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अगर ऐसा है तो कहीं मोदी ही भाजपा न ले डूबें !!

आज पूरे देश में किसी खास व्यक्ति की अगर चर्चा हो रही है तो वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. क्या हो भारतीय जनता पार्टी क्या हो विपक्ष और क्या मीडिया हर कोई या तो मोदी का गुण गा रहा है या फिर उनकी नाकामियों की समीक्षा निकाल रहा है. मतलब कि मोदी को लेकर न केवल गोवा कार्यकारिणी की बैठक में बल्कि पूरे देश में मंथन चल रहा है.

माना जा रहा है कि गोवा बैठक में बीजेपी कार्यकर्ताओं की आवाज को समझते हुए मोदी को ऐसे दायित्व सौंपे जाएंगे जिससे वह अपने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को और ज्यादा मजबूत कर सकें. अब सवाल यहां यह उठता है कि मोदी और उनके भक्तों के लिए जितना सरल और सहज यह मामला दिखई पड़ता है क्या वह असल में उतना ही सरल है या फिर उसमें जटिलताओं का जाल बिछा हुआ है. आइए कुछ इन्हीं जटिलताओं पर चर्चा करते हैं.


Narendra Modiएक तानाशाह की छवि से पीछा छुड़ाना मुश्किल

जितनी तेजी के साथ मोदी की ‘विकास पुरुष’ के रूप में छवि गढ़ी गई उतनी ही तेजी के साथ उनके व्यक्तित्व में तानाशाह नाम का शब्द भी जुड़ा. मोदी का व्यक्तित्व ऐसा है कि वह अपने विरोधियों को संभलने नहीं देते चाहे वह विरोधी पार्टी का हो या फिर खुद की पार्टी का कोई नेता. भाजपा के पूर्व नेता संजय जोशी के साथ उनके विवाद को कौन भूल सकता है. यह मोदी ही थे जिसकी वजह से भाजपा ने अपने अनुभवी नेता संजय जोशी को बाहर का रास्ता दिखाया.

यहीं नहीं मोदी को जानने वाले यह भी मानते हैं कि मोदी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने से बड़े स्तर के नेताओं को भी पीछे ढकेल देते हैं. गुजरात में बीजेपी को स्थापित करने वाले नेता केशुभाई पटेल आज अपना वजूद खो चुके हैं. मोदी की वजह से ही भाजपा में उनकी उपेक्षा होने लगी जिसकी वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ एक नई पार्टी भी बनाई. ऐसे में अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो अपने से बड़े स्तर के नेताओं की न केवल उपेक्षा करेंगे बल्कि अपने विचारों को जबदस्ती थोपेंगे भी. यदि ऐसा होता है तो जाहिर है भाजपा आपसी सिरफुटौव्वल की शिकार बन जाएगी.


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कैसे पचाएंगे पार्टी के बड़े नेता ?

मोदी का स्वभाव जिस तरह का है उससे पार्टी के बड़े नेता उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री बन गया तो सबको दबाकर रखेगा. इसके अलावा ये बड़े नेता मोदी के राजनीतिक अनुभव और अपने अनुभव को देखते हुए इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि कैसे यह व्यक्ति कुछ ही दिनों में राष्ट्रीय स्तर का नेता बन गया. स्वयं पार्टी के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी इस बात को जाहिर कर चुके हैं. इसके अलावा मोदी का करिश्मा केवल गुजरात में चला है. अभी तक गुजरात से बाहर उनके जादू का कोई उदाहरण नहीं है. साथ ही उन्हें संसदीय अनुभव भी नहीं है जो उनके लिए बेहद भारी पड़ सकता है.


सहयोगियों के समर्थन पर असमंजस

जब से नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछला है तब से एक साये की तरह भाजपा के सहयोगी दल मोदी का निरंतर विरोध कर रहे हैं. इसमें सबसे उपर नाम आता है ‘जनता दल यूनाइटेड’ का. जेडी-यू के नेता पहले भी यह धमकी दे चुके हैं कि मोदी के नाम पर भाजपा विचार करती है तो पार्टी अपने पुराने सहयोगी का साथ खो देगी.


विकास पुरुष का खोखला दावा !!

आज भाजपा में मोदी को ‘विकास पुरुष’ के नाम से जाना जाता है. लोगों का मूड भांपते हुए पिछले कुछ वर्षों के दौरान मोदी इसी हथियार के आधार पर राजनीति करते आए हैं. लेकिन जिस तरह से गुजरात के दूरदराज इलाकों की स्थिति है क्या ऐसा माना जा सकता है कि मोदी सचमुच में एक ‘विकास पुरुष’ हैं. आकंड़े बताते हैं कि मोदी के राज्य में अन्य राज्यों के मुकाबले कुपोषण को लेकर खराब स्थिति है. उनका विकास केवल शहरों तक ही दिखता है.


कुछ नहीं केवल मीडिया प्रबंधन है

जिस तरह से मोदी ने विकास के प्रतीक पुरुष के तौर पर खुद की छवि गढ़ी है उसका एक अहम पहलू यह भी है कि वे तमाशे में माहिर हैं. उनकी सरकार जो भी करती है उसकी बड़े स्तर पर मार्केटिंग की जाती है और उसे मोदी के साथ जोड़ दिया जाता है. आरोप है कि आज उन्होंने हर स्तर के मीडिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है जो उनकी झूठी वाहवाही करता है.


क्या घर के शेर हैं मोदी ?

मोदी घर के शेर हैं ऐसा आंकड़े बता रहे हैं. मोदी ने हाल के दिनों में जहां-जहां प्रचार किया है वहां भाजपा को हार नसीब हुई है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में प्रचार किया, भाजपा की सरकार गिर गई, उन्होंने कर्नाटक में भी प्रचार किया वहां भी भाजपा अपनी सरकार नहीं बचा पाई. इस लिहाज से यह नहीं कहा जा सकता कि मोदी देशव्यापी नेता हैं.


दंगे का दाग

मोदी पर लग रहे सभी तरह के आरोप अलग और उन पर लगे दंगों के दाग अलग हैं जिसे मोदी जितना भी कोशिश करें दूर भाग नहीं सकते हैं. दंगों के 11 साल बाद आज भी उनकी भूमिका को लेकर अदालत के दरवाजे खटखटाए जाते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के सामने यही दंगा सबसे बड़ा रोड़ा है.


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