नरेंद्र मोदी की जीत की आशंका सभी को थी लेकिन जितनी बड़ी जीत सामने आ रही है उतनी बड़ी जीत की कल्पना शायद बीजेपी ने भी न की हो. चुनाव परिणामों से पहले ही बढ़-चढ़कर अपनी जीत के दावे करने पर कई लोगों ने उसे बड़बोला कहा लेकिन अब आ रहे परिणामों में वह बड़बोलापन आत्मविश्वास कहा जा सकता है. यह लगभग पहले से ही तय था कि इस बार 2014 में भाजपा की ही सरकार बनेगी, परिणामों के बाद उसपर एक ऑफिशियल मुहर लगने वाली है यह कह सकते हैं. पर पहली बार बहुमत से जीत रही भाजपा के लिए इस चुनाव परिणाम ने चुनौतियां बढ़ा दी हैं.
बीजेपी के लिए यह चुनाव परिणाम एक ऐतिहासिक जीत से ज्यादा खड़ी, तेज धार की तलवार पर नंगे पांव चलने के जैसा ही होगा. पिछले कई दशकों से त्रिशंकु सरकारों के दौर का खात्मा बीजेपी की इस पूर्ण बहुमत की जीत से होगा. इसी के साथ बीजेपी के पास अपने वादों पर खरा उतरने का समय शुरू हो जाता है. एक गलती का नतीजा अगले चुनाव में बीजेपी को अपनी हार से भुगतना पड़ सकता है.
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बीजेपी ने आर्टिकल 370, कश्मीर के स्पेशल राज्य होने, अयोध्या मंदिर जैसे कई मुद्दे उठाए हैं. कांग्रेस के भ्रष्टाचार, कांग्रेसी नेताओं के एकाधिकारपूर्ण व्यवहार से आहत जनता की ओर से आया यह फैसला एक प्रकार से सबक सिखाने वाला है लेकिन यह सबक सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि सभी राजनीतिज्ञों, राजनीतिक पार्टियों के लिए है कि जनता के हितों को अनदेखा करने वालों को जनता बख्शेगी नहीं. कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के आगे पहली बार भारी मतों से भाजपा और नरेंद्र मोदी का हिंदुत्ववादी एजेंडा जीत गया है. हालांकि इस धर्मनिरपेक्षता को नकारने के पीछे की मंशा धार्मिक कट्टरता नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ठगी की कोशिशों को नकारना है.
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सालों से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट बैंक बना रही परत-दर-परत धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कांग्रेस की परदे के पीछे की मानसिकता को जनता ने नकारा है. एक तरफ संविधान की धारा 44 सांप्रदायिक सद्भावना की बातें करती है और दूसरी तरफ अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिमों को तमाम तरफ के फायदे पहुंचाए जाने की कवायतें और अल्पसंख्यक आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यकों का शोषण किया जाता है. इसमें देश के फायदे और सामाजिक विकास की भावना से इतर बस राजनैतिक वोट बैंक बनाना होता है. वास्तव में भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना पर यह सीधा आघात है.
2014 चुनावों के जो परिणाम आए हैं दिखने में वह कांग्रेस के लिए एक सबक लगता है लेकिन भाजपा की जीत के साथ यह सबक भाजपा के लिए भी है. कांग्रेस के पास एक बहाना था त्रिशंकु सरकार में साझा पार्टियों के दबाव में देशहित के लिए सरकार गिरने से बचाने के लिए कुछ अनचाहे फैसले लेने का. भले ही ये फैसले उसके लिए अनचाहे न हों लेकिन वह ऐसा जता सकती है जबकि पूर्ण बहुमत सरकार के पास यह बहाना नहीं होता. दशकों बाद भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाना जनता का इशारा है कि अपने वादे हर हाल में पूरा करो. जनता के हितों को अनदेखा करना और अपने वादे पूरे करने की जरा सी कोताही से भाजपा को यह भारी जीत ‘भारी’ भी पड़ सकती है.
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