गुजरात का कर्ज तो चुका दिया और अब बारी है भारत मां का कर्ज चुकाने की, यह कहना था गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का. हाल ही में भाजपा सदस्य और गुजरात के कर्णधार नरेंद्र मोदी का यह बयान आया था कि उन्होंने गुजरात का कर्ज तो चुकता कर दिया लेकिन अब वह भारत मां के कर्ज को चुकाने के लिए तैयार हैं. नरेंद्र मोदी का यह बयान उनकी राजनीतिक मंशाओं को साफ करता है कि अब वह एक क्षेत्र विशेष में बंधकर नहीं रहना चाहते बल्कि अब उनका उद्देश्य राष्ट्रीय राजनीति में अपना परचम लहराने का है. खैर हर राजनीतिज्ञ यही चाहता है कि वह बस एक क्षेत्रीय नेता बनकर ही अपना पॉलिटिकल कॅरियर ना बिता दे बल्कि केन्द्रीय राजनीति में भी उसका नाम हो और अब जब नरेंद्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जाने लगा है तो उनका ऐसा बयान देना लाजमी और कुछ हद तक कह सकते हैं अपेक्षित भी था.
लेकिन नरेंद्र मोदी का यह बयान जैसे ही आया उस पर पलटवार करते हुए कांग्रेस के ब्राडकॉस्टिंग मंत्री मनीष तिवारी का कहना था कि नरेंद्र मोदी की मंशा शायद गुजरात के बाद अब भारत के अन्य राज्यों में दंगे फैलाने की है, वही दंगे जो उन्होंने 2002 में गुजरात में करवाए थे.
मनीष तिवारी का यह कहना था कि उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के बयानों पर चिंता होती है कि कहीं भारत में या भारत के अन्य प्रदेशों में वह वही सब ना करना चाहें जो उन्होंने कभी गुजरात में किया था. अब कांग्रेस सदस्य मनीष तिवारी ने नमो-नमो पर निशाना साधा है तो भाजपा के अंदर आक्रोश भड़कना ही था. मनीष तिवारी के इस बयान को बकवास करार देते हुए बीजेपी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि कांग्रेस ही ऐसे दंगों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है. 1984 में हुए सिख दंगों और इसके बाद के भी अधिकांश दंगों के लिए सिर्फ कांग्रेस ही जिम्मेदार है.
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जाहिर सी बात है कि आज जब नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पार्टी के अंदर और आम जन में तेजी से बढ़ने लगी है तो ऐसे हालातों में कांग्रेस के भीतर भय का माहौल व्याप्त होना ही था और ऐसे में वार-पलटवार का सिलसिला भी शुरू होना था. नरेंद्र मोदी का कद राष्ट्रीय राजनीति में लगातार बढ़ता जा रहा है जिससे कांग्रेस की मुश्किलें और तेज हो गई हैं. एक तो पहले ही सत्ताधारी सरकार महंगाई, भ्रष्टाचार आदि जैसे मुद्दों के लेकर विवादों में है और अब जब आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा का पलड़ा भारी नजर आने लगा है तो कांग्रेस पार्टी के अंदर असुरक्षा का माहौल तैयार हो गया है. शायद वह भाजपा और नरेंद्र मोदी की दुखती रग पर प्रहार कर खुद को उनसे बेहतर साबित कर चाह रही है.
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कहते हैं ना कि अगर खुद की सफलता मुश्किल हो तो अपने प्रतिद्वंदी के रास्ते में भी रुकावटें डाल दो. शायद कांग्रेस इसी रणनीति पर काम कर रही है. क्योंकि वर्तमान हालातों में तो सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के प्रति विरोधी स्वर ही सुनाई दे रहे हैं. वह समझती है कि जनता में व्याप्त रोष को दबाना बहुत आसान नहीं है. इसीलिए जहां पहले राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रतिनिधि बनाना तय था वहीं अब सुनने को मिल रहा है कि शायद जीत की उम्मीद ना होने के कारण फिर मनमोहन सिंह को ही बलि का बकरा बनाया जाने वाला है और अब भाजपा के मुख्य चेहरे बन गए नरेंद्र मोदी पर शिकंजा कसा जा रहा है और वह भी अपने गिरेबान में झांके बिना.
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