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भारत के एक प्रधानमंत्री अपने ही गृह मंत्री और रक्षा मंत्री की मौत क्यों चाहते थे? जानिए सियासत का काला सच

सत्ता एक ऐसी भूख है जिसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति साम, दाम, दंड, भेद हर तरह की नीतियों को अपनाता है. उसका मकसद ही होता है कि किसी भी उचित या अनुचित तरीके से सत्ता के सर्चोच्च शिखर पर पहुंचकर सब कुछ अपने पक्ष में किया जाए. इतिहास में घटित घटनाएं इस बात की साक्षी हैं कि सत्ता को हासिल करने वाले लोग जरूरत पड़ने पर अपनों की ही जान लेने में नहीं गुरेज करते.


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बात 2008 की है जब जाने माने वकील शांति भूषण दुनिया के सामने एक ऐसी किताब लेकर आए थे जिसमें भारतीय राजनीति की अंदरूनी वास्तविकता छिपी हुई थी. किताब का नाम कोर्टिंग ‘डेस्टिनी’: ए मेमॉयर है. इसके लेखक स्वयं शांति भूषण हैं. इस किताब में जनता पार्टी के शासन काल के दौरान गोपनीय बातों का उल्लेख है. शांति भूषण जनता पार्टी के शासन काल में कानून मंत्री थे.


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शांति भूषण की मानें तो तब के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उनके ही करीबी नेता गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह और रक्षा मंत्री जगजीवन राम के मरने का इंतजार कर रहे थे. यही नहीं चौधरी चरण सिंह भी मोरारजी देसाई की मौत देखना चाहते हैं.


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उनकी किताब ‘डेस्टिनी’ बताती है कि किस तरह से नेताओं की एक-दूसरे की महत्वाकांक्षाओं को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही थीं. तब की घटनाओं का जिक्र करते हुए भूषण ने लिखा है कि जब मार्च 1977 में जनता पार्टी को जीत हासिल हुई थी तब पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए तीन उम्मीदवारों के नाम की चर्चा जोरों पर थी. मोरारजी देसाई के अलावा दो अन्य व्यक्ति जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह थे. जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री कौन बनेगा इसका निर्णय लेने का अधिकार जयप्रकाश नारायण और आचार्य जे.बी. कृपलानी पर छोड़ा गया था. मोरारजी देसाई के राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए दोनों ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया. मोरारजी देसाई पूर्व में उप प्रधानमंत्री भी रह चुके थे.


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मोरारजी देसाई और चरण सिंह को शामिल कर भूषण दो घटनाओं का जिक्र करते हैं. पहली घटना: उनके अनुसार तत्कालीन गृह मंत्री चरण सिंह ऐसे समय चुनाव सुधारों को लेकर हुई मंत्रिमंडल समिति की बैठक में देर से आए जब यह अफवाह जोरों पर थी कि चरण सिंह विद्रोह कर खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. समिति में चार सदस्य थे. चौधरी चरण सिंह, लाल कृष्ण आडवाणी और पीसी चंदर के साथ भूषण भी समिति के एक सदस्य थे. भूषण ने लिखा है कि चरण सिंह ने उन्हें देरी का कारण बताते हुए कहा कि जब वह कार में बैठने वाले थे तो पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया और पूछने लगे कि क्या वह प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक हैं. भूषण लिखते हैं कि इस पर चरण सिंह आपा खो बैठे और बोले प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने में क्या गलत है, लेकिन मैं मोरारजी को हटाकर पीएम नहीं बनना चाहता. चरण सिंह यहां तक कह गए कि किसी दिन मोरारजी मर जाएंगे और तब पीएम बनने की मेरी महत्वाकांक्षा पूरी होने में कुछ भी गलत नहीं है.


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दूसरी घटना: चरण सिंह की महत्वाकांक्षा वाली बात जब भूषण ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से की तो उनकी भाषा भी पूरी तरह से बदल चुकी थी. बातचीत के दौरान देसाई ने भूषण से कहा कि पहले कौन मरेगा इस बात को लेकर चरण सिंह इतने आश्वस्त कैसे हो सकते हैं. उनके कहने का अर्थ था कि मेरी मौत से पहले उनकी भी तो मौत हो सकती है. चरण सिंह पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से छह साल छोटे थे, लेकिन स्वास्थ्य के मामले में देसाई उनसे काफी बेहतर स्थिति में थे. भूषण की माने तो यही वजह थी जहां देसाई को पूरा भरोसा था कि वह चरण सिंह से ज्यादा दिन तक जिएंगे.


बातचीत के दौरान मोरारजी देसाई धीरे से भूषण के कान में कहते है कि एक ज्योतिषी ने मुझसे कहा है कि एक साल अंदर मेरे मंत्रालय से दो सीनियर मंत्रियों की मौत हो जाएगी. उनमें से एक तो चरण सिंह है और दूसरे जगजीवन राम.


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