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क्या थी टूटे चश्मे और फटी धोती की कहानी ?

आम आदमी बनना आसान है, लेकिन उस आम में से अगर कोई व्यक्ति खास निकल जाता है तो इसके लिए उसकी किस्मत नहीं बल्कि उसकी दृढ़ संकल्पशक्ति और कर्तव्यपरायणता जिम्मेदार होती है. वर्तमान राजनीति पर भ्रष्टाचार हावी है, वह दूषित है लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे बहुत से नाम दर्ज हैं जिनका जन्म तो साधारण परिवार में हुआ लेकिन अपनी असाधारण काबीलियत की वजह से लोग आज भी उनकी मिसाल देते हैं. ऐसे ही एक शख्स थे गणतंत्र देश की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल.



31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के अहमदाबाद में जन्में सरदार वल्लभ भाई पटेल पेशे से बैरिस्टर थे लेकिन गांधी जी के कथनों और उनके भाषणों को सुनकर सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और अंतिम सांस तक उन्होंने भारतीयों समेत पूरी दुनिया के सामने अपनी वो छवि पेश की जिसे आज भी सम्मानपूर्वक ही देखा जाता है.


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सरदार वल्लभभाई पटेल इतिहास की वो शख्सियत हैं जिन्हें पढ़कर या जिनके बारे में जानकर किसी के भी आंखों में आंसू आ जाएंगे. ये आंसू उपलब्धियों के भी होंगे और उनके द्वारा किए गए त्याग और समर्पण के भाव भी कह जाएंगे. स्वतंत्र स्वभाव वाले सरदार वल्लभभाई पटेल किसी के लिए भी काम करना पसंद नहीं करते थे, विशेषकर अंग्रेजों का तो नाम सुनकर ही वह उग्र हो जाया करते थे. इसीलिए उन्होंने स्वतंत्र रहकर कानून की प्रैक्टिस शुरू कर दी.



वैसे तो उनका पूरा जीवन ही आदर्श है लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल से जुड़े दो मुख्य घटनाओं का वर्णन हम यहां करने जा रहे हैं. पहली घटना उनके स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने से पहले की है जब वह बैरिस्टर के तौर पर अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे.


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वल्लभ भाई पटेल एक केस की वकालत कर रहे थे इसी बीच उनकी पत्नी झबेरा बेन की हालत बहुत गंभीर हो गई, उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जब उन्हें अपनी पत्नी की हालत की सूचना मिली तो उनकी जगह कोई भी होता तो वह उस केस को बीच में ही छोड़कर अपनी पत्नी के पास चला जाता लेकिन इस समय व्यवहारिकता से काम लेना वाकई कठिन होता है और वल्लभभाई पटेल अपनी भावनाओं के आगे नहीं झुके.



सरदार वल्लभ भाई पटेल उस केस की गंभीरता समझते थे इसीलिए उसे बीच राह में छोड़कर नहीं गए. एक तरफ केस की दलीलें चल रही थीं तो दूसरी ओर सरदार वल्लभ भाई पटेल की पत्नी की सांसों की डोर ढीली पड़ रही थी. अंतत: उनकी पत्नी के प्राणों ने उनका साथ छोड़ दिया लेकिन सरदार पटेल की कर्तव्यपरायणता ही कहें कि वह उस केस को जीतने के बाद ही वह अपनी पत्नी के मृत शरीर के पास पहुंचे. उनका आशय स्पष्ट था, जो जा रहा है उसे कौन रोक सकता है लेकिन जिसे बचाया जा सकता है उसे तो बचाना ही चाहिए.



दूसरी घटना तब की है जब सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के गृह मंत्री थे. इतिहास में दर्ज यह घटना उस विपन्न भारत और उसके निःस्वार्थ नेताओं के संबंध को दर्शाती है.


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एक बार जब सरदार वल्ल भाई पटेल बहुत बीमार थे तब उनसे मिलने कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उनके घर आए. लेकिन उनके घर और उनकी हालत देखकर सभी हैरान हो गए. सरदार पटेल के चश्मे की कमानी टूटी हुई थी, जिनकी जगह सरदार पटेल ने धागा बांधा हुआ था. इतना ही नहीं उनकी बेटी मणिबेन पटेल ने भी पैबंद लगे कपड़े पहने हुए थे. यह सब देखकर सभी कांग्रेसी नेता हैरान रह गए और सरदार वल्लभ भाई से पूछा देश के गृह मंत्री होने के बावजूद आप ऐसे कैसे रहते हैं?



सरदार वल्लभ भाई पटेल का जवाब सीधा था, उनका कहना था कि मैं एक विपन्न देश, जो गरीबी और लाचारी की मार से जूझ रहा है, का गृह मंत्री हूं और अगर मैं ही यह बात नहीं समझूंगा तो यह मेरे देश के लोगों के साथ विश्वासघात होगा.और जब यही सवाल उनकी बेटी से पूछा गया तो उनका भी यही कहना था कि वह एक गरीब देश के गृह मंत्री और आदर्श पिता की बेटी हैं.



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