हाल ही में हुए सुकमा नरसंहार, जिसमें नक्सलियों द्वारा कई कांग्रेसी नेताओं की जानें ली गईं, के बाद नक्सलवाद की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित हुआ है. यूं तो नक्सली हमला और सरकार के प्रति उनके आक्रोश का सिलसिला कोई नई बात नहीं है. फर्क बस इतना है कि पहले जहां नक्सलियों के विरुद्ध आवाजें क्षेत्रीय स्तर पर ही उठाई जाती रही हैं और अब जब पहली बार सरकार पर सीधा निशाना लगाया गया है तो आखिरकार नक्सलवाद को राष्ट्रीय समस्या के तौर पर स्वीकार कर ही लिया गया है.
लेकिन अभी तक छुट-पुट नेताओं और सरकारी अफसरों को अपना निशाना बनाने वाले नक्सली कैसे इतने ताकतवर हो गए कि क्षेत्र के बड़े और नामचीन कांग्रेसियों पर हमला बोल दिया, कैसे उन्हें खबर मिली कि रैली का रूट बदला जा रहा है.
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘एवरी आर्मी हैज ए ट्रेटर’ अर्थात हर सेना में देशद्रोही होता है. यहां भी कुछ ऐसा ही था. खबर है कि इस केस में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ही मुखबिर बनने का काम किया जिसकी वजह से 30 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
सुकमा नक्सली हमले की जांच करने वाली एनआईए ने अपनी 14 पन्नों वाली रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जिसमें चार ऐसे कांग्रेसियों का भी नाम शामिल है जिन्होंने नक्सलियों तक रैली का रूट बदलने की जानकारी पहुंचाई थी. यह वो नेता थे जिन्होंने नक्सलियों को ना सिर्फ रूट बदलने की जानकारी पहुंचाई बल्कि रैली में शामिल प्रत्येक नेता की विस्तृत जानकारी, गाड़ियों के नंबर और रंग के अलावा यह भी बताया कि कौन-कौन से नेता किस-किस गाड़ी में बैठे हैं.
उल्लेखनीय है कि अंतिम समय में रैली का मार्ग बदल दिया गया था, लेकिन इसके पीछे कोई कारण स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया. एनआईए की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अब नक्सलियों का सामना करना मुश्किल हो गया है क्योंकि विदेश से उन्होंने हथियारों और गोला-बारूद का जखीरा हासिल कर लिया है, इतना ही नहीं कई पड़ोसी देश नक्सलियों की सहायता भी कर रहे हैं. नक्सलियों का निशाना सरकार है और अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए वह देश-विदेश के आतंकी संगठनों से भी मदद ले रहे हैं.
मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में सलवा जुडूम की शुरुआत करने वाले कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा नक्सलियों के निशाने पर थे और नक्सलियों द्वारा उन्हें जो मौत दी गई वह बेहद चौंकाने वाली है.
उल्लेखनीय है कि एनआईए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा को बंदी बनाने के बाद आनन-फानन में कंगारू कोर्ट बिठाई. इस कोर्ट का मतलब साफ था कि महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी जाएगी. सलवा जुडूम की शुरुआत और आदिवासियों के दमन का दोषी ठहराकर कर्मा को इस कोर्ट में ‘बस्तर टाइगर’ के नाम से संबोधित किया गया. लेकिन उन्हें मारने से पहले नक्सलियों ने कर्मा से उनकी अंतिम इच्छा पूछी और साथ यह भी पूछा कि क्या वो मरने से पहले साफ-सुधरे कपड़े पहनना चाहेंगे? एक नक्सली ने कर्मा की जीप में पड़े टिफिन को निकालकर उन्हें खाना भी दिया. लेकिन इससे पहले कर्मा कुछ खा पाते नक्सली हमलावरों की भीड़ में मौजूद महिलाओं ने महेंद्र कर्मा को मौत के घाट उतार दिया. कर्मा के जिस्म में गोलियां उतार दी गईं और इसके बाद 78 बार उनके शरीर पर चाकू से वार किया गया जिसकी वजह से महेंद्र कर्मा की मौत हुई.
ऐसे व्यक्ति को देश में रहने का कोई अधिकार नहीं
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