स्थान रोम, वर्ष 1960 और इवेंट वही जिसका इंतजार आज भी खेल प्रेमी अपना दिल थाम कर करते हैं. ओलम्पिक गेम्स, हर चार साल में संपन्न होने वाले ओलम्पिक गेम्स की महत्ता उस दौर में भी वही थी और आज भी उनका जादू जस का तस बरकरार है. फर्क बस इतना है कि पहले खिलाड़ी देश के लिए खेलते थे और आज खेल पैसों के लिए खेला जाता है.
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह, ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं जिन्होंने रोम ओलम्पिक्स में भारत का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था. धावक मिल्खा सिंह ने ना सिर्फ खेल जगत में अपना एक विशिष्ट स्थान हासिल किया था बल्कि अपनी ईमानदारी का भी उन्होंने ऐसा प्रदर्शन दिया जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी प्रभावित हुए बिना रह नहीं सके.
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रोम ओलंपिक की 400 मीटर रेस में भारत की आखिरी उम्मीद कांस्य पदक से जुड़ी हुई थी और मैदान में थे भारतीय धावक मिल्खा सिंह. वर्ष 1956 के ओलंपिक खेलों में मिल्खा सिंह के भीतर अनुभव की कमी साफ नजर आ रही थी लेकिन अपनी उस हार के बाद मिल्खा सिंह ने अपनी कमियों को सुधारा जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1958 में हुए एशियन खेलों में मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था.
लेकिन जब मिल्खा सिंह रोम में हो रहे समर ओलंपिक की 400 मीटर रेस के मुकाबले के लिए मैदान में उतरे तो सभी की नजरों ने उन्हें घेर लिया. हर भारतीय उन्हीं को अपनी आस समझकर जहां था वहीं खड़ा हो गया. मिल्खा सिंह ने अपनी स्टेमिना और जीतने के जुनून से भारत को कांस्य पदक जितवाया और जब वह जीते तो एक महिला भागकर उनके गले लग गई.
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मिल्खा सिंह अपनी जीत पर यकीन तक नहीं कर पा रहे थे कि उस महिला ने उनकी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए. मिल्खा सिंह नहीं समझ पा रहे थे कि वह महिला कौन है. इतने में अचानक अपना परिचय देते हुए उस महिला ने कहा “आपने शायद मुझे पहचाना नहीं, मैं पंडित जी की बहन हूं”. जी हां, वह महिला थीं पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की बहन विजयलक्ष्मी पंडित.
विजयलक्ष्मी पंडित ने उसी समय मिल्खा सिंह की बात पंडित जवाहरलाल नेहरू से करवाई. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह से कहा कि आज उन्होंने देश का नाम रोशन किया है, वह आज कुछ भी मांग सकते हैं. आज वह जो भी मांगेंगे वह उन्हें दिया जाएगा. मिल्खा सिंह चाहते तो वह प्रधानमंत्री से कुछ मांग सकते थे, वह जानते थे उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है. लेकिन मिल्खा सिंह ने उन्हें कहा कि उन्हें मांगना नहीं आता इसीलिए अगर वह कर सकते हैं तो देशभर में एक दिन की छुट्टी घोषित कर दें और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा ही किया. मिल्खा सिंह के यह कहने से पंडित जवाहरलाल उनकी काबीलियत के साथ-साथ उनकी ईमानदारी के भी कायल हो गए.
नेहरू सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाला आदर्शवादी नेता
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