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छोटा भाल पर हौसला था बेमिसाल

दो अक्टूबर को देश दो महापुरुषों को याद करता है. एक तरफ दुनिया को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तो दूसरी तरफ ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री.


लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. उनका जन्मदिवस गांधी जी के जन्मदिवस के समान होने की तरह व्यक्तित्व और विचारधारा भी गांधी जी के जैसे ही थे. शास्त्री जी गांधी जी के विचारों और जीवनशैली से बेहद प्रेरित थे. शास्त्री जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीवादी विचारधारा का अनुसरण करते हुए देश की सेवा की और आजादी के बाद भी अपनी निष्ठा और सच्चाई में कमी नहीं आने दी.


भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था. वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने. जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जून, 1964 को प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया. शास्त्री जी का प्रधानमंत्री पद के लिए कार्यकाल राजनैतिक सरगर्मियों से भरा और तेज गतिविधियों का काल था. पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर नजरें गड़ाए खड़े थे तो वहीं देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं भी थीं. लेकिन शास्त्री जी ने हर समस्या को बेहद सरल तरीके से हल किया. किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश के सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया. “जय जवान, जय किसान” के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया.


जिस समय वह प्रधानमंत्री बने उस साल 1965 में पाकिस्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने की योजना बनाई थी. लेकिन शास्त्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए पंजाब के रास्ते लाहौर में सेंध लगा पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. इस हरकत से पाकिस्तान की विश्व स्तर पर बहुत निंदा हुई. पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ से संपर्क साधा जिसके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए. इस समझौते के तहत भारत-पाकिस्तान के वे सभी हिस्से लौटाने पर सहमत हो गया जहाँ भारतीय फौज ने विजय के रूप में तिरंगा झंडा गाड़ दिया था.


इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया. हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं लाई गई है. उनके परिजन समय-समय पर उनकी मौत पर सवाल उठाते रहे हैं. यह देश के लिए एक शर्म का विषय है कि उसके इतने काबिल नेता की मौत का कारण आज तक साफ नहीं हो पाया है. साल 1966 में ही उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था जो इस बात को साबित करता है कि शास्त्री जी की सेवा अमूल्य है.


शास्त्री जी की मौत का रहस्य

लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी विवाद

ऐसा माना जाता है कि जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने उस समय कुछ लोग थे जो नहीं चाहते थे कि वे जवाहर लाल नेहरू के बाद उत्तराधिकारी बनें. उनमें से जवाहर लाल नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी भी थीं. इंदिरा गांधी लालबहादुर शास्त्री की सरकार में तब सूचना प्रसारण मंत्री हुआ करती थीं.


इंदिरा गांधी की लाल बहादुर शात्री के प्रति नाराजगी एक खत के जरिए जाहिर हो जाती है. इंदिरा गांधी ने तीन मूर्ति भवन के बारे में लाल बहादुर शात्री लिखा था कि तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिता जी पंडित नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या आप खुद वहां रहना चाहते हैं? इस बात पर अगर आप शीघ्र फैसला करते हैं तो बेहतर होगा. वैसे मैं ये हमेशा मानती रही हूं कि तीनमूर्ति भवन रिहाइश के लिहाज से बहुत बड़ा है. लेकिन पंडित नेहरु की बात अलग थी उनसे मिलने वालों की तादाद बहुत ज्यादा होती थी. अब शायद मुलाकात करने वालों की तादाद उतनी ना रहे.

तीन मूर्ति भवन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का आवास था. उनके बाद में उनकी स्मृति में इसे संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया है.


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