पश्चिम बंगाल की जनता को सुनहरे सपने दिखाकर उनके साथ धोखाधड़ी करने वाली शारदा रियल्टी चिट फंड कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन को तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है लेकिन इस गिरफ्तारी ने ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यूं तो ममता बनर्जी ने इस चिट फंड कंपनी में निवेश कर अपने पैसे गंवाने वाले लोगों के लिए 500 रुपए करोड़ के राहत कोष की घोषणा की है लेकिन जैसे-जैसे इस केस की परतें खुलने लगी हैं वैसे-वैसे जिस भरोसे के साथ वर्ष 2011 में राज्य की जनता ने ममता बनर्जी को सत्ता पर बैठाया था वह विश्वास भी शिथिल पड़ता जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि सुदीप्तो सेन पहले ही ममता सरकार के दो प्रमुख मंत्रियों, कुणाल घोष और संजय बोस, पर उनके साथ इस घोटाले में शामिल होने जैसे आरोप लगा चुके हैं. लेकिन अब तक अपने मंत्रियों के बचाव में नजर आने वाली ममता बनर्जी खुद आरोपों के दायरे में घिरती नजर आ रही हैं क्योंकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने शारदा चिट फंड कंपनी में निवेश करने वाले सभी निवेशकों, जो कि उनके मतदाता भी हैं, को यह आश्वासन दिया था कि इस कंपनी को राज्य सरकार का समर्थन प्राप्त है इसीलिए सरकार पर भरोसा करने के बाद निवेशकों ने अपना पैसा शारदा चिट फंड कंपनी में लगाया और इस भरोसे के ईनाम के रूप में उन्हें मिला तो सिर्फ धोखा.
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की लोकप्रिय नेता रही हैं लेकिन उन पर लगे इन आरोपों के बाद उनके प्रति हमेशा से ही ईमानदार रहने वाली ग्रामीण जनता का विश्वास उठने लगा है. ग्रामीण क्षेत्रों में ममता सरकार अपनी साख बहुत तेजी से गंवाने लगी है क्योंकि इस घोटाले में सबसे अधिक नुकसान भी उन ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों का ही हुआ है.
निवेशकों का तो ममता सरकार से भरोसा उठ ही रहा था लेकिन वर्ष 1998 में तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद से ही उसके साथ जुड़े रहे नेतागणों ने भी अपना ममता बनर्जी के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है. अभी तक म्यूजिक कंपोजर कबीर सुमन ही, जो वर्ष 2006 में तृणमूल से जुड़े और वर्ष 2009 में लोकसभा सदस्य बने और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर ममता बनर्जी से अलग हो गए, ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे लेकिन अब सुगता रॉय, सिसिर अधिकारी और सुवेंदू अधिकारी भी ममता बनर्जी के प्रति नाउम्मीदी दर्शा चुके हैं. उनका कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के सांसदों, तपस पॉल और सोमेन मित्रा ने शारदा चिट फंड कंपनी जैसी अन्य कंपनियों की कार्यप्रणाली को लेकर सरकार को आगाह किया था, उसी समय पार्टी को कुछ ना कुछ कठोर कदम उठाने चाहिए थे. मित्रा ने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर भी यह बात बताई थी कि कैसे यह कंपनियां ग्रामीण लोगों को लूट रही हैं. पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं द्वारा जोरदार तरीके से यह मांग की जा रही है कि पार्टी में शामिल हर उस सदस्य से छुटकारा पाया जाए जिनका मेलजोल सुदीप्तो सेन या उस जैसे किसी भी व्यक्ति से है. यह मांग सीधे तौर पर उन सांसदों और विधानसभा सदस्यों को निशाने पर रख कर की गई है जिनका सीधा संबंध सुदीप्तो सेन के साथ है.
तृणमूल कांग्रेस के एक सदस्य ने अपना नाम ना छापने की शर्त के साथ यह भी कहा कि पार्टी के साथ सुदीप्तो सेन के रिश्ते इस सीमा तक थे कि दुर्गा पूजा के समय भी नेताओं द्वारा किए जा रहे बड़े-बड़े आयोजनों में सेन का ही पैसा लगा होता था. इतना ही नहीं शारदा कंपनी द्वारा कई सरकारी आयोजनों में भी पैसा लगाया जाता था.
सेन द्वारा तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष और श्रृंजोय बासु पर आरोप लगाने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अगर ममता बनर्जी नए सदस्यों पर निर्भर ना होतीं तो ऐसे हालातों को टाला जा सकता था. शारदा घोटाले में ममता बनर्जी सरकार के संलिप्त होने की खबर आने के बाद तृणमूल कांग्रेस की साख को बहुत गहरा आघात पहुंचा है और मीडिया में इस खबर के छा जाने के बाद ममता बनर्जी का वो सपना अधूरा रह गया जिसके अनुसार वह सरकार समर्थक मीडिया संस्थाएं स्थापित करना चाहती थीं.
ममता बनर्जी के सिर पर बंगाल ही पहली महिला मुख्यमंत्री होने का ताज विराजमान है, बंगाल के ग्रामीण इलाकों में उनकी लोकप्रियता भी उनके राजनीतिक कॅरियर के लिए एक बड़ा सहारा है. लेकिन उन पर लगने वाले ऐसे आरोपों ने कहीं ना कहीं उनकी साख को नकारात्मक तरीके से जरूर प्रभावित किया है. अब इन आरोपों का सामना ममता सरकार किस तरह करती है यह देखने वाली बात है.
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