राजनीति के तालाब में एक और तूफान बनकर आया है डीजी वंजारा का नाम. क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष हर किसी की जमीन कहीं हिल गई सी लगती है. डीजी वंजारा नाम के इस तूफान ने आज जो तबाही मचाई है वह और बात है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम ज्यादा हैं. कइयों की मुश्किलें हल कर सकता है यह तूफान, कइयों के लिए विनाशक हो सकता है. किसी भी बाबा के मंत्र से ज्यादा शक्तिशाली वंजारा नाम का यह तूफान हालांकि बाबा का ही बीजमंत्र है. लेकिन किसी के लिए प्रकोप, किसी के लिए आशीर्वाद!
सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में 7 सालों से मुंबई जेल में बंद आइपीएस डीजी वंजारा का खुलासा कि नरेंद्र मोदी के इशारे पर ही उन्होंने मुठभेड़ को अंजाम दिया और मोदी के इशारे पर ही सारे पुलिस ऑफिसर फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम दिया करते थे. ऐसे में जब भाजपा मोदी को अपने तारणहार के रूप में सामने ला रही थी, वंजारा की ये बातें मोदी के साथ-साथ भाजपा के लिए भी मुश्किलें पैदा करने वाली हैं.
भावी पीएम बनने का सपना देख रहे नरेंद्र मोदी के लिए यह पांवों तले जमीन खिसकने से कम नहीं कहा जा सकता. मोदी और भाजपा ने ऐसे किसी वक्त की कल्पना भी नहीं की होगी. अपने ईमानदार प्यादों को इस तरह पीछे खिसकता देख उनके लिए किसी आघात से कम नहीं है. पिछले कुछ महीनों से मोदी के नाम पर उत्साहिर शोर में यह आवाज एक चीख की तरह है जो राजनीति के पाले में नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती दे रही है. हालांकि गोधरा कांड की कालिख से मोदी पूरी तरह आजाद कभी नहीं हुए. मोदी की वाकपटुता ने युवाओं को लुभाया जरूर लेकिन अधिकांश ‘आम खेमा’ मोदी के पीएम ध्रुवीकरण से असहमति जताता रहा. कुछ युवाओं की पसंदगी पर ही मोदी खुश दिखते रहे. दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के बीच भाषण देकर उनके ‘गुड लिस्ट नेता’ में जुड़ जाने का सपना मोदी को साकार दिखता रहा. पर शायद यह एक दिखावा था.
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मोदी को भी पता है कि युवाओं की भीड़ किसी पाले में बहुत देर तक नहीं टिकती. टिकती भी है तो बातों तक जितना उड़ाना है, उड़ा तो लेती है, पर चुनाव में बाहर जाकर वोट देने का चस्का वे हमेशा नहीं पालते. मोदी ने दिखाया नहीं लेकिन शायद बुद्धिजीवी वर्ग में गोधरा की शंकित पहचान के साथ जाना जाना उन्हें खलता रहा. मोदी उस बुद्धिजीवी वर्ग की अपने पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए सहमति देखना चाहते थे. अपने नाम के साथ ‘धर्मनिरपेक्ष राजनेता’ की छवि जोड़ना चाहते थे. गुजरात की सीमा के अंदर पांव पसारे आसाराम बापू के नाम जब लोगों का गुस्सा उबला, मोदी को लगा कि इस मौके का लाभ लेकर वे इस छवि को अपने साथ जोड़ सकते हैं.
मोदी की परेशानी यह थी कि गोधरा कांड के साथ जोड़कर लोग उन्हें मुस्लिम विरोधी रूप में देखते थे. आसाराम बापू हिंदुओं के मान्य बाबा हैं. ऐसे-वैसे नहीं लेकिन हजारों के मान्य बाबा माने जाते हैं आसाराम बापू. भाजपा का आसाराम बापू के लिए पैरवी देख मोदी ने इसे भी शायद अपने व्यक्तिगत छवि के पक्ष में देखा. मोदी ने भाजपा को सख्त हिदायत दी कि वह आसाराम की पैरवी नहीं करेगी. इसके लिए वे काफी चर्चित भी रहे. लेकिन अपनी ‘मुस्लिम विरोधी छवि’ को सुधारने की उनकी कोशिश उन्हीं पर उल्टी पड़ गई.
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आसाराम के भक्त डीजी वंजारा से उनकी यह दुर्दशा देखी नहीं गई. वह भी तब जब उनके परमपूज्य बापू की इस दुर्दशा में वह इंसान भागीदार बन रहा था जिसके लिए वंजारा ने अपनी जिंदगी के कई साल कुर्बान कर दिए थे. एक भगवान वह था जिसकी तरफ से उसे कभी बुरा नहीं मिला था और दूसरा भगवान वह था जिसकी उपेक्षा को उसने अब तक अपना अहित नहीं माना था क्योंकि उसे इस भगवान पर भी भरोसा था. लेकिन उसकी उपेक्षा करने वाला भगवान अब उसके दूसरे भगवान को चोट पहुंचाने की कोशिश में था. वंजारा से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने मोदी की कलई दुनिया के सामने खोल दी. वंजारा ने कहा भी, “मैं नरेंद्र मोदी को भगवान की तरह मानता था लेकिन वे अब आसाराम बापू को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.”
मोदी और भाजपा के लिए ‘आर या पार’ जैसी भी कोई स्थिति नहीं रह गई है. डीजी वंजारा के एनकाउंटर के खुलासे के बाद स्टिंग ऑपरेशन का टेप भी सामने आ गया है. गुजरात के राज्यपाल कमला बेनिवाल ने भी लोकायुक्त आयोग विधेयक पर सवाल उठाकर वापस कर दिया. कांग्रेस के लिए मोदी और भाजपा की यह स्थिति जहां डूबते हुए को तिनके का सहारा के समान है तो मोदी और भाजपा के लिए जैसे ‘आगे कुआं और पीछे खाई’ बन गई हो, जाएं तो जाएं किस ओर.
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