या वह तथ्य कुछ और था. जैसे:
मोदी के भाषणों के कुछ फैक्चुअल एरर्स
-बिहार में तक्षशिला विश्वविद्यालय से संबधित भाषण (बिहार में तक्षशिला विश्वविद्यालय है ही नहीं)
-श्यामा प्रसाद मुखर्जी (भाजपा के संस्थापक) को कांग्रेस का बताया
-सिकंदर को बिहार में हारने की बात कही (इतिहास के अनुसार सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं).
-चीन द्वारा अपने जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा के लिए खर्च किए जाने की बात कही जबकि चीन के आंकड़े कहते हैं वह अपनी जीडीपी का मात्र 3 प्रतिशत से कुछ अधिक ही खर्च करता है.
इसके अलावे,
-फैक्ट्स अक्सर गलत
-कोई प्रभावशाली अंदाज नहीं
-विरोधियों पर सीधा निशाना
-अपने तीखे तेवर के लिए हमेशा विरोधियों के निशाने पर
अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों की विशेषताएं
-प्रभावशाली अंदाज
-फैक्ट्स सही
-विरोधियों पर सीधा निशाना निशाना नहीं, चुटीला अंदाज
-विरोधी भी प्रशंसक में शामिल
तुलनात्मक तराजू पर अटल-मोदी
-मोदी के भाषण अपनी और अपने द्वारा गुजरात में किए विकास की तारीफ से ही शुरू और उसी पर खत्म होते हैं जबकि अटल जी के भाषणों में देश और विकास की बातें होती थीं.
-उनके भाषणों से ऐसा लगता है जैसे चुनावी लड़ाई भाजपा से कांग्रेस की नहीं बल्कि मोदी से कांग्रेस की हो.
-अटल जी ने अपने भाषणों में विरोधियों पर कभी सीधी चोट नहीं की. विरोधियों पर कटाक्ष वे भी करते थे लेकिन चुटकी लेने का अंदाज उनका कुछ ऐसा होता था कि अपने ही ऊपर कटाक्ष पर विरोधी हंस पड़ते थे. इसके ठीक विपरीत अपने भाषणों में कभी कांग्रेस को ‘खूनी पंजा’ तो कभी राहुल गांधी को ‘शहजादा’ कहकर संबोधित करने के लिए नरेंद्र मोदी तीखे विरोध का सामना कर चुके हैं.
हाल ही में उमा भारती ने कहा कि अटल जी एक पॉपुलर वक्ता थे इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन मोदी की रैली में लोग उनका भाषण सुनने नहीं बल्कि उन्हें जताने आते हैं कि वे मोदी के साथ हैं. भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का मोदी के लिए एक स्टेटमेंट कुछ इस तरह है:
”सशक्त और फौलादी इरादों के साथ-साथ जिसके अंदर संवेदनशीलता है, ऐसा नेतृत्व अगर किसी के पास है तो वह केवल (भाजपा) भारतीय जनता पार्टी के पास है, और इस नेतृत्व का नाम है श्री नरेंद्र कुमार मोदी जिन्हें हम 2014 लोकसभा चुनाव में भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे हैं”– राजनाथ सिंह
इस जगह पार्टियां और जनता अपनी-अपनी राय दे सकती हैं पर इसके मायने दूसरे होंगे. असल रूप में इस वक्ता से अर्थ एक सुयोग्य शासक से है भले ही जनता या पार्टियां इसे न समझें. प्रधानमंत्री रहते हुए एक बार मोदी के साथ ही किसी प्रेस कांफ्रेंस में अटल जी के वक्तव्य थे:
“शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता, न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न संप्रदाय के आधार पर,….मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं”.
इशारों-इशारों में कुछ कहता है यह ‘लोक’ तंत्र
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