“अन्ना तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं”, “मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना”, “अन्ना हजारे आंधी है…देश का दूसरा गांधी है’ ये कुछ नारे हैं जिसने ढाई साल पहले प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे को गांधी के समकक्ष ला खड़ा कर दिया था. आम लोग और उनके समर्थक उनमें महात्मा गांधी का अक्श देखने लगे थे. कहा यह भी जाने लगा कि अन्ना हजारे आधुनिक भारत के एक ऐसे महात्मा गांधी हैं जो अंग्रेजों की तरह ही देश से भ्रष्टाचार को बाहर खदेड़ेंगे. लेकिन बीते दो सालों में ऐसा क्या हुआ कि गांधीवादी अन्ना हजारे सबसे बड़े पलटू और धोखेबाज साबित होने लगे.
यहां हम आपको कुछ ऐसी घटनाएं बताने जा रहे हैं जिनके आधार पर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या सचमुच में अन्ना हजारे सबसे बड़े पलटू हैं:
अन्ना के लिए राजनीति कीचड़ नहीं है
अन्ना हजारे बार-बार यह कहते रहे कि राजनीति कीचड़ है, मैं इसमें जाने का पक्षधर नहीं हूं, लेकिन अतीत की घटनाएं बताती हैं कि अन्ना ने राजनीति और राजनेताओं के साथ जमकर गलबहियां की हैं. वे शरद पवार, बाल ठाकरे से लेकर विलासराव देशमुख तक सबके साथ अंतरंगता के साथ काम कर चुके हैं. विलासराव देशमुख के साथ उनके मधुर संबंध आज भी याद किए जाते हैं.
अपनी टीम को ही धर्म संकट में डाल देते थे अन्ना
अन्ना के बारे ऐसा माना जाता है कि उन्हें कोई आसानी से मना सकता है जिसकी वजह से कई बार भंग हो चुकी टीम अन्ना धर्म संकट में पड़ जाती थी. इस वाकये के जरिए इसे समझा जा सकता है. अगस्त में दिल्ली के आंदोलन के बाद टीम अन्ना ने अनशन के लिए मुंबई का स्थान चुना. हालांकि यह आंदोलन पूरी तरह से फ्लॉप रहा. इसी दौरान अन्ना और उनकी टीम ने घोषणा कर रखी थी कि वे उत्तर प्रदेश समेत उन पांच राज्यों में कांग्रेस को हराने का अभियान छेड़ेंगे जिनमें विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित थे और इस अभियान का नेतृत्व अन्ना हजारे करेंगे. लेकिन मुंबई में असमय ही अनशन खत्म करते वक्त अन्ना ने जो बयान दिया वह चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा, ‘अगर कांग्रेस संसद के शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल को पारित करवा देती है तो मैं विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और यूपीए का समर्थन करूंगा.’ यह ऐसी हास्यास्पद स्थिति थी जिससे निपटना टीम अन्ना के सदस्यों को भारी पड़ रहा था. मजबूरन टीम ने यह कहकर इस बयान से पिंड छुड़ाया कि कि अन्ना की तबियत ठीक नहीं है इसलिए वे उत्तर प्रदेश अभियान से अलग रहेंगे. माना जाता है कि तब अन्ना के इस बयान से पहले रालेगण सिद्धि में कुछ कांग्रेसी नेताओं के साथ उनके लोगों की मुलाकात हुई थी.
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राजनीतिक पार्टी बनाने को लेकर
राजनीति को कीचड़ मानने वाले अन्ना हजारे ने ही सबसे पहले राजनीतिक पार्टी बनाने की बात कही थी. अरविंद केजरीवाल की मानें तो जनवरी 2012 में जब अन्ना अस्पताल में भर्ती थे उस दौरान उन्होंने एक छोटी सी मीटिंग में यह बात स्वीकारी कि अब आंदोलन को राजनीतिक रूप देना चाहिए, हालांकि बाद में अन्ना हजारे पलट गए.
बड़ा समाजसेवक छोटी सोच
अक्टूबर 2012 में पाकिस्तान से सिविल सोसाइटी के सदस्यों का एक समूह अन्ना हजारे से मिलने भारत आया हुआ था. उनकी मंशा पाकिस्तान में भी अन्ना की तर्ज पर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खड़ा करने की थी. अन्ना से मिलने के बाद पाकिस्तानी सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता भी दिया. अन्ना ने सार्वजनिक रूप से उन्हें भरोसा दिया कि वे पाकिस्तान आएंगे और भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाएंगे, हालांकि वह पाकिस्तान गए नहीं. इस मुलाकात के ठीक एक हफ्ते बाद अन्ना ने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए ऐसी बात कही जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी. जोश में अन्ना ने बयान दिया कि अगर उन्हें मौका मिलेगा तो एक बार फिर से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध करने को तैयार हैं.
लोकपाल के मुद्दे पर पलटे
हाल ही में अन्ना लोकपाल बिल पास करवाने के लिए रालेगण सिद्धि में अनशन पर बैठे थे. अन्ना का यह अनशन पुराने जनलोकपाल बिल के लिए नहीं था जिसे भंग हो चुकी अन्ना टीम ने तीन साल पहले तैयार किया था. यह केंद्र का वही बिल था जिसे अन्ना हजारे ने कभी कमजोर बिल कहा था.
बहरहाल केंद्र सरकार ने इस बीच अपना लोकपाल पारित कर दिया जिसे अनशन पर बैठे अन्ना ने अपनी जीत घोषित करते हुए स्वीकार कर लिया. लेकिन जब उनके पुराने सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के लोकपाल की इस आधार पर आलोचना की कि इसमें वादे के मुताबिक तीन प्रमुख बिंदुओं को शामिल ही नहीं किया गया है तब अन्ना हजारे ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया, ‘यह लोकपाल मजबूत है. अगर अरविंद को इससे कोई परेशानी है तो वे अपना लोकपाल खुद बना लें’.
तृणमूल कांग्रेस से धोखा
राजनीति से दूर रहने की बात कहने वाले अन्ना हजारे ने पिछले महीने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन में लोकसभा चुनावों के दौरान देशभर में चुनाव प्रचार करने की बात कही थी, लेकिन अन्ना यहां भी अपनी बात पर टिक नहीं पाए. कुछ दिन पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में तृणमूल कांग्रेस ने एक रैली का आयोजन किया था. उस रैली में अन्ना हजारे नहीं पहुंचे. कहा जाता है कि यह रैली अन्ना हजारे के आह्वान पर आयोजित की गई थी. बीते शुक्रवार को उन्होंने एक महत्वपूर्ण बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) का समर्थन करते हैं, लेकिन उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का नहीं.
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