राजनीति एक शतरंज की बिसात की तरह है और अगर राजा को बचाना है तो जाहिर सी बात है छोटे-छोटे प्यादों जिनका रोल अब खत्म हो चुका है, उन्हें संभाले रखना भी तार्किक नहीं है और वो भी तब जब उनके रास्ते में होते हुए आंच राजा तक पहुंचने लगे. ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है गुजरात की राजनीति में.
गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को एक ऐसे राजनेता के तौर पर जाना जाता है जो सांप्रदायिक और कट्टर हिंदुत्व के पैरोकार हैं. यही वजह है कि जब-जब भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी के कद को बढ़ाने की कवायद को हवा दी जाती है तब-तब नरेंद्र मोदी के विरोध में आवाजें उठने लगती हैं. सांकेतिक तौर पर ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के रूप में प्रधानमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार का चुनाव कर चुकी है, जिसके बाद नीतीश कुमार, शिवराज सिंह, यशवंत सिंह आदि जैसे वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी के विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं और इस बात में भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि यह सभी नेता मोदी की कथित सांप्रदायिक छवि के कारण ही उनका विरोध कर रहे हैं.
लेकिन लगता है मोदी अपने विरुद्ध चल रहे गर्मागर्म माहौल से उकता चुके हैं इसीलिए अब वह कुछ भी कर के अपने ऊपर लगे इस सांप्रदायिक के ठप्पे को हटाने का प्रयास करने में जुटे हैं और इस प्रयास की शुरुआत की है उन्होंने कभी अपने सहयोगी रहे माया कोडनानी और बाबू बजरंगी की उम्रकैद की सजा को फांसी की सजा में तब्दील करने की मांग से.
उल्लेखनीय है कि गुजरात दंगों के समय माया कोडनानी नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री थीं और भाजपा से तीन बार महिला विधायक भी रह चुकी हैं. माया कोडनानी पर आरोप है कि 28 फरवरी, 2002 के दिन जब नरोदा पाटिया इलाके में 97 लोगों की हत्या की गई थी तो आक्रमणकारियों के समूह का नेतृत्व माया कोडनानी ने ही किया था और इसमें उनका साथ दिया था बाबू बजरंगी ने. नरोदा पाटिया इलाके में घटी इस दुर्घटना के आरोप में माया कोडनानी को 28 वर्ष की सजा सुनाई गई वहीं बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास दिया गया.
लेकिन अब प्रधानमंत्री पद की ओर अपने बढ़ते कदमों को और मजबूती प्रदान करने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री ने अपने इन दो साथियों की बलि देना स्वीकार कर लिया है और विशेष अदालत द्वारा दी गई सजा को बढ़ाते हुए उसे फांसी की सजा में तब्दील करने की मांग उठाई है.
हालांकि राज्य सरकार के वकील का कहना है कि गुजरात दंगों के समय ही इन दोनों आरोपियों को फांसी की सजा दिए जाने की मांग की गई थी. उनका कहना है कि अदालत के अनुसर यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट में आता है लेकिन फिर भी उन्हें फांसी नहीं दी गई इसीलिए अब उन्हें फांसी दिए जाने की मांग को लेकर अगले 15 दिनों में एक अर्जी डाली जाएगी.
माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को फांसी दिए जाने की मांग नरेंद्र मोदी के लिए आफत सिद्ध होने वाली है क्योंकि जहां पहले उन्हें सांप्रदायिक नेता करार दिया जा रहा था वहां अब राष्ट्रीय राजनीति के मैदान में अपने पैर जमाने के लिए शतरंज के मोहरों की बलि लेने जैसे उनके कदम उनकी छवि को और अधिक नकारात्मक तरीके से प्रभावित करने वाले हैं.
यूं तो राजनीति की यही खासियत है कि यहां कोई किसी का अपना या कोई पराया नहीं होता. मौके और समय के साथ सभी लोग अपना पाला बदलने की फिराक में रहते हैं. यहां भी कुछ ऐसा होता ही दिखाई दे रहा है क्योंकि नरेंद्र यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि गुजरात दंगों की आग धीरे-धीरे उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेगी, परिणामस्वरूप जो लोग उस घटना में मोदी की भूमिका को भूल भी चुके हैं, वह भी मोदी को दोषी ठहराने लगेंगे. इसीलिए वह जड़ को ही काटकर अपने विशालकाय आधिपत्य को संभालकर रखने की फिराक में है.
निश्चित तौर पर माया कोडनानी और बाबू बजरंगी गुजरात दंगों के आरोपी हैं और उन्हें फांसी की सजा होनी भी चाहिए लेकिन उनकी फांसी की पैरवी कर नरेंद्र मोदी खुद पर लगी सांप्रदायिकता की छाप को हटाना चाहते हैं, ताकि उनकी कट्टर हिंदू की छवि उनके प्रधानमंत्री पद की राह में बाधा ना डाले. शायद राजनीति की भाषा में इसे ही कहते हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.
election 2014
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