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‘आजम खान’ इस पूरी महाभारत के शकुनि साबित होते हैं !!

muzaffarnagar riots news in hindiपहले एक बयान आता है और सपा कहती है कि मुजफ्फरनगर के दंगों की स्थिति पर अखिलेश यादव ने 2 दिनों में काबू में कर लिया यह उनकी सक्षमता है. इसके बाद ही मुस्लिम संगठन जमात उलेमा ए हिंद सपा सरकार पर दंगों पर उपेक्षित रवैया अपनाने और इस कारण दंगों के अधिक भड़कने की बात कहती है. उलेमा के बाद पार्टी के ही प्रतिष्ठित नेता आजम खान ने आगरा में हुई सपा की राष्ट्रीय बैठक में शामिल न होकर अखिलेश सिंह यादव की सरकार को दंगों को काबू में करने के लिए समय रहते कार्रवाई न करने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया. सपा के सभी नेता आजम खान के इस रवैये से नाखुश थे. पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रामगोपाल यादव भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए खान को सीधे-सीधे यह चेतावनी देते हैं कि अगर उन्हें पार्टी में नहीं रहना तो वे त्यागपत्र देकर पार्टी से अलग हो सकते हैं. इसी सिलसिले में आजम खान का बयान कि ‘अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर में ‘मोदी का काम’ किया है’ भी उल्लेखनीय है. इस तरह अपने ही मंत्रियों की नाराजगी झेलती दिख रही अखिलेश सरकार दंगे करवाने में सरकार की भूमिका होने के विपक्ष के आरोपों से सुरक्षित नजर आ रही थी. सरकार पर मुसलमानों को शह देने का आरोप लग रहा था लेकिन अगर ऐसा होता तो उसके अपने ही मुस्लिम मंत्री और मुस्लिम संगठन उस पर आरोप नहीं लगाते. लेकिन ‘आज तक’ के स्टिंग ऑपरेशन में जो सच सामने आया है वह राजनीति के एक गंदे खेल का एक बार फिर खुलासा करता है.

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मुजफ्फरनगर दंगों के लिए पक्ष-विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला घटना के सामने आने के बाद से ही चल रहा था. मामले ने जब राष्ट्रीय तूल पकड़ लिया तो आनन-फानन में मुजफ्फरनगर के कई बड़े पुलिस अफसरों को दो समुदायों के बीच आपसी झड़प को सुलझाने में लापरवाही बरतकर दंगे भड़काने के लिए दोषी बताकर निलंबित कर दिया गया. आगरा में हुई सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सपा ने इसे अखिलेश यादव की सक्षम कार्यशैली बताई कि इसने दो दिनों में दंगों पर काबू पा लिया. लेकिन इसके तुरंत बाद जमात ए उलेमा का एक विवादास्पद बयान आ जाता है कि दंगे यूपी सरकार ने करवाए. उनका कहना था कि यूपी सरकार ने मुस्लिमों को दंगों में मरने के लिए छोड़ दिया. कमाल की बात है कि इससे पहले अखिलेश सरकार और सपा भाजपा पर मुजफ्फनगर में दंगे भड़काने का आरोप लगा रही थी.


muzaffarnagar riots news in hindiएक बार को यह सब उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के विरोध में उठ रही मुस्लिम हवाएं लगने लगीं. ऐसा लगने लगा कि दंगों के बाद सपा का मुस्लिम वोट कमजोर पड़ रहा है. मुस्लिम संगठन ‘जमात-ए-उलेमा’ ने तो लापरवाही बरतकर दंगे भड़काने के आरोप में अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी तक की मांग कर ली. सपा जो मुसलमानों का खैरख्वाह मानी जाती है, जिसके पास यूपी का मुस्लिम वोट हमेशा सुरक्षित माना जाता है, उस पर अगर एक मुस्लिम संगठन मुसलमानों को मरवाने और उनके खिलाफ दंगे भड़काने का आरोप लगाती है तो निश्चय ही यह सपा सरकार के लिए अच्छा नहीं माना जाता. यह तो फिर भी एक बाहरी संगठन की बात थी, लेकिन बात इससे बढ़कर पार्टी के अंदर पहुंच गई. पार्टी का एक कद्दावर और जिम्मेदार नेता (आजम खान) अपनी सरकार को ही इसका जिम्मेदार बता देता है, और सिर्फ जिम्मेदार नहीं बताता बल्कि पार्टी के खिलाफ असहयोगात्मक रवैया भी अपना लेता है. पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा नहीं लेता, अपनी ही सरकार को ‘अपने लोगों (मुस्लिम समुदाय) को मरवाने’ के लिए जिम्मेदार बताता है. कमाल की बात है जब मुजफ्फरनगर दंगे को मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति मानकर मुजफ्फरनगर में सपा द्वारा हिंदुओं की हत्या के लिए ढील दिए जाने की बात हो रही थी, तभी अचानक ऐसे वक्तव्य आने लग गए. बाहरी संगठनों पर तो सरकार का कोई वश नहीं था लेकिन सवाल उठने लगे कि क्या सपा अपनी ही पार्टी के नेताओं को ऐसे नाजुक मौके पर संभालकर नहीं रख सकी? क्या सपा आज कमजोर पड़ गई है? सवालों के सांचे में इस पूरे प्रकरण का रूप एक नजर में ऐसा ही कुछ नजर आया लेकिन इसका दूसरा छुपा हुआ रूप भी हो सकता है, ऐसे कयास लग रहे थे. ‘आज तक’ के स्टिंग ऑपरेशन ने इसे सही साबित कर दिया. इस कथित स्टिंग ऑपरेशन से साफ हो गया है कि इसे भड़काने में सपा सरकार की भूमिका थी. इतना ही नहीं ‘अपने लोगों’ को मरवाने का आरोप अपनी ही सरकार पर लगा रहे ‘आजम खान’ इस पूरी महाभारत के शकुनी मामा भी साबित हो गए हैं.

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सपा सरकार के लिए यह सब वोटों की जोड़-तोड़ की राजनीति का एक हिस्सा थी लेकिन एक नजर में अब तक यह सपा के मुस्लिम वोटों का टूटना नजर आ रहा था. हालांकि पहले भी कई ऐसी बातें थीं जिनकी कड़ियां जोड़ने पर सवालों का जवाब आज के सच के अंदाज में ही सामने आ रहा था. ‘जमात-ए-उलेमा’, ‘आजम खान’ दोनों के बयानों में एक बात जो समान थी वह यह कि ‘अखिलेश यादव सरकार दंगों में मुसलमानों को मरवाने…मुजफ्फरनगर में मोदी की तरह गुजरात की स्थिति लाने के लिए जिम्मेदार है’. शायद इसे ही कहते हैं ‘एक तीर से दो निशाने’ लगाना. सीधी सी लगने वाली बात का टेढ़ापन इतनी गहराई में जाकर समझने की जहमत आम आदमी तो नहीं उठाएगा. दरअसल गहराई में जाने की बात तो तब आएगी जब बात टेढ़ी लगेगी.


उत्तर प्रदेश में सपा मुस्लिमों को सपोर्ट करने वाली पार्टी के रूप में जानी जाती है. सपा के मात्र डेढ़ साल के कार्यकाल में एक नहीं कई दंगे हुए. हर दंगे में मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं की हत्या की बात सामने आई. फिर 84 कोसी परिक्रमा यात्रा को रोकने के लिए अखिलेश सरकार ने मुस्तैदी दिखाई और इसे रोका, भाजपा ने इसे सपा की मुस्लिम परस्ती रवैये के रूप में दिखाया. सपा के लिए मुश्किल यह है कि उत्तर प्रदेश में अपने मुस्लिम वोटों को यह नहीं खो सकती. लेकिन 84 कोसी परिक्रमा पर अपने रवैये से भी इसके हिंदू वोटरों को खो देने का खतरा हो सकता था. साथ ही भाजपा को ‘मोदी के हिंदूवादी रवैये’ के कारण इसका फायदा मिल सकता था जो कहीं से भी सपा के वोट बैंक के भविष्य के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता था. मुस्लिम संगठनों और पार्टी के एक मुस्लिम नेता द्वारा मुस्लिमों के नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने से सपा इन खतरों को दूर करना चाहती थी. वह दिखाना चाहती थी कि मुस्लिम वोट पाने के लिए अगर वह इस दंगे को आश्रय देती तो इस तरह मुस्लिम समुदाय और इसके अगुआ सपा की खिलाफत नहीं कर रहे होते. इसलिए अपने ही मंत्रियों द्वारा विरोध के स्वर उठाकर सपा अपनी राजनीति का सही तालमेल बिठाना चाहती थी.

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पर राजनीति के इस गंदे खेल में ‘राजनीति लाशों की’ थी. इससे फर्क नहीं पड़ता कि लाशें किस समुदाय की थीं लेकिन इससे जरूर फर्क पड़ता है कि समुदाय विशेष से जुड़े इन लाशों के आंकड़ें सांप्रदायिक सद्भावना के लिए बड़ा खतरा बन सकती हैं. वास्तव में कहना तो यह चाहिए कि खतरा बन चुके हैं. ‘मुजफ्फरपुर दंगों के महाभारत में’ आजम खान ने भी वास्तव में शकुनी मामा का ही किरदार निभाया है. एक तरफ ये अपनी ही सरकार पर मोदी बनने का आरोप लगाते हैं, दूसरी तरफ ये खुद ही मुजफ्फरनगर के मोदी बने नजर आ रहे हैं. बहरहाल कहते हैं ‘जैसा बोओगे, वैसा ही पाओगे’. अगर गुजरात दंगों पर मोदी पर आरोपों की बात भी आती है तो यह कोई नहीं भूल सकता कि मोदी आज भी अपने दामन पर लगे इस कालिख को साफ कर पाने में सफल नहीं हो सके हैं. शायद सपा सरकार ये भूल गई थी और उसने गोधरा जैसी गलती दुबारा दुहराने की हिम्मत कर ली. बहरहाल उम्मीद है कि जनता यह नहीं भूलेगी. अब देखना यह है कि अपने ही चक्रव्यूह के फांस में उलझी सपा और आजम खान जनता को इसका क्या जवाब देते हैं या बेशर्मी की मिसाल बनते हुए अब भी अपनी पीठ ही थपथपाते हैं.

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Muzaffarnagar Riots News in Hindi

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