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नस्लभेद विरोध के वैश्विक प्रतीक – नेल्सन मंडेला

एक राजनीतिक कार्यकर्ता जब सामाजिक कार्यों के लिए जागरुक होता है तभी वह वास्तव में एक नेता बन पाता है. राजनीति की परिपाटी में सामाजिक चेतना की धारा को फिट करना आज शायद दूर की कौड़ी लगती हो लेकिन नेल्सन मंडेला ने इसी चेतना के साथ राजनीति की शुरुआत की थी और इसी चेतना ने उन्हें विश्व का दूसरा बापू और दक्षिण अफ्रीका का मसीहा बना दिया.


mandela photoदक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का स्वतंत्र अफ्रीका को अपनी राजनीति देने में जितना योगदान रहा उतना ही शायद विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने में भी रहा. 27 साल जेल में गुजारकर भी दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद से मुक्ति दिलाने और नस्लभेद-रहित एक स्वतंत्र सरकार देने के प्रयास उन्होंने छोड़े नहीं. वह उनका एक राजनीतिक प्रयास था और साथ ही सामाजिक भी क्योंकि दक्षिण अफ्रीका या कहीं भी नस्लभेद जितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा था इससे कहीं बड़ा यह एक सामाजिक मुद्दा था. अश्वेत लोगों की राजनीति में भूमिका नगण्य थी, उनके राजनीतिक अधिकार नगण्य थे और इसके साथ ही सामाजिक जीवन में मुख्य धारा से उन्हें बाहर कर दिया गया था. उनके अधिकार अछूतों की तरह थे. नेल्सन मंडेला ने अस्पृश्यता की इस संवेदना को महसूस करते हुए राजनीतिक जीवन की शुरुआत की.


राजनीतिक और सामजिक जीवन में महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला में कई समानताएं थीं. दक्षिण अफ्रीका दोनों की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को जगाने वाला साबित हुआ हालांकि मूल रूप से अफ्रीका के होने के कारण मंडेला का कार्यस्थल भी अफ्रीका ही था. इसके साथ ही ‘नस्लभेद विरोध’ और ‘वकालत’ नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी में एक और बड़ी समानता थी. दोनों ने ही अहिंसा के सिद्धांतों के साथ अपने देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को दुरुस्त करने का जो अदम्य साहस दिखाया वह शायद इतिहास में अपनी तरह का अकेला वाकया हो. हालांकि यहां भी बीच में नेल्सन मंडेला ने अहिंसा के सिद्धांतों के खिलाफ हिंसात्मक ‘गुरिल्ला युद्ध’ अपनाया लेकिन इस युद्ध में किसी भी जान के नुकसान का पूरी तरह ध्यान रखा जाता था. इस तरह अहिंसा और शांति के संदेश के साथ अपने देश को एक न्यायसंगत सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था देने के लिए नेल्सन मंडेला ने अपना आधा जीवन दे दिया लेकिन अधीर नहीं हुए. 1993 में स्वतंत्रता और समानता के लिए उनके संघर्ष की गूंज का असर ही था कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया और इसके साथ ही 1994 में वे दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बन गए.

कर्मठ, प्रतिबद्ध, शौकीन और रोमांचक मंडेला


जिस तरह महात्मा गांधी को भारत में राष्ट्रपिता का दर्जा प्राप्त है, नेल्सन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका में लेकिन इससे इतर, इससे कहीं बड़ा पद विश्व परिदृश्य में दोनों की अहिंसात्मक राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियां सम्मान प्राप्त हैं. 5 दिसंबर को इनके देहांत से पूरी दुनिया शोकाकुल है. सभी अपने-अपने तरीके से इनके निधन पर संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हैं. भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर कहा कि महात्मा गांधी को तो हम नहीं देख सके लेकिन नेल्सन मंडेला को देखने का मौका हमें मिला. यह वास्तव में हमारे लिए एक खुशी की बात थी कि महात्मा गांधी को सिर्फ इतिहास में पढ़ने का मौका मिला हमें लेकिन नेल्सन मंडेला को हमने अपने बीच देखा. यह एक अच्छी बात है कि आज के हमारे नेता भी नेल्सन मंडेला की मौजूदगी की महत्ता समझ रहे हैं. लेकिन जरूरत कहीं इससे ज्यादा है. नेल्सन मंडेला की राजनीति हमारे राजनेताओं के लिए एक प्रेरणा बन सकती है. हालांकि आम रूप में देखें तो यह प्रेरणा आजादी के लिए शहीद हुए हर वीर से आज के नेता ले सकते हैं लेकिन क्योंकि बात एक बड़े प्रशंसित चेहरे के साथ लीडर की भूमिका निभाने की है. नेल्सन मंडेला ने साउथ अफ्रीका के परिप्रेक्ष्य में कहा था, “हमारे देश में पहले जेल जाते हैं, फिर राष्ट्रपति बनते हैं”. यह बात भले ही किसी और संदर्भ में कही गई थी लेकिन वास्तव में इसका अर्थ एक राजनेता का सामाजिक वजूद परिभाषित करता है.


मंडेला हमेशा गांधी से समर्थित रहे. भारत के साथ मंडेला के रिश्ते हमेशा मधुर रहे क्योंकि भारत पहला देश था जिसने साउथ अफ्रीका की आजादी का समर्थन किया. हमने अपने ही देश में ‘बापू’ की शख्सियत भी देखी है लेकिन मंडेला उनसे अलग इसलिए थे क्योंकि उन्होंने जरूरत पड़ने पर अहिंसा का पालन करते हुए ‘गुरिल्ला युद्ध’ जैसी पद्धतियों को भी अपनाया. आज पूरा विश्व मंडेला के निधन पर शोकाकुल है. एक शांति के समर्थक के साथ-साथ एक महान नेता के खो जाने का शोक समूचे विश्व को है. लेकिन मंडेला का राजनीतिक जीवन हमेशा सामाजिक जीवन को प्राथमिकता देकर चला. भारतीय राजनीति में मंडेला की सामाजिकता को समाहित करने की नितांत आवश्यकता है.

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