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यह कहीं तीसरे विश्व युद्ध की आहट तो नहीं !!

किम जोंग उन के बारे में जानने के लिए क्लिक करें

वर्ष 1939 में शुरू हुआ तीसरा विश्वयुद्ध एक वैश्विक सैन्य संघर्ष था जिसमें विश्व की हर बड़ी ताकत के साथ शामिल थे हर छोटे-बड़े देश. फर्क बस इतना था कि विश्वयुद्ध में शामिल सभी देश दो महान शक्तियों मित्र राष्ट्रों और जर्मनी के बीच बंटे हुए थे. 1945 में युद्ध समाप्त होने के बाद दो महाशक्तियों अमेरिका व सोवियत संघ के गुटों में शामिल देशों के बीच शीत युद्ध का प्रारंभ हुआ जो अगले कई वर्षों तक चला. इस बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति बनाए रखने के लिए मित्र राष्ट्रों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ जो 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया.


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उल्लेखनीय है कि पश्चिमी सहयोगियों और सोवियत संघ के सहयोगी राष्ट्रों के बीच हालात युद्ध समाप्त होने से पहले ही बिगड़ने शुरू हो गए थे. दुनिया के कई हिस्सों में तो द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के कुछ ही समय बाद ही संघर्ष दोबारा शुरू हो गया था. संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले जापान पर कब्जा किया और फिर जापान शासित कोरिया को दो भागों दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया के बीच विभाजित कर दिया. दक्षिण कोरिया को अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त था वहीं उत्तर कोरिया पर चीन और रूस का प्रभाव था. इन दोनों देशों के बीच भी युद्ध की शुरुआत हुई और एक गतिरोध के साथ युद्ध समाप्त हुआ.


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उत्तर कोरिया में कम्युनिस्ट तानाशाही सरकार की स्थापना हुई जिसने पश्चिमी अवधारणा को मानने से इंकार दिया. जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उत्तर कोरिया के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित करवा उसे उदंड राष्ट्र का दर्जा दिलवा दिया. इस प्रस्ताव को पारित करने के बाद उत्तर कोरिया के साथ सभी प्रकार के व्यवसायिक संबंध समाप्त किए गए. उसके साथ आयात-निर्यात रोक दिया गया और द्विपक्षीय संबंध भी इतने ही रखे गए जिससे कि शांति स्थापित रहे और उत्तर कोरिया मित्र राष्टों के दबाव में रहे. पिछले कुछ सालों में 6 पक्षीय वार्ता भी चली जिसमें दक्षिण कोरिया भी शामिल रहा. इस वार्ता का मकसद उत्तर कोरिया पर दबाव बनाकर उसे खाद्य और ईंधन जैसी वस्तुओं के एवज में ब्लैकमेल करना था जिससे कि वह सैन्य भंडारण या परमाणु परीक्षण पर रोक लगा दे.


अमेरिका जैसी महाशक्ति, जिसके आगे कोई भी विरोध की आवाज नहीं उठाता उसके द्वारा दुनिया के तीन देशों इराक, ईरान और उत्तर कोरिया को एक्सिस ऑफ एविल यानि दुष्ट राष्ट्रों की धुरी का दर्जा दिया गया. उल्लेखनीय है कि अमेरिका के ही प्रयासों द्वारा पहले सद्दाम हुसैन के खात्मे के साथ इराक का अंत हुआ और फिर गद्दाफी के साथ लीबिया का और अब अमेरिका की नजर ईरान और उत्तर कोरिया पर है. हालांकि 1986 में शुरू हुए प्लूटोनियम रिएक्टर को वर्ष 2007 में अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण बंद कर दिया गया था लेकिन  उत्तर कोरिया ने बंद पड़े इस रिएक्टर को फिर से शुरू करने की घोषणा की है, जिसके बाद वह परमाणु बमों में प्रयोग होने वाले संवर्धित यूरेनियम प्राप्त कर लेगा. इस घोषणा के बाद अमेरिका की भौंहे तन गई हैं और उसने उत्तर कोरिया के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां आरंभ कर दी हैं. इतना ही नहीं उत्तर कोरिया की ओर से भी अमेरिका पर एटमी हमला करने को मंजूरी दे दी गई है.



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नॉर्थ कोरियाई सेना की ओर से आए एक बयान में यह साफ कर दिया गया है कि अमेरिका की आक्रामक नीति के साथ सख्ती से निपटारा किया जाएगा और इसके लिए एटमी हथियारों का प्रयोग करना पड़े तो नॉर्थ कोरिया उसके भी लिए तैयार है.


अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रही खबरों के अनुसार अमेरिकी नौसेना का विध्वंसक पोत यूएसएस जॉन एस मैक्केन और रडार एसबीएक्स-1 उत्तर कोरिया के नजदीक पहुंच रहे हैं, जिनकी सहायता से उत्तर कोरियाई सेना की गतिविधियों पर निरीक्षण किया जा सकेगा. अमेरिका और दक्षिण कोरिया पहले ही अपने लड़ाकू विमानों के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास कर रहे हैं.


दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी कमांडर जनरल जेम्स थर्मन का कहना है कि उन्हें जब से यहां भेजा गया तब से उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच हालात इतने खराब नहीं हुए जितना कि अब दिखाई दे रहे हैं. उनके अनुसार हालात बहुत गंभीर हैं और कभी भी युद्ध को आमंत्रण देने वाले हैं.


देखा जाए तो अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच संवाद का टूटना पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है. इसीलिए काफी समय से कई सजग राष्ट्रों द्वारा इस तरह के हालात को रोका जाता रहा है. किंतु इस बार स्थिति थोड़ी ज्यादा गंभीर है. ऐसे में दुनिया के सामने एक बार फिर से विश्व युद्ध जैसा संकट गहराने लगा है यानि महाविनाश का तीसरा विश्व युद्ध.


अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच बिगड़ते हालात

घातक होगा उत्तर कोरिया की जिद का अंजाम


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