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क्या ‘गेम चेंजर’ को गेम में लाने में सफल होगी कांग्रेस?

FOOD SECURITYआखिरकार कांग्रेस अपना गेम चेंजर लेकर आ ही गई. राजीव गांधी के जन्मदिन के अवसर पर कांग्रेस ने चुनावी जाल फेंक ही दिया. यह जाल कुछ ऐसा है जिसमें भारत के निम्न आय वर्ग के फंसने की पूरी संभावना है. अब देखना यह है कि कितने प्रतिशत भारतीय इस जाल में फंसते हैं और कितने प्रतिशत इससे बचकर निकल जाते हैं.

कांग्रेस की गेम चेंजर खाद्य सुरक्षा स्कीम राजीव गांधी के जन्मदिन के अवसर पर दिल्ली समेत चार कांग्रेस शासित राज्यों में यूपीए सरकार ने लागू कर दी. इस योजना के विरोध में खड़ी मुख्य विपक्षी दल भाजपा को दरकिनार कर पूरे देश में इस योजना को लागू कर अपने लिए आगामी लोकसभा चुनावों में वोट बैंक जुटाने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए यह थोड़ा सुकून भरा हो सकता है.

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गौरतलब है कि सदन में खाद्य सुरक्षा विधेयक अब तक पारित नहीं हो सका है. कांग्रेस जहां इसे आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तुरुप का पत्ता मान रही है, वहीं भाजपा कांग्रेस को इस पत्ते को खेलने से रोकने में कोई न कोई जुगत लगा ही लेती है. हर बार जब भी सदन में यह विधेयक बहस के लिए आता है, भाजपा इसके पारित होने में कोई न कोई अड़ंगा लगा ही देती है. मानसून सत्र से पहले ही यूपीए सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी यह विधेयक पारित नहीं सका. आखिरकार सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा. इसी का परिणाम है कि आज दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में इसे लागू कर पाने में कांग्रेस सफल हो सकी है. पर तुरुप का यह पत्ता पूरी तरह फेंक पाने में कांग्रेस अभी भी नाकामयाब हो सकती है.

अध्यादेश लाकर यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा योजना को स्व-शासित चार राज्यों में लागू कर 67 प्रतिशत गरीब जनता को महंगाई के दौर में 3 और 2 रुपए प्रति किलो के नगण्यतम मूल्य पर चावल-गेहूं उपलब्ध कराने के गुणगान कर चुकी है. लेकिन क्योंकि सदन में खाद्य सुरक्षा विधेयक अब तक पारित हो पाने में सफल नहीं हो सका है इसलिए पूरे देश में यह योजना लागू कर पाने में सरकार के हाथ अब भी बंधे हैं. अभी लागू योजना अध्यादेश के प्रभाव से लागू तो कर दी गई है, लेकिन अध्यादेश का प्रभाव केवल 6 महीनों तक ही रहेगा. इस बीच अगर कांग्रेस इस विधेयक को सदन में पारित करवाने में सफल नहीं हो सकी तो यह तुरुप का पत्ता लंबित पड़ सकता है.

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सरकार और सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचारियों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी यूपीए सरकार और कांग्रेस हालांकि मानसून सत्र खत्म होने से पहले ही इस विधेयक को पारित करवाना चाहती थीं, लेकिन इसी भ्रष्टाचार ने उसे उस वक्त भी चारो खाने चित्त किए थे. कितने जोर चलाए, यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सुषमा स्वराज और लालकृष्ण आडवाणी तक से मिल आईं, पर उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं. कोल आवंटन घोटाला और रेलवे घोटाले का मुद्दा भाजपा फिर भी उठाती रही. इस तरह बहुप्रचारित, कांग्रेस की यह ड्रीम योजना मानसून सत्र के पहले पारित नहीं हो सकी. अंतत: कांग्रेस को अध्यादेश ही लाना पड़ा. इसी अध्यादेश की बदौलत कांग्रेस शुरुआती तौर पर चार राज्यों में यह योजना लागू कर इसका प्रभाव भी देखना चाहती है. प्रभाव जो भी सामने आएं, कांग्रेस और यूपीए सरकार इस योजना के लिए हमेशा आशान्वित रही हैं. इसके नकारात्मक असर दिखने या प्रभावहीन होने की संभावना भी नगण्य है. बस कांग्रेस के लिए इसे सदन में पारित कराना एक चुनौती बन गई है.


मंगलवार को खाद्य सुरक्षा बिल पर बहस के दौरान कांग्रेस अपनी मंजिल के लगभग करीब ही थी लेकिन भाजपा ने कोल आवंटन घोटाले की फाइल गुम होने पर जवाब मांगकर मामला फिर अधर में लटका दिया. जवाब की शर्त पर विधेयक पारित करने की भाजपा की जिद के आगे कांग्रेस का यह तुरुप का पत्ता फिर सदन के अंदर ही रह गया. हालांकि सपा, जेडीयू और बसपा के समर्थन से यूपीए सरकार इसे पारित करा सकती है लेकिन इस तरह उसे अपने प्रमुख विपक्षी दल को नगण्य मानना पड़ेगा. किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए यह अंतिम रास्ता होता है. कांग्रेस इसे अपनाना नहीं चाहती क्योंकि शायद इस तरह वह अपनी विवशता दिखाना नहीं चाहती. अब देखना यह है कि कोयला घोटाले की गुम हुई फाइलों पर बिफरी हुई भाजपा को मनाकर कांग्रेस अपना चुनावी कार्ड फेंकती है या पिछली बार की तरह कोई बगल का रास्ता देखती है.

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2014 के लोकसभा चुनावों की बयार अभी से दिखने लगी है. हर पार्टी की रणनीतियां कहीं न कहीं चुनावी रणनीति ही है. हर पार्टी अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहती है और इसके लिए जो भी करना पड़े अभी से करने में जुटी है. जो भी हो, इसी बहाने जनता जनार्दन का थोड़ा भला हो जाता है. हास्यास्पद बस इतना है कि अगर यही काम सरकारें अपने कार्यकाल में करतीं तो विपक्षी पार्टी के लिए एक स्वस्थ चुनौती बन पाती और इस तरह आज कांग्रेस को भी तुरुप का पत्ता फेंकने की न जरूरत पड़ती, न एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता. जो भी हो इस चुनावी माहौल के केंद्र में जनता जनार्दन ही है. अंतिम फैसला उसी का होगा लेकिन फिलहाल उस फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए इस गेम चेंजर योजना को पारित कराना कांग्रेस की चुनौती बन गई है.

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