राजनीति, सत्ता और पॉवर यह कुछ शब्द आज सभी के लिए इतने अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं कि इनके आगे ना किसी को कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई. लेकिन शायद इस शातिर राजनीति का वो पहलू अभी तक किसी ने नहीं देखा था जो अब सार्वजनिक रूप से अवतरित हुआ है.
ताजा मामला कुंडा (उत्तर प्रदेश) के डीएसपी की हत्या से जुड़ा है. उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता राजा भैया पर उत्तर प्रदेश के डीएसपी जिया उल हक की हत्या का आरोप लगा है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राजा भैया प्रदेश के एक ऐसे शख्स हैं जिनसे सूबे के सारे अधिकारी थर-थर कांपते हैं. छिपे तौर पर ही सही लेकिन यह बात सर्वमान्य है कि उसके एक इशारे पर प्रदेश में कुछ भी और कभी भी हो सकता है.
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यह लेख राजा भैया की ताकत और क्षेत्र विशेष में उनके बाहुबल की चर्चाओं पर कतई केंद्रित नहीं है बल्कि अगर डीएसपी की हत्या, राजा भैया की उसमें संलिप्तता और फिर अपेक्षित तौर पर राजनैतिक षडयंत्र की बात की जाए तो शायद हमें राजनीति की चालें बेहतर तरीके से समझ आ सकती हैं.
उल्लेखनीय है कुछ दिन पहले कुंडा के ग्राम प्रधान की हत्या होने के बाद क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी. बढ़ती हिंसा पर काबू पाने के लिए डीएसपी के नेतृत्व में पुलिस बल कुंडा भेजा गया लेकिन ग्रामीण और पुलिस के बीच चले लंबे टकराव में डीएसपी और गांव प्रधान के भाई की मौत हो गई थी.
डीएसपी की मौत से उनकी पत्नी और पूरा परिवार सदमे में था. जिया उल हक की पत्नी ने राजा भैया पर उनके पति को मारने का षडयंत्र रचने जैसा आरोप भी लगाया जिसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस घटना की जांच सीबीआई को सौंपने की बात कही थी.
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वैसे तो आरोप लगने के बाद राजा भैया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन इससे पहले सीबीआई की जांच शुरू हो पाती और सच बाहर आ पाता जिया उल हक के परिवार को सरकारी नौकरी का झुनझुना पकड़ाकर यह कहें खरीद लिया तो भी गलत नहीं कहा जाएगा.
शहीद डीएसपी जिया उल हक के परिवार के अंदर सरकारी नौकरी पाने को लेकर जंग का मैदान तैयार कर दिया गया है और जो परिवार पहले जिया उल हक को इंसाफ दिलवाने के लिए एक साथ खड़ा था आज वह सरकारी नौकरी के लिए एक दूसरे से झगड़ रहा है. इस झगड़े की शुरुआत हुई है जिया की पत्नी परवीन के परिवार वालों के हस्तक्षेप के बाद. उल्लेखनीय है कि परवीन अपने ससुरालवालों को नहीं बल्कि मायके वालों को नौकरी दिलवाने के पक्ष में खड़ी है जिसके बाद जिया की हत्या का विषय गौण होकर ससुराल और मायके वालों के झगड़े में बदल गई है.
राजा भैया से खौफ खाई सूबे की सरकार शायद यह बात अच्छी तरह समझती थी कि अगर इस विषय को दबाना है तो कुछ ना कुछ ऐसा जरूर पकड़ाना होगा जो इस मसले से ज्यादा मजबूत हो. जाहिर है इससे बेहतर तो कुछ हो भी नहीं सकता था. जब पूरा परिवार अपने में ही उलझ कर रह जाएगा तो किसके पास टाइम है जो जिया उल हक की मौत को लेकर हल्ला मचाए.
राजनीति की एक विशेष खूबी है, वह जिसे चाहे अपने इशारों पर नचा सकती है और इस बार तो पूरा का पूरा परिवार ही राजनीति के इशारों पर नाचने को मजबूर है. सरकार की नौकरी करना, वो भी उत्तर प्रदेश में है ही इतना फायदे का सौदा कि कोई क्यों इससे मुंह फेरे.
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