कुछ ही समय पहले की बात है जब कांग्रेस के विरुद्ध एक बयार को अन्ना जैसी आंधी ने हवा दी थी. वैसे तो आजादी के बाद से ही कांग्रेस को विभिन्न प्रकार के आरोपों से दो-चार होना पड़ा है लेकिन सामूहिक रूप से इन सभी आरोपों के खिलाफ आवाज तब उठी जब अन्ना हजारे ने एंटी करप्शन मूवमेंट के तहत आमजन को एकत्रित करने में सफलता हासिल की. उस समय ऐसा लगने लगा था कि शायद अब कांग्रेस के भ्रष्ट तंत्र से जनता को छुटकारा मिल जाएगा.
लेकिन जिस तेजी के साथ अन्ना हजारे ने कांग्रेस के विरुद्ध मोर्चा खोला था उससे भी तेज गति के साथ अन्ना हजारे के आंदोलन को भुला दिया गया.
कांग्रेस ही चाहिए
बहुत पुरानी बात नहीं है जब कांग्रेस के हर बड़े मंत्री की सच्चाई से जनता का सामना हुआ. किसी ने 2जी घोटाले में जेल की हवा खाई तो किसी का नाम कोलगेट जैसे बड़े घोटाले में शामिल हुआ, कोई रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़ा गया तो किसी ने अपने परिवार के ही नाम पर देश का माल अपने खजाने में भर लिया. यह तो बस कुछ उदाहरण हैं लेकिन सच तो यही है कि आंकड़ों के अनुसार यूपीए 2 को सबसे भ्रष्ट सरकार का दर्जा दिया जा चुका है. अब तो आलम यह है कि लोकसभा की कोई कार्यवाही शुरू होते ही सबसे पहला तीर कांग्रेस के ही किसी ना किसी मंत्री के सीने में जाकर चुभता है.
मिशन 2014 के आने में अब कुछ ज्यादा समय भी नहीं बचा है और सभी दल बस दिन गिन-गिनकर तैयारियां कर रहे हैं. आए दिन कांग्रेस का सामना जिन बड़े घोटालों के आरोपों से हो रहा था और जनता के बीच जो तथाकथित कांग्रेस विरोधी बयार चल रही थी उसे देखकर यह लग रहा था कि शायद अब जनता वाकई कांग्रेस से त्रस्त आ गई है और वह अब इसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कमर कस चुकी है लेकिन अफसोस…..
अफसोस कि अब जनता कांग्रेस के भ्रष्टाचार, उसके हर घोटाले को ही अपनी नियति मानकर पूरी आत्मीयता के साथ स्वीकार कर चुकी है और जो भी विरोध की आवाज उसके प्रति सुनाई दे रही है वह सिर्फ और सिर्फ भ्रामक सत्य और पूरी तरह छद्म है.
आप चाह कर भी इस सत्य को अनदेखा नहीं कर सकते कि सच वही है जो कर्नाटक विधानसभा चुनावों के जरिए सामने आया है. उल्लेखनीय है कि कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले मोदी ने भी वहां जमकर भाषण दिया, ताकि वह जनता को अपने प्रति आकर्षित कर सकें, लेकिन नतीजा वही हुआ जो शायद स्वाभाविक ही था. कांग्रेस ना सिर्फ पूर्ण बहुमत के साथ विजयी हुई बल्कि भाजपा समेत सभी दलों का ऐसा सफाया किया कि वह शायद दोबारा कर्नाटक में तो जीतने की सोचेंगे भी नहीं.
क्यों किसी और को कमान दी जाए
वर्ष 2008 में जिस जातीय समीकरण को संभालकर येदियुरप्पा ने जीत दर्ज की थी इस बार भाजपा से अलग हो जाने के बाद वह समीकरण पूरी तरह बिखर गया. यही वजह है कि कुछ लोग भले ही इसे कांग्रेस की जीत नहीं बल्कि भाजपा की हार कह रहे हैं लेकिन सच यही है कि एक बार फिर जनता ने यह साबित कर दिया है कि वह कांग्रेस के हर भ्रष्टाचार को स्वीकार कर चुकी है और मान चुकी है कि चाहे कुछ भी हो लेकिन देश को कांग्रेस से बेहतर शासक कोई नहीं दे सकता. जनता यह जानती है कि कोई भी दल सत्ता में क्यों ना आए लूट-खसोट का यह सिलसिला निरंतर चलता रहेगा और जब कांग्रेस लूटने के साथ-साथ देश को अपने शासन तले एक जुट रखी हुई है और भाजपा पर हिंदूवादी दल होने का ठप्पा है, तो क्यों किसी और को सत्ता की कमान दी जाए.
उल्लेखनीय है कि भाजपा एक ऐसा दल है जो नेतृत्व की कमी से जूझ रहा है और हर बार अपनी इसी कमी के कारण उसे औंधे मुंह गिरना पड़ता है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव तो बस एक छोटी सी घटना है. असली परीक्षा तो लोकसभा चुनावों में होगी लेकिन अपनी आंखों के सामने हो रही घटनाओं को देखने और समझने के बाद भी अगर जनता खुद से हर समय यह झूठ बोलती है कि वह कांग्रेस के खिलाफ है तो फिर किसी और को नहीं बल्कि उसे ही नींद से जाग जाना चाहिए.
रिमोट से चलने वाला खिलौना देश चला रहा है !!
रेलगेट और कोलगेट से संकट में सरकार
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