नरेंद्र मोदी का कहना है कि ‘कट्टर हिंदूवादी होने के बावजूद वे देवालय से ज्यादा शौचालय बनाने को प्राथमिकता देंगे’. नरेंद्र मोदी का यह स्टेटमेंट तब आया है जब भाजपा और आरएसएस नरेंद्र मोदी को पीएम इन वेटिंग बनाकर पेश कर चुके हैं. विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने नरेंद्र मोदी के इस कथन पर कड़ा विरोध जताया है. पर इसके अलावे भी मोदी का यह बयान राजनीतिक हलके और इससे बाहर भी भाजपा के राजनीतिक समीकरण और मोदी की लय पर सवाल बनकर घूमता नजर आता है.
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पहले जब कांग्रेस के ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने अपने एक भाषण में ऐसा ही वक्तव्य दिया था कि वे ‘देवालय से ऊपर शौचालय को रखते हैं’ तो उस पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई थी. इस एक छोटे से वक्तव्य को भाजपा ने हिंदू धर्म और मंदिरों के अपमान से जोड़कर हो-हल्ला मचाया लेकिन आज भाजपा के अपने ही ‘पीएम इन वेटिंग कैंडिडेट’ वही बयान देते हैं और आरएसएस-भाजपा को इस पर आपत्ति नहीं. भाजपा और आरएसएस जो अयोध्या में मंदिर बनाने को पहली प्राथमिकता में रखते हैं, मंदिर निर्माण जिनके मुख्य एजेंडे में है उसका पीएम इन वेटिंग कैंडिडेट ऐसा बयान दे तो वाकई यह सोचनीय है कि पार्टी का एजेंडा अचानक क्यों और कैसे बदल गया. एक सवाल कि कहीं मोदी और भाजपा अवसरवादी राजनीति का लाभ तो नहीं लेना चाहते?
आज के हालात कुछ ऐसे हैं कि कांग्रेस के अलावे कोई भी पार्टी केंद्र में सत्ता बनाने की स्थिति में नहीं है. एक भाजपा ही इसके सामने सबसे बड़ी पार्टी बनकर खड़ी हो सकने की थोड़ी-बहुत संभावना दिखाती है लेकिन यहां बंटे हुए वोटों की राजनीति है और भाजपा के लिए मुस्लिम वोट का न होना इसकी बड़ी कमजोरी बन जाती है. भाजपा के राजनीतिक एजेंटे में हिंदुत्व हमेशा प्राथमिकता रही है. अयोध्या में मंदिर निर्माण की प्राथमिकता को भी वह पहले ही अपने एजेंडे में साफ कर चुकी है. अब जब मोदी कहते हैं कि वे देवालय से पहले शौचालय बनाना पसंद करेंगे तो क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि अपने अयोध्या में वे मंदिर की जगह शौचालय बनाएंगे? या भाजपा कांग्रेस की राजनीतिक रणनीतियों के मुकाबले खुद को कमजोर मान रही है और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने के लिए हाथ-पांव मार रही है?
ऐसा लगता है जैसे भाजपा भावी लोकसभा चुनाव के लिए घोर आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही है. वह अपना राजनीतिक समीकरण तय ही नहीं कर पा रही. भारतीय राजनीति के लिए यह बात सही नहीं कही जा सकती. सबसे बड़ी विपक्ष की पार्टी बेतुकी बयानबाजियां और बेतुके वक्तव्यों के साथ राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में है और सबसे बड़ी पार्टी को चुनौती देने वाली और कोई पार्टी नजर नहीं आती. दोनों ही सूरत एकतरफा बेधड़क राजनीति के हालात पैदा करते हैं. भाजपा को निहायत जरूरत है कि वह अपने राजनीतिक एजेंडे को मजबूत करे और एक स्वस्थ राजनीति का हिस्सा बनकर लोकतंत्र को सुचारु रूप से चलाने में अपना योगदान दे. सिर्फ मोदी का व्यक्तित्व और विवादित बयानबाजियां उसे विवादों में ला सकती हैं लेकिन चुनाव नहीं जिता सकतीं.
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