भाजपा के आधिपत्य वाले गठबंधन राजग का एक महत्वपूर्ण घटक लगता है अब कांग्रेस के पाले में खिसकने के लिए तैयार है. वैसे तो पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अहम सदस्य नीतीश कुमार यह साफ कर चुके हैं कि जो भी उनके राज्य बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा वह उसे अपना समर्थन देंगे और इस सुअवसर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने भाजपा के विरोध में जाती हुई इस आंधी का रुख अपने पक्ष में मोड़कर बिहार को पिछड़ा राज्य घोषित कर उसके विकास के लिए विभिन्न सुविधाएं मुहैया करवाने की घोषणा कर दी. इतना ही नहीं केन्द्र सरकार की ओर से 2013-14 के लिए दिए जाने वाले फंड में 21% की बढ़ोत्तरी, जो कि किसी भी राज्य को दिए जाने वाले फंड से ज्यादा है, की घोषणा के बाद तो जैसे नीतीश कुमार यूपीए के ही मुरीद बनकर रह गए हैं.
इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब हाल ही में केन्द्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पटना दौरे पर आए तो उनके पटना कदम रखते ही नीतीश कुमार उनके प्रति कुछ ज्यादा ही नम्रता से पेश आने लगे.
नीतीश कुमार पी. चिदंबरम को अपनी गाड़ी में सदाकत आश्रम छोड़ने गए और जब तक वित्त मंत्री आश्रम के बाहर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से गपशप करते रहे तब तक नीतीश कुमार अपनी गाड़ी में उनका इंतजार करते रहे. नीतीश कुमार का चिदंबरम के प्रति ऐसा शिष्ट व्यवहार पटना की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है.
उल्लेखनीय है कि यूपीए सरकार के अब तक के रिकॉर्ड में उन्होंने राज्य को दिए जाने वाले फंड में जो भी बढ़ोत्तरी की है उसका प्रतिशत हमेशा 15-18 रहा है. यहां तक कि कांग्रेस शासित राज्य जैसे हरियाणा, असम जैसे राज्यों में भी धनराशि में बढ़ोत्तरी का प्रतिशत इतना ही रहा है लेकिन बिहार, जो राजग गठबंधन के दल जनता दल यूनाइटेड द्वारा शासित है, को इस बार जो फंड मुहैया करवाया जाएगा उसे 21 प्रतिशत यानि लगभग 6,000 करोड़ तक बढ़ाया गया है. इतना ही नहीं पिछड़ा राज्य घोषित होने की वजह से और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए भी अलग से धन उपलब्ध करवाने की भी योजना है.
अब पिंजरे से आजाद होना चाहता है “तोता”
वैसे कांग्रेस की इस दरियादिली की वजह और जनता दल यूनाइटेड को अपेक्षा से भी ज्यादा अहमियत देने के पीछे कांग्रेस का कारण या कह लीजिए मजबूरी साफ परिलिक्षित होती है क्योंकि वर्तमान हालातों के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं है कि कांग्रेस की साख निरंतर कम होती जा रही है. चारों ओर से आरोपों और विवादों के साये में घिरी हुई सरकार का आगामी लोकसभा चुनाव में क्या हश्र होगा यह अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है. जनता क्या कांग्रेस भी अपने होने वाले अंजाम से बहुत अच्छी तरह वाकिफ है इसीलिए अब उसने अपनी तैयारियां और हर उस विपक्षी को अपनी ओर खींचने की कोशिशें तेज कर दी है जो अपनी पार्टी से थोड़ा नाराज है और लालच देने पर उनके साथ हाथ मिला सकता है.
कांग्रेस अपने बड़े-बड़े घटक दलों का विश्वास खोती जा रही है जिसकी वजह से गठबंधन का टिक पाना वाकई मुश्किल होता जा रहा है, ऐसे में उसके पास नए दलों को साथ करना एक चुनौती से कम नहीं है. एक तो पहले से ही कांग्रेस की नैया मझधार में गोते खा रही है ऊपर से अगर वह ऐसे हथकंडे भी ना अपनाए तो उसका आगामी लोकसभा चुनावों का सामना कर पाना लोहे के चने चबाने जैसा हो सकता है.
हजारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी
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