गुजरात की राजनीति के चमकते सितारे या कहें माहिर खिलाड़े नरेंद्र मोदी के विरोधी कुछ भी सोच लें या उनके विरुद्ध चाहे कैसी भी बयानबाजी कर लें लेकिन सच यह है कि अब नरेंद्र मोदी जो आजकल मीडिया में नमो-नमो के नाम से छाए हुए हैं, की लोकप्रियता पर ऐसे नकारात्मक प्रचारों का कोई खास प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है.
प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के मसले पर नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंदियों द्वारा ऐसा कहा जाता रहा है कि भले ही नरेंद्र मोदी क्षेत्रीय स्तर पर उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हों लेकिन उनका यह चार्म सिर्फ गुजरात तक ही सीमित है. जब वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कोई पहचान नहीं बना सकते तो ऐसे में उनके प्रधानमंत्री बनने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.
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नमो-नमो को हलके में लेने वाले लोगों की सोच को अब गहरा झटका लगने वाला है क्योंकि नरेंद्र मोदी को ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाए जाने का प्रयत्न किया जा रहा है बल्कि अब तो अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी उनके प्रशंसकों की कोई कमी नहीं है.
2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए गठबंधन में कई विरोधाभास व्याप्त हैं, जिन्हें सुलझाने का प्रयत्न तो किया जा रहा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीतिज्ञों ने तो नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श स्वीकार कर लिया है. उनके विरोधी चाहे उनके बारे में कुछ भी सोचें, कुछ भी कह लें लेकिन हकीकत यह है कि ब्रिटेन से लेकर अमेरिकी संसद तक उनकी स्वीकार्यता और समर्थन के पक्ष में दलीलें लगातार बढ़ती जा रही हैं.
हाल ही में अमेरिकी संसद में जो नजारा देखा गया वह वाकई हैरान करने वाला था क्योंकि अमेरिकी गृह मंत्रालय की एशिया प्रशांत और वैश्विक पर्यावरण पर बनी समिति के सदस्य एफ. एन. फालेओमावेगा ने मोदी को एक विशिष्ट और असाधारण नेता के तौर पर उनकी प्रशंसा करते हुए यह कहा कि उनकी सरकार को भारत में अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को खुला और पूर्ण समर्थन देना चाहिए. हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में अपने भाषण के दौरान फालेओमावेगा का कहना था कि मोदी असाधारण व्यक्तित्व वाले नेता हैं और यह उनकी ही निर्णय क्षमता का परिणाम है जो आज गुजरात भारतीय राजनीति का मुख्य घटक बनकर उभर रहा है. इसके साथ ही आर्थिक मामले में भी गुजरात ही है जो भारत की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है.
उल्लेखनीय है कि 2002 में गुजरात में हुए दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को ही दोषी ठहराया जाता रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को कट्टर नेता के तौर पर भी जाना जाता है जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों ने मोदी को पूरी तरह बहिष्कृत कर रखा था लेकिन हाल ही में मोदी ने अपने बयान में दंगों को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए अपना पक्ष रखने की कोशिश की जिसके बाद पश्चिमी देश भी उनके साथ राजनैतिक संबंध स्थापित करने के इच्छुक दिखने लगे हैं.
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कई विवादों और आरोपों से जूझ रहे नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी मजबूत दिखाई दे रही है. एन.डी.ए. के भीतर उनके कई प्रतिद्वंदी मौजूद हैं जो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार करने के लिए राजी नहीं दिखाई देते लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि विवादास्पद छवि के बावजूद नरेंद्र मोदी राहुल गांधी के कट्टर प्रतिद्वंदी के रूप में दिखाई दे रहे हैं. यह बात भी हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी भाजपा अध्यक्ष और आरएसएस के पसंदीदा चयन हैं.
लेकिन भारतीय राजनीति में उठापटक का दौर हमेशा चलता रहा है और आगे भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है. मनमुटाव और लगाव यह तो सब समय-समय की बात है. कहते हैं राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, सब अपने-अपने हित साधने के ही प्रयास करते हैं. हालांकि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी पर अब कोई सवालिया निशान नहीं रह गया है लेकिन अब देखना यह है कि नरेंद्र मोदी को कौन-कौन समर्थन देता है और कौन उनके नाम को स्वीकार नहीं करता.
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