कहते हैं किसी भी देश की राजनीति ना सिर्फ उस देश की सामाजिक, आर्थिक और कानून व्यवस्था को प्रभावित करती है बल्कि संबंधित देश के भविष्य को किस दिशा में मोड़ना है यह भी राजनीति ही निर्धारित करती है.
अब इस मामले में भारत को दुर्भाग्यशाली राष्ट्र कह लें या सुस्त देश लेकिन भारत की रजनीति इस कदर भ्रष्ट और स्वार्थ लिप्त हो चुकी है कि कोई भी रसूख वाला व्यक्ति कितने ही घिनौने काम क्यों ना कर लें उस पर कानून अपना फंदा कस ही नहीं पाता.
ताजा मामला पिछले साल चर्चा में आया गीतिका सुसाइड केस से जुड़ा है. अगस्त 2012 में महत्वाकांक्षी एयर हॉस्टेस गीतिका ने अपने ही घर में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी. आत्महत्या से पहले उसने एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें उसने हरियाणा के पूर्व मंत्री और जिस एयरलाइंस में वो काम करती थी उसके मालिक गोपाल कांडा को अपने सुसाइड के लिए जिम्मेदार बताया था. गीतिका द्वारा लिखा गया सुसाइड नोट गोपाल कांडा के खिलाफ एक सशक्त सबूत था.
लेकिन कहानी यही खत्म नहीं हुई.
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प्रताड़ना से तंग आकर अब गीतिका की मां अनुराधा ने भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. अनुराधा ने भी मरने से पहले दो पेज का सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें उन्होंने अपनी मौत का जिम्मेदार एम.डी.एल.आर. एयरलाइंस के मालिक गोपाल कांडा और अरुणा चड्ढा को ठहराया है. सूत्रों की मानें तो सुसाइड नोट में ऐसे कई संजीदा आरोप लगाए गए हैं जिनकी जांच की जा रही है.
आप जरूर यह सोचेंगे कि गोपाल कांडा तो गीतिका सुसाइड केस के चलते अभी भी जेल की ही हवा खा रहा है तो वह अनुराधा की आत्महत्या का जिम्मेदार कैसे हो सकता है?
अगर वाकई आपके मस्तिष्क में यह सवाल उठा है तो शायद आप अभी भी भारतीय राजनीति की ‘खूबियों’ को समझ नहीं पाए हैं. फिल्मों में तो आपने देखा होगा कि अपराधी कैसे प्रशासन और पुलिसिया तंत्र से अपनी सांठ-गांठ के कारण कैसे जेल में ही बैठे-बैठे सारे क्रियाकलापों को अंजाम दे देते हैं. इस केस में भी कुछ ऐसा ही है.
गीतिका सुसाइड केस में उनकी मां अनुराधा एक अहम गवाह थी और जाहिर सी बात है कि अगर अनुराधा गोपाल कांडा के खिलाफ गवाही दे देती तो उनकी पहुंच के कारण तो कोई सख्त सजा नहीं होती लेकिन हां, कुछ साल तो कांडा को जेल में बिताने ही पड़ते.
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भारत की दोगली राजनीति की पहचान इसी बात से हो जाती है कि जहां एक ओर वोट बैंक दुरुस्त रखने के लिए अफजल गुरू और अजमल आमिर कसाब को बिना किसी पूर्व सूचना के फांसी दे दी जाती है वहीं कांडा जैसे अपराधी जो राजनीति की छत्रछाया में ही फल-फूल रहे हैं उन्हें एक खरोंच तक पहुंचाने में भी सकपकाहट उठने लगती है.
वाह री भारत की राजनीति ! अपराधी जितना अधिक रसूख वाला होगा वह उतनी जल्दी अपराध से मुक्त हो जाएगा और पीड़ित ताउम्र बस अपने जख्मों के भर जाने का ही इंतजार करता रहेगा. गीतिका के परिवार को ही देख लीजिए ना अब.
परिवार के एक सदस्य की आत्महत्या से तो अभी तक उभरे नहीं होंगे और अब जब समान कारणों की ही वजह से एक और व्यक्ति ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली तो ना जाने कैसे इस सदमे को सहा जाएगा.
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आम जनता की आंखें भले ही नम हो जाएं यह सब सुनकर लेकिन हरियाणा के एक रसूखदार मंत्री होने के कारण कांडा अभी तक जेल में सिर्फ सजा के इंतजार में ही दिन काट रहा है.
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