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दलाली करते थे राजीव गांधी – विकीलीक्स का नया खुलासा

अपने खुलासों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सनसनी पैदा करने वाली खोजी वेबसाइट विकीलीक्स ने फिर एक बार अपनी तरकश से तीर निकाल दिए हैं और इस बार निशाना बनाया है गांधी परिवार के एक अहम सदस्य और देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को.

इंदिरा के रास्ते की रुकावट थे जयप्रकाश – विकीलीक्स


मिस्टर क्लीन पर दलाली का नया आरोप

बोफोर्स कांड के आरोपों से अभी तक पूरी तरह मुक्ति मिली भी नहीं थी कि विकीलीक्स ने यह दावा कर दिया है कि भारत का प्रधानमंत्री बनने से पहले जब राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस के पाइलट के तौर पर काम कर रहे थे तब उन्होंने सन 1970 में स्वीडन की एक कंपनी साब स्कानिया, जो भारत को विगर एयरक्राफ्ट बेचना चाह रही थी, की ओर से बिचौलिए का काम किया था. किसी वजह से यह सौदा नहीं हो सका और इस रेस में जीत लगी थी ब्रिटिश कंपनी जैगुआर के हाथ.



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विकीलीक्स के हवाले से द हिंदू के इन आश्चर्यजनक खुलासों की मानें तो इस सौदे में राजीव गांधी मुख्य मध्यस्थ के तौर पर जुड़े रहे और उनके पारिवारिक संबंधों ने भी इस सौदे को संपन्न करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


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राजनीतिक परिवार से संबंध रखने के बावजूद वर्ष 1980 तक राजीव गांधी राजनीति से पूरी तरह दूर थे. भाई की मृत्यु के पश्चात उनकी मां इन्दिरा गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आईं. ऐसा माना जाता है कि राजनीति में आने से पहले तक राजीव गांधी की सार्वजनिक छवि एकदम साफ थी, लेकिन इस सौदे में राजीव गांधी का एक मध्यस्थ के तौर पर जुड़ने जैसी बात उनकी छवि को खराब करने वाली है. उल्लेखनीय है कि बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी की संलिप्तता के कारण वर्ष 1989 में कांग्रेस को बहुत बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.



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1974 से 1976 के दौरान जारी 41 केबल्स के अनुसार स्वीडिश कंपनी यह जानती थी कि भारत द्वारा एयरक्राफ्ट के लेन-देन से जुड़े अंतिम निर्णय में गांधी परिवार की भूमिका अहम रहेगी. इतना ही नहीं दसो नामक फ्रांसीसी कंपनी को भी इस बात का अंदेशा था कि राजीव गांधी अपने सरनेम का फायदा स्वीडिश कंपनी को जरूर पहुंचाएंगे. “दसो” के मिराज फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए भारत के तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष ओ.पी. मेहरा के दामाद ने भी बिचौलिए का भार संभाला था लेकिन इस डील में उनकी जीत की संभावनाएं कम थीं.



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वर्ष 1975 में राजधानी दिल्ली में स्थित स्वीडिश दूतावास के तत्कालीन राजनायिक की ओर से भी यह जानकारी दी गई कि इंदिरा गांधी ब्रिटेन से जुड़े कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थीं इसीलिए कुछ हद तक यह बात सभी को पता थी कि इस रेस में ब्रिटिश जैगुआर कहीं नहीं है और प्रतिस्पर्धा सिर्फ मिराज और विजन के बीच है. राजनयिक द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार हालांकि उस समय राजीव गांधी का नाम भारतीय एवियेशन इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ था लेकिन पहली बार उन्हें बतौर उद्यमी पहचाना जा रहा था. केबल में साफ लिखा था कि यद्यपि राजीव गांधी एक ट्रांसपोर्ट पायलट थे लेकिन उनके पास उनका सरनेम ही अन्य किसी भी योग्यता से बहुत बड़ा है, “गांधी” परिवार से संबंध रखना ही उनकी सबसे बड़ी योग्यता है.


दूसरे और महत्वपूर्ण केबल के अनुसार इस डील से एयरफोर्स को दूर रखा गया था जबकि इन्दिरा गांधी बेहद सक्रिय तौर पर भूमिका निभा रही थीं जो स्वीडिश कंपनी को पसंद नहीं आ रहा था. केबल के अनुसार एक फाइटर प्लेन की कीमत 40 से 50 लाख डॉलर थी और भारत की ओर से लगभग 50 विजन प्लेन के लिए बातचीत चल रही थी.


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लेकिन स्वीडन को धक्का तब लगा जब 6 अगस्त, 1976 को अमेरिका के दबाव में आकर इस डील से स्वीडन को अपने पांव वापस पीछे खींचने पड़े. अमेरिका का कहना था कि वह अमेरिकी डिजाइन और तकनीकों से लैस विजन का भारत में उत्पादन नहीं होने देगा. अमेरिका की ओर से यह कहा गया था कि गंभीरता से विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विजन के किसी भी ऐसे संस्करण को भारत को निर्यात करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं, जिसमें अमेरिकी पुर्जे लगे हों.


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कैसे निपटेगी कांग्रेस

निश्चित रूप विकीलीक्स का यह नया खुलासा भारत में हड़कंप मचाने के लिए काफी है. सरकार वैसे ही भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों से ग्रस्त है. अब जबकि राजीव गांधी की संलिप्तता का खुलासा किया गया है तो इसे दबाना और इस पर जवाब देना काफी भारी पड़ सकता है. विपक्षी दल भाजपा भी इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश करेगी ताकि किसी भी कारणवश सरकार गिरने की स्थिति में भावी चुनाव में लाभ उठा सके. अब देखना यह है कि कांग्रेस इस मामले से कैसे निपटती है.



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