कहने को लोकतंत्र में जनता के पास अपना प्रतिनिधि चुनने का विकल्प होता है. लेकिन यह ध्यान देना आवश्यक है कि इन विकल्पों में कितने विकल्प हैं जो जनता की वास्तविक पसंद होते हैं. हाल में ही हाइकोर्ट ने आदेश पारित किया कि दागी और सजायाफ्ता सांसदों और मंत्रियों को संबंधित सदनों की सदस्यता समेत पद भी छोड़ना पड़ेगा. इसके साथ ही 2 साल या इससे ज्यादा की सजा पाए मंत्री अगले 6 सालों तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बहुत हंगामे हुए. विरोध के स्वर इतने मुखर हुए कि कांग्रेस इसे निरस्त करने के लिए अध्यादेश ले आई. यह और बात है कि इस अध्यादेश को लागू नहीं किया गया. लेकिन एक नए रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली समेत देश के कई राज्यों के विधायक आपराधिक मामलों में लिप्त हैं बावजूद इसके वे अपने-अपने प्रदेश के विधायक हैं.
नेशनल इलेक्शन वाच (न्यू) एवं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़े बताते हैं कि 2008 के एसेंबली चुनावों के दौरान दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में 43 प्रतिशत निर्वाचित विधायक आपराधिक मामलों में लिप्त हैं. देश की राजधानी में इतनी बड़ी संख्या में आपराधिक चरित्र वाले दागी विधायकों की सूची लोकतंत्र के निष्पक्ष प्रवाह पर प्रश्नचिह्न लगाती है. अगर चुनाव में खड़ा हुआ प्रत्याशी ही दागदार है और जनता के पास उनमें से एक को ही चुनने का विकल्प है तो निश्चित तौर पर कोई न कोई दागी प्रतिनिधि ही चुनाव भी जीतेगा. ऐसे में एक और संभावना यह उभरती है कि ऐसे दागी व्यक्तित्व चुनाव को प्रभावित भी कर सकते हैं, इसलिए न्यू के ये आंकड़े बहुत महत्व रखते हैं.
एक और गौर करने बात यह है कि इन राज्यों के विधायकों की संपत्ति. देश की राजधानी दिल्ली सबसे अमीर विधायकों की राजधानी है. यहां 69 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं. इसी से लगा राजस्थान भी 46 प्रतिशत करोड़पति विधायकों के साथ दूसरे नंबर पर है और 1 आपराधिक मामले में लिप्त विधायकों में 11 प्रतिशत के साथ प्रथम स्थान पर आने वाला मध्य प्रदेश भी 38 प्रतिशत करोड़पति विधायकों के साथ तीसरे नंबर पर है. गौरतलब है कि दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ में आपराधिक मामलों में लिप्त पाए गए विधायकों का प्रतिशत भी 9 तथा मिजोरम में 7 प्रतिशत पाया गया.
महिला सशक्तिकरण की चर्चा पूरे देश में हर चुनाव का अहम मुद्दा होता है. पर दागी मंत्री और दागी विधायकों के साथ इसमें महिलाओं की भूमिका लगभग नगण्य ही मानी जाएगी. 5 एसेंबलियों के 630 विधायकों में मात्र 11 प्रतिशत ही महिला विधायक हैं. महिलाओं के मामले में सबसे कमजोर समझा जाने वाला राजस्थान भले ही 14 प्रतिशत महिला विधायकों के साथ इसमें सबसे ऊंचे पायदान पर हैं लोकिन मिजोरम में तो अब तक कोई महिला विधायक है ही नहीं. देश की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री भले ही शीला दीक्षित हों लेकिन यहां भी महिला विधायकों की भागीदारी मात्र 4 प्रतिशत ही है. ये सारे मामले हालांकि अलग-अलग हैं लेकिन सबका रुख एक ही ओर है और वह है लोकतंत्र के निष्पक्ष संचालन पर प्रश्नचिह्न.
ये आपराधिक मामले आज सामने आए हैं ऐसी बात नहीं है. यह और बात है कि आज इनकी रिपोर्ट तैयार की गई है जब कोर्ट ने ऐसे दागी चरित्र के मंत्रियों-विधायकों की सदस्यता और पद के विरुद्ध आदेश दे दिया है. ये वे मामले हैं जो खुद इन विधायकों ने चुनाव के दौरान अपनी जानकारी में जारी की है. इन पर दर्ज मामलों में कई विधायक ऐसे भी हैं जिन पर महिला शोषण यहां तक बलात्कार के मामले भी चल रहे हैं. इसके बावजूद हर पार्टी इन्हें चुनाव का टिकट देती है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद लालू यादव समेत कई मंत्री नप चुके हैं, कई नपने की राह में हैं. उम्मीद यही की जाएगी कि लोकतंत्र में राजनीति का जो ताना-बाना लोकतंत्र के सुलभ संचालन के लिए किया गया है वह आपराधिक प्रवृत्तियों से बचते हुए सही दिशा में जाएगा और कोर्ट का आदेश इसमें मील का पत्थर साबित होगा.
MLAs In Criminal Cases In Hindi
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