भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई ऐसी शख्सियतों ने राजनीतिक इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया है जिसे हम क्या हमारी आने वाली कई पीढ़ियां तक नहीं भुला सकतीं. आज की राजनीति भले ही स्वार्थ से लिप्त हो और अपने हित साधने के लिए एक-दूसरे को लड़वा रही हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए लोग अपनी जान तक की परवाह नहीं करते थे. भले ही वो काल कई समस्याओं को भारत की सरजमीं पर मजबूत कर रहा था लेकिन इस बीच राजनीति का परमार्थ पहलू सभी के सामने आया था.
उस दौर की राजनीति के मुख्य चेहरे रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ऐसे ही एक व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी विवेकशीलता और निर्णय लेने की क्षमता की वजह से हर बार देश और अपने ओहदे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया.
‘लौह पुरुष’ कहे जाने वाले स्वतंत्रत भारत के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के जीवन से जुड़ी दो घटनाओं का वर्णन तो पहले ही कर चुके हैं, जो यह साफ प्रदर्शित करती हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल अपने काम को ही अपनी प्राथमिकता समझते थे और अब हम आपको जीवन की वो घटना बताएंगे जिसके द्वारा उनकी निर्णय क्षमता की झलक भी हमें दिख जाती है.
सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत की 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर भारत की एकता को एक नया आयाम दिया था. सरदार पटेल से पहले कोई भी इन रियासतों का विलय कर पाने में सक्षम नहीं हो पाया था. लेकिन अपनी सूझबूझ और काबीलियत के बल पर सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की वजह से रियासतों का विलय हो पाना संभव हुआ.
5 जुलाई, 1947 को भारत में एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी लेकिन अचानक सरदार पटेल ने सुना कि बस्तर रियासत क्षेत्र के अंतर्गत एक ऐसा स्थान है जहां भारी मात्रा में कच्चा सोना उपलब्ध है और इस भूमि को हैदराबाद के निजाम पट्टे पर खरीदना चाहते हैं. इस सूचना को सुनकर सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) परेशान हो गए और यह सुनते ही वह वी.पी. मेनन के साथ उड़ीसा पहुंचे. उड़ीसा के 23 राजाओं से उन्होंने कहा कि कुएं के मेंढक की तरह मत रहो, बल्कि महासागर में मिलने का जो अवसर मिल रहा है उसका प्रयोग करो. उड़ीसा के लोग तो स्वतंत्र भारत का हिस्सा बनना चाहते ही थे सो सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के समझाने से जब उड़ीसा के राजा अपनी रियासतों का विलय करने के लिए तैयार हो गए तो उड़ीसा की जनता में खुशी की लहर फौड़ गई.
उड़ीसा के बाद सरदार पटेल नागपुर गए, उस दौर में नागपुर की रियासतों को सैल्यूट स्टेट (Salute State) कहा जाता था, जिसके अंतर्गत जो भी रियासत के राजा से मिलने आता था उसे तोप की सलामी दी जाती थी. नागपुर के भी 38 राजाओं को समझाबुझा कर स्वतंत्र भारत का एकीकृत हिस्सा बनाने की उनकी कोशिश पूरी हुई.
इसके बाद सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) काठियावाड़ जा पहुंचे जहां 250 रियासतों का जमावड़ा था. अपनी सूझबूझ से सरदार वल्लभ भाई पटेल यहां भी कामयाब हुए. इसके बाद मुंबई, पंजाब आदि रियासतों का भी विलय स्वतंत्र भारत में करवाया. लेकिन पंजाब के फरीदकोट के राजा सरदार वल्लभ भाई पटेल की बात मानने के लिए तैयार नहीं थे. इस बार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्ती से काम लिया और धमकी देते हुए फरीदकोट के राजा को विलय के लिए तैयार किया.
15 अगस्त, 1947 को जब भारत को स्वतंत्रता मिली तब तककश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतों का विलय कर लिया गया था. जूनागढ़ की रियासत को भी जल्द भारत का हिस्सा बना लिया गया और ऐसा होने के बाद जूनागढ़ का राजा नवंबर 1947 में पाकिस्तान भाग गया. 1948 में पुलिस कार्यवाही द्वारा, जिसमें किसी प्रकार की सख्ती नहीं की गई, हैदराबाद की रियासत को भी भारत का हिस्सा बना लिया गया था.
इस तरह भारत की लगभग सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में एकीकृत कर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने एक इतिहास रचा था. उन्होंने वो काम कर दिखाया था जिसकी कल्पना भी कोई दूसरा नहीं कर सकता था.
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