देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवाने वाले महात्मा गांधी के साहस के आगे उनके विरोधी तो नतमस्तक होते ही थे लेकिन उनकी दृढ़ निश्चयता को देखकर उनके अनुयायी भी उनके कायल होते थे. महात्मा गांधी के जीवन में हजारों मुश्किलें आईं, हजारों बार उन्हें समस्याओं और परेशानियों का मुंह देखना पड़ा लेकिन उन्होंने जीवनभर ‘राम’ का साथ नहीं छोड़ा. यहां तक कि अपने अंत समय में भी उनके मुंह से जो शब्द निकले वह ‘हे राम’ ही थे. अब आप सोच रहे होंगे कि महात्मा गांधी के साहस, उनके निडर होने का उनके आराध्य राम से क्या संबंध है.
कहते हैं ना कि बिना वजह ना तो किसी पर विश्वास होता है और ना ही विश्वास टूटता है. अब अगर महात्मा गांधी का विश्वास राम पर बना ही था तो जरूर इसके पीछे भी कोई ना कोई वजह रही होगी. तो हम आपको बताते हैं कि वो वजह क्या थी.
यह तब की बात है जब महात्मा गांधी करोड़ों लोगों की प्रेरणा नहीं बल्कि किसी आम बालक की ही तरह स्कूल जाते थे, पढ़ाई करते थे और कभी-कभार उन्हें अपने अध्यापकों से स्कूल में डांट भी पड़ती थी. बहुत अंधेरी रात थी और बालक मोहन को अकेली और अंधेरी जगहों से बहुत डर लगता था. घर में बिल्कुल सन्नाटा था और उन्हें अपने कमरे से बाहर जाना था. मोहन को लगता था कि अगर वह अंधेरी जगहों पर बाहर निकलेंगे तो भूत-प्रेत और आत्माएं उन्हें परेशान करेंगी. जिस रात का जिक्र हम यहां कर रहे थे वो तो वैसे भी इतनी अंधेरी थी कि मोहनदास करमचंद गांधी को अपना ही हाथ नजर नहीं आ रहा था.
जैसे ही मोहन ने अपने कमरे से अपना पैर बाहर निकाला उनका दिल जोरों से धड़कने लगा और उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनके पीछे खड़ा है. अचानक उन्हें अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ जिसकी वजह से उनका डर और ज्यादा बढ़ गया. वह हिम्मत करके पीछे मुड़े तो उन्होंने देखा कि वो हाथ उनकी नौकरानी, जिसे वो दाई कहते थे, का था.
रंभा ने उनका डर भांप लिया था और हंसते हुए उनसे पूछा कि वो क्यों और किससे इतना घबराए हुए हैं. मोहन ने डरते हुए जवाब दिया ‘दाई, देखिए बाहर कितना अंधेरा था, मुझे डर है कि कहीं कोई भूत ना आ जाए’. इस पर रंभा ने प्यार से मोहन के सिर पर हाथ रखा और बालक मोहन से कहने लगी कि “मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम्हें जब भी डर लगे या किसी तरह की परेशानी महसूस हो तो सिर्फ राम का नाम लेना. राम के आशीर्वाद से कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा और ना ही तुम्हें आने वाली परेशानियों से डर लगेगा. राम हर मुश्किल में तुम्हारा हाथ थाम कर रखेंगे”.
रंभा के इन आश्वासन भरे शब्दों ने मोहनदास करमचंद गांधी के दिल में अजीब सा साहस भर दिया. उन्होंने साहस के साथ अपने कमरे से दूसरे कमरे में प्रस्थान किया और बेहिचक अंधेरे में आगे बढ़ते गए. इस दिन के बाद बालक मोहन कभी न तो अंधेरे से घबराए और ना ही उन्हें किसी समस्या से डर लगा. वह राम का नाम लेकर आगे बढ़ते गए और जीवन में आने वाली सारी समस्याओं का सामना किया. उन्हें लगता था भगवान राम उनकी सहायता करेंगे और उनका जीवन उन्हीं की सुरक्षा में है. इस विश्वास ने जीवनभर उनका साथ दिया और उनके मुंह से अंतिम शब्द भी ‘हे राम’ ही निकले थे.
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