राजनीति, चुनाव और भ्रष्टाचार के बीच झूलती आज की सभी राजनीतिक पार्टियां और किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी आम जनता की हालत कुछ भूलभुलैया में घूमने जैसी है. घूमते हुए लगता है अभी छोर आएगा लेकिन रास्ता है कि किसी और ही तरफ मुड़ जाता है. इस भूलभुलैया में जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाले पहेलीनुमा मोड़ हैं वह हैं खुद अरविंद केजरीवाल. वादों की फेरहिस्त में एक और वादाखिलाफी करते अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी दिल्ली की जनता के लिए किसी पहेली से कम नहीं नजर आ रहे.
आम आदमी पार्टी के उदय काल से ही अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी का मुख्य मुद्दा रहा बिजली, पानी जैसी मूलभूत जरूरतों में सरकारी स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार के कारण दिल्ली की जनता को हो रही परेशानियों से मुक्ति दिलाना. इसके लिए बिजली कंपनियों की ऑडिट करवाना, 700 लीटर पानी मुफ्त देना तथा भ्रष्टाचार निरोधी जन-लोकपाल बिल पारित करवाना उनका मुख्य मुद्दा रहा. केजरीवाल के वादों का असर कहें या दिल्ली की जनता का प्रयोग करने का स्वभाव, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पहले ही चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. फिर शुरू हुआ उनके द्वारा किए वादों को पूरा करने का केजरीवाल मुहिम. ‘मुहिम’ इसलिए क्योंकि मौजूदा सरकार और व्यवस्था में तमाम गलतियां, अनीतियां गिनाते हुए जिसके केंद्र में मूल रूप से भ्रष्टाचार ही गिनाया गया था, केजरीवाल और आप पार्टी के साथ जुड़कर इसे पूरा करने को मुहिम का रूप ही दिया गया था. केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने की रूपरेखा खींचकर एक प्रकार से दिल्ली की जनता ने उन्हें इस मुहिम को चलाने की हरी झंडी दिखाई जिसके अगुआ केजरीवाल थे. इसलिए इस हरी झंडी के सिग्नल पर केजरीवाल को इस मुहिम के तमाम वादों को पूरा करने की यात्रा शुरू करनी थी.
केजरीवाल का वादा था कि सरकार के बनते ही दो दिनों के अंदर पानी बिल और बिजली के बेतहाशा बढ़ते बिल पर विराम लगाएंगे. सरकार आई और पहले हफ्ते ही दिल्ली वालों को 666 लीटर मुफ्त पानी देने की घोषणा कर दी गई और इसके साथ केजरीवाल की वादाखिलाफी का दौर शुरू हो गया. पहला तो 700 की जगह 666 लीटर पानी की सुविधा, दूसरा कि इसमें तमाम तरह की बातों के साथ पूरी दिल्ली को यह सुविधा नहीं मिल सकती थी. विवाद शुरू हुए तो केजरीवाल ने चुप्पी साध ली. दूसरी वादाखिलाफी बिजली के मुद्दे पर. केजरीवाल ने सरकार बनने के तुरंत बाद तत्काल प्रभाव से बिजली कंपनियों का ऑडिट करवाने और मीटर का बिल आधा करने का वादा किया था. यह भी न होकर तमाम तरह की ऑडिट की दिक्कतें सामने आईं और केजरीवाल ने थोड़ा समय मांग लिया. फिर उन्होंने बात कही प्रशासनिक स्तर पर लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए जनता दरबार लगाने की पर यह भी तमाम तरह की दिक्कतें बताकर टेक्नो-फेंडली बना दी गई. दिल्ली पुलिस के असहयोगी रवैये से जनता को सुरक्षा देने के लिए आंदोलन करने बैठे 10 दिनों के लिए और दो दिनों में बिना कोई हल निकले आंदोलन स्थगित कर दिया. अब बात आई है केजरीवाल के बहुचर्चित या यूं कहें आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के राजनीति के केंद्र में कुछ देर के लिए आ पाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले तत्व ‘जन लोकपाल बिल’ की. केजरीवाल ने इसे 15 दिनों में पारित करवाने का वादा किया था. वह मियाद 13 फरवरी तक बढ़ा दी गई. उन्होंने विधानसभा में ‘जन लोकपाल बिल’ पारित न किए जाने की दशा में सरकार से इस्तीफा दे देने की बात कही पर अब केजरीवाल इसे आज विधानसभा में पेश नहीं कर रहे हैं.
इस तरह डेढ़ महीनों की सरकार में केजरीवाल ने किसी भी वादे को पूरी तरह पूरा नहीं किया. शुरुआत करते हुए आधे-अधूरे वेश में उन्होंने उसे छोड़ दिया. अब दिल्ली की जनता के लिए जहां केजरीवाल के बार-बार के इस वादाखिलाफी के कारण उन पर विश्वास करना मुश्किल हो गया है. कहते हैं काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती तो कहीं ऐसा न हो कि लोकसभा चुनाव में केजरीवाल की यह कंफ्यूज छवि जनता नकार दे.
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