अचानक फैसला आया और हजारों लोगों की एक साथ नसबंदी कर दी गई. ऐसा नहीं था कि लोग बहुत सरलता से नसबंदी कराने के लिए मान गए थे बल्कि उनके साथ कठोरता अपनाई गई और मजबूर किया गया नसबंदी कराने के लिए. इंदिरा गांधी के सबसे बड़े सलाहकार बन कर उभरे संजय गांधी की सलाह पर देश की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए नसबंदी कार्यक्रम शुरू किया गया और हजारों लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की जाने लगी.
Emergency Time In india
यह समय ऐसा था जिसकी कल्पना भी कभी भारतवासियों ने नहीं की थी. 25 जून, 1975 रात 12 बजे मतलब 26 जून को 00:00 बजे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी (आपातकाल) की घोषणा की थी. आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, “जब से मैंनेआम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी.” यह कहते हुए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी. इमरजेंसी की घोषणा के बाद अनुच्छेद 352 के तहत सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और संसदीय चुनाव स्थगित कर दिए गए तथा नागरिक अधिकारों को भी सीमित कर दिया गया था. संविधान के इसी अनुच्छेद के कारण इंदिरा ने असीम शक्तियां हासिल कर ली थीं.
Indira Gandhi Emergency Case
इमरजेंसी के पीछे की कहानी
26 जून, 1975 को जब भारतवासियों को पता चला कि पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी गई है तो सभी हैरत में थे पर इंदिरा के अचानक इस फैसले का कारण यह था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें साल 1971 के लोकसभा चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उन पर कोई भी पद संभालने पर छह साल का प्रतिबंध लगा दिया था. चुनाव में हारे प्रत्याशी राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी थी. उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, तय सीमा से अधिक खर्च और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया. अदालत ने भी इन आरोपों को सही ठहराया था पर इंदिरा गांधी ने कोर्ट के इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी.
Indira Gandhi Politics
दो बड़े कारण: इंदिरा हटाओ का नारा गूंजने लगा
‘गरीबी हटाओ’ इस नारे के कारण इंदिरा गांधी सत्ता में आईं पर उन्हें नहीं पता था कि उनके इमरजेंसी लागू करने के फैसले के बाद भारत में ‘इंदिरा हटाओं’ का नारा गूंजने लगेगा. इंदिरा गांधी के इमरजेंसी फैसले के बाद दो ऐसे बड़े कारण रहे जिन्होंने इंदिरा के खिलाफ भारत में एक माहौल तैयार किया.
पहला कारण: चीन के जनसख्या नियंत्रण के रास्ते पर चलने के लिए इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराने का कार्यक्रम शुरू कर दिया. जिसके बाद भारतवासियों ने इंदिरा हटाओ का नारा तय कर लिया.
दूसरा कारण: इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी, नसबंदी जैसे गलत फैसलों को लेने के बाद एक और गलत निर्णय लिया जिसे खुद उन्होंने अपने राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा गलत फैसला माना था. इंदिरा गांधी ने मीडिया सेंसरशिप लगाकर भारतवासियों को उनको छोड़ सत्ता संभालने के लिए दूसरा विकल्प देखने के लिए मजबूर कर दिया था.
Indira Gandhi Emergency
इमरजेंसी के बाद क्या हुआ ?
कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी को भी यह भ्रम पैदा हो गया था कि इमरजेंसी लागू करने जैसे फैसले को लेने के बाद शायद वो अपनी सत्ता बचा पाएंगी. इमरजेंसी लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी पर आपातकाल के बाद चुनाव करवाने करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ. जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. यह कांग्रेस पार्टी की उन दिनों की सबसे बड़ी हार थी क्योंकि इंदिरा अपने गढ़ रायबरेली से भी चुनाव हार गई थीं. यह बात और है कि जनता पार्टी अपनी सरकार को 2 साल तक भी सत्ता में टिका नहीं सकी और 1979 में सरकार गिर गई. उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे. इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन यह चली सिर्फ पांच महीने ही. पर इस घटना के बाद उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया था. यही वो समय था जब एक नारा बुलंद हुआ ‘आधी रोटी खाएंगे इंदिरा को लाएंगे’ और कांग्रेस 1971 से भी ज्यादा सीटों के साथ 1980 में फिर से एक बार सत्ता में वापस आई.
इमरजेंसी ने कुछ छीना तो कुछ मिला
इमरजेंसी के समय ने भारत देश को सिर्फ नकारात्मक पहलू दिए ऐसा नहीं है. इमरजेंसी का समय ऐसा था जब सरकारी कर्मचारियों ने काम करने के मायने सीखे थे और भ्रष्टाचार करने से पहले सौ बार डरा करते थे. इमरजेंसी भारतीय राजनीति का छोटा लेकिन अहम पड़ाव था. जनता को गूंगा और बेवकूफ समझने वालों के लिए बड़ा सबक था क्योंकि जनता ने अपने एक वोट से साबित कर दिया था कि उसकी लाठी में आवाज भले न हो लेकिन वह चोट देने में कामयाब है. यही वो समय था जिसके बारे में आज बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ यह कहते हुए दिखते हैं कि ‘इमरजेंसी के काल ने भारतवासियों को राजनीति की सही परख करा दी थी’.
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