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असफल देश का दंश चुनावी नतीजों पर दिखेगा !!

अगर सब कुछ ठीक रहा, 11 मई 2013 पाकिस्तान के इतिहास का ऐतिहासिक दिन साबित होगा. आजादी के 66 सालों में पहली बार यह देश 5 सालों का एसेंबली कार्यकाल पूरा कर दुबारा आम चुनाव की तैयारी कर रहा है. 11 मई को यहां संसद के निचले सदन नेशनल एसेंबली और चार प्रांतीय विधानसभाओं पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान तथा खैबर पख्तूनख्वा के लिए चुनाव कराए जाएंगे. 2008 के आम चुनावों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने बहुमत के आधार पर सरकार बनाई. इस बीच कई बार ऐसा भी हुआ कि लगा अब सरकार गिरने वाली है पर सारी आशंकाओं को धता बताते हुए पार्टी ने प्रधानमंत्री का चेहरा बदला पर सरकार को गिरने नहीं दिया जो काबिले तारीफ है.


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प्रमुख विपक्षी पार्टियां

2008 के चुनावी नतीजों के आधार पर आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली पिछले चुनाव की विजेता पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) इस चुनाव की सबसे प्रमुख पार्टी, नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) तथा इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ प्रमुख विपक्षी पार्टियां बनकर उभरी हैं. आवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) भी केंद्र और खैबर पख्तूख्वाह प्रांत में वर्तमान सरकार की सहयोगी पार्टी है पर पीपीएल-एन और एएनपी के सामने कमजोर है. इसके अलावे धार्मिक पार्टियां मौलाना फजलुर रहमान की जुलऔरजमात-ए-इस्लामी पार्टियों की अलग प्राथमिकताएं हैं.


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चुनावी हालात

पाकिस्तान की सभी पार्टियां जोर-शोर से चुनाव प्रचार में जुटी हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए दो बार चुनाव जीत चुके नवाज शरीफ और उनकी पार्टी सबसे ज्यादा उत्साहित और आत्मविशासी दिख रही है. गौरतलब है कि मुशर्रफ सरकार के दौरान उन्हें चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. किंतु बाद में सऊदी अरब और अमेरिका के दबाव से उन पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया गया. पर इस बार उस बात का उनके चुनाव अभियान पर कोई असर नहीं दिख रहा और न ही वे या उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इसके कारण उनके लिये चुनावी नतीजों पर किसी कुप्रभाव के लिये चिंतित नजर आते हैं. नवाज शरीफ के मुकाबले में जो एक बहुत मजबूत उमीदवार है वह हैं क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान. इमरान खान की लोकप्रियता की दो वजहें हैं पहला  कि आज भी वहां के युवाओं में आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में उनकी छवि स्थापित है, दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है उनकी राजनीतिक नीतियां. इमरान बाकी नेताओं से इतर आम जनता के बीच उनकी परेशानियों को सुनने और समाधान निकालने की कोशिश करते हैं. वे धर्म और इस्लामिक मुद्दों से अलग महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के मुद्दों पर बात करते हैं. बाकी नेताओं से अलग वे बड़ी सुरक्षा के बीच जनता से फासला बनाकर चुनावी भाषण नहीं देते, बल्कि जनता के बीच सुरक्षा व्यवस्था को अलग रखकर आम लोगों की तरह उनसे बात करते हैं. उनके चुनावी प्रचार में एक युवा उत्साह नजर आता है, नेता से अलग एक आम इंसान की छवि नजर आती है. इसके अलावे अभी-अभी ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई पूरी कर लौटे स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी भी इस बार अहम उम्मीदवारों में गिने जा रहे हैं पर उनके साथ मुश्किल यह है कि राजनीति की समझ में अभी वे बिल्कुल नए हैं. हालांकि पिछले चुनाव से पहले लंबे अर्से के बाद वतन लौटी बेनजीर भुट्टो की चुनावी भाषण में हत्या की गई थी तो बेनजीर के बेटे के साथ जनता की संवेदना हो सकती है. संभव है वोट में उन्हें इसका फायदा भी मिले पर एक राजनीतिज्ञ के तौर पर उन्हें अभी बहुत सशक्त उम्मीदवार नहीं मान सकते. प्रांतीय विधानसभाओं के लिए और भी उम्मीदवार कतार में हैं पर संभावना है कि यह चुनाव मुख्य रूप से नवाज शरीफ और इमरान खान के बीच कड़ी टक्कर साबित हो. मुशर्रफ को कोर्ट ने नजरबंद कर रखा है और वे अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ अपने घर पर ही चुनावी रणनीतियां बना रहे हैं पर उनके हक में किसी चुनावी नतीजे आने की संभावना कम ही दिखती है. जरदारी की पीपीपी हालांकि पहली बार अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही है पर पिछली बार बेनजीर भुट्टो की हत्या का फायदा उठाए इस पार्टी और जरदारी को उनके और बेनजीर के बेटे के बल पर जीत हासिल करना मुश्किल है.


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तालिबान समर्थित आतंकवाद की समस्या

पाकिस्तान के चुनाव में एक और बड़ी समस्या जो है वह है तालिबान समर्थित आतंकवादी संगठनों के द्वारा चुनाव प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश. हर एसेंबली चुनाव डर के साये में गुजरता है. हर बार चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों की हत्या उनके बीच डर पैदा करता है. पिछली बार भी चुनाव प्रचार के दौरान ही बेनजीर भुट्टो की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. नवाज शरीफ पर भी हमला किया गया पर वे बच गए. ये आतंकवादी ग्रुप उम्मीदवारों की हत्या कर मतदाताओं को डराना चाहते हैं. पिछले कुछ दिनों में प्रतिबंधित आतंकी गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समेत अन्य आतंकी गुटों ने देश के विभिन्न भागों में चुनाव सभाओं को निशाना बनाया है. अधिकांश हमले देश के सबसे बड़े शहर कराची और बलूचिस्तान व खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हुए हैं.  नेशनल पीपुल्स पार्टी के नेता इब्राहिम जातोई के दल पर हमला किया गया, बलूचिस्तान प्रांत के डेरा मुराद जमाली में निर्दलीय प्रत्याशी अल्लाहदीनो उमरानी के काफिले के पास एक कार बम विस्फोट हुआ. इससे देश में 11 मई को होने वाले आम चुनाव में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है.


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हालंकि पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियां उम्मीदवारों की सुरक्षा में पूरी तरह मुस्तैद हैं. उम्मीदवारों को चुनाव में बुलेट प्रूफ गड़ियों से लेकर चुनाव सभावों में मंच और जनता के बीच बुलेट-रोधी ग्लास की भी व्यवस्था की गई है. पाकिस्तान के सूचना मंत्री आरिफ निजामी के अनुसार तालिबान और अन्य आतंकी गुट आम चुनाव में बाधा डालने के लिए राजनीतिक दलों को धमकियां दे रहे हैं पर कार्यवाहक सरकार सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं, जिससे उम्मीदवारों को सुरक्षा दी जा सके और आतंकियों के नापाक मंसूबों को विफल किया जा सके. उन्होंने विश्वास जताया कि चुनाव में बाधा डालने की कोशिशों के बावजूद इसे समय पर कराया जाएगा. हालांकि आतंकियों की धमकी के कारण 11 मई को वोटिंग के दौरान मतदाताओं की संख्या पर असर पड़ने की आशंका से निजामी ने इन्कार नहीं किया.


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पाकिस्तान की सरकार का बार-बार गिरना और चुनाव में व्यवधान डालने की तालिबानी कोशिशें पाकिस्तान की राजनीति ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी विश्वसनीयता को शंकित घेरे में लाता रहा है. आज जब अधिकांश देश लोकतांत्रिक और जनतांत्रिक ढांचे का पालन कर रहे हैं तो ऐसे में पाकिस्तान में सरकार का बार-बार आना जाना, यहां से संचालित आतंकवादी गतिविधियां, तालिबान और धार्मिक संगठनों के तरह-तरह की तकरीरें इसे हमेशा सवाली घेरे में रखने का कारण बन जाते हैं.  पर पिछली सरकार के पहली बार कार्यकाल पूरा करने से पाकिस्तानी जनता में एक उम्मीद जागी है कि उनका देश भी अब राजनीतिक उथल-पुथल से निकलकर एक स्थिर सरकार और स्थिर राजनीति के साथ सौहार्दपूर्ण माहौल के साथ उन्नति के पद पर अग्रसर होगा. बहरहाल यहां की राजनीति के संबंध में कुछ भी कयास लगाना मुश्किल है. 8.5 करोड़ नए मतदाताओं के साथ पाकिस्तान अब 11 मई को चुनावी जंग की अंतिम रूपरेखा की तैयारी में जुटा है. उम्मीद है कि पाक जनता की उम्मीदें टूटेंगी नहीं.


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, नवाज शरीफ, इमरान खान, परवेज मुशर्रफ.

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