दुनिया की सर्वश्रेष्ठ महाशक्ति का दावा करने वाले अमेरिका को लगा यह जख्म उसके आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलता नजर आता है. यह एक प्रकार से उसकी ताकत को चेतावनी देने के साथ ही चुनौती भी है. क्या अमेरिका इससे सबक लेकर अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत बनाने की कवायद करेगा या फिर वह दुनिया को भरमाने वाली छद्म मारक कार्यवाहियों की पहल करेगा?
सोमवार दोपहर बॉस्टन में हुए बम धमाकों की गूंज अमेरिका समेत पूरी दुनिया को हिला देने वाली थी. अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा इसे एक कायरतापूर्ण घटना करार देते हैं, तो एफबीआई इस घटना को अंजाम देने वालों को धरती के किसी भी कोने से ढूंढ़ लेने की बात कह रही है. इसमें कोई शक नहीं कि वे ऐसा कर भी लेंगे, लेकिन अमेरिकी देशभक्ति दिवस पर हुआ यह धमाका 9/11 आतंकी हमले के बाद कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का दावा करने वाले अमेरिका के इन दावों पर प्रश्नचिह्न लगा जाता है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि 1977 की अमेरिकी क्रांति की याद में मनाए जाने वाले अमेरिका के इस राष्ट्रीय अवकाश दिवस पर बॉस्टन में हर वर्ष बॉस्टन मैराथन का आयोजन किया जाता है और आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में कई सुरक्षा एजेंसियां तैनात होने के साथ ही इस पर करोड़ो डॉलर खर्च किये जाते हैं. ओबामा हमले के कारणों और हमलावरों की जानकारी से इंकार करते हुए इसका पता लगा लेने तक अमेरिकी लोगों से धैर्य रखने को कहते हैं, साथ ही कि कि हमले में हताहत हुए लोगों को इंसाफ मिलेगा. यह अमेरिकी राष्ट्रपति को एक प्रकार से मजबूर प्रदर्शित करता है जहां वे जांच से पहले किसी पर भी शक करने, कोई एक भी कारण का अन्दाजा लगा पाने में असमर्थता जताते हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि हमले में प्रयुक्त विस्फोटक घरेलू सामानों प्रेशर कुकर, बॉल बेयरिंग्स आदि से तैयार किया गया था. सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि प्रेशर कुकर में ही विस्फोटक सामान रखकर उसे किसी टाइमर से कंट्रोल किया गया था. शायद घरेलू सामान होने के कारण जांच में सुरक्षा कर्मियों की निगाह इस पर न पड़ी हो. लेकिन अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों की यह चूक छोटी नहीं मानी जा सकती क्योंकि वर्ष 2010 में भी टाइम्स स्क्वायर पर हमले की कोशिश में विस्फोट के लिये यही सामान पाए गये थे, वर्ष 2004 में भारत के हैदराबाद बम धमाकों में भी यही सामान प्रयोग किये गये थे. ये दोनों ही मामले जगजाहिर हैं इसलिए अमेरिकी एजेंसियां यह नहीं कह सकतीं कि धमाके का कोई नया तरीका है या घरेलू सामानों के कारण यह संदेह की स्थिति में नहीं आया. अतः सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ऐसे हुआ कैसे? इतनी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद जहां सिर्फ एक खान के नाम पर किसी देश के मशहूर सितारे, राजनयिकों को भी सुरक्षा के कड़े नियमों से बख्शा नहीं जाता, वहां इतने ऐतिहासिक और लोकप्रिय दिवस पर ऐसे हमले हो जाते हैं.
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अमेरिकी मंत्रालय के अनुसार अब तक इस हमले की जिम्मेदारी किसी भी आतंकवादी ग्रुप ने नहीं ली है, अतः हमले में घरेलू तत्वों के शामिल होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. बराक ओबामा की लोकप्रियता से सभी वाकिफ हैं. गौरतलब है कि सितंबर 2001 में पेंटागन पर हमलों के कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध को लेकर किरकिरी झेल रहे जॉर्ज बुश को अगले राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य माना जाने लगा था और बुश प्रेसिडेंसी को लेकर सवालों में घिर गए थे. लेकिन अलकायदा के खात्मे का मिशन लेकर उन्होंने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और आश्चर्यजनक रूप से अगले चुनाव में जीत भी गए. पर उन्हीं बुश को इराक पर हमले में देश हित को हाशिये पर रखने के मसले पर राष्ट्रपति पद से हाथ धोना पड़ा. अतः इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इन हमलों का सूत्र अमेरिका की घरेलू राजनीति ही हो सकती है और इसका मकसद केवल ओबामा की बढ़ती शाख पर प्रश्नचिह्न लगाना ही हो. हालांकि विस्फोटक के रूप में प्रयुक्त सामग्री का हैदराबाद हमले से मेल खाने से इसमें आतंकी हाथ होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
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