भाजपा ने जब राजनाथ सिंह को नया पार्टी अध्यक्ष बनाया तो कुछ हद तक लगने लगा था कि भाजपा के हालात सुधर जाएंगे और उसमें चल रही अंतर्कलह पर शायद रोक लगेगी. जहां राजनाथ सिंह के ऊपर और भी कई सारी जिम्मेदारियां थीं उसमें से यह भी एक बहुत बड़ा फैसला है कि भाजपा अब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का चयन कैसे करेगी?
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अभी भी यह एक बड़ा मुद्दा है कि आखिर 2014 के चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा? भाजपा अभी भी इस मुद्दे से जूझ रही है कि सारे घटक दलों की राय कैसे एक की जाए और उस फैसले को सर्वसम्मति के साथ कैसे लागू किया जाए.
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घटक दलों का झटका: देखा जाए तो यह बात भी सही है कि भाजपा सबसे ज्यादा परेशान अपने घटक दलों से ही है. जैसे आंकड़े भाजपा के घटक दलों की ओर से पेश किए जा रहें हैं उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार का चुनाव करना भाजपा के लिए बहुत सारे नए झमेले छोड़कर जाने वाला है.
जहां यशवंत सिन्हा ने अपना कर्तव्य निभाते हुए यह कहना शुरु कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं, वहीं विरोध में कई और प्रत्याशी ऐसे भी हैं, आने वाले चुनाव में जिनकी दावेदारी भी मजबूत दिखाई दे रही है.
जहां एक तरफ यह देखने को मिल रहा है कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी ही प्रमुख व्यक्ति हैं, वहीं शिवसेना के अनुसार सुषमा स्वराज इस पद के लिए उपयुक्त कही जा रही हैं. भाजपा के कुछ नेताओं के अनुसार अगर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा हो जाएगी तो भाजपा को आने वाले दिनों में काफी सहूलियत होगी और पार्टी को भी अच्छा खासा लाभ प्राप्त हो सकता है.
अंधी राजनीति गूंगी जनता
नरेन्द्र मोदी सफल होंगें?: इस पूरे घटनाक्रम में सबसे मजबूत नाम शायद नरेन्द्र मोदी का ही है. ऐसा कहा जा रहा था कि वह सेक्युलर नहीं हैं लेकिन इसका जवाब भी उन्होंने गुजरात चुनाव में दे दिया और यह साबित भी कर दिया कि गुजरात के अल्पसंख्यक नरेन्द्र मोदी के विरोध में नहीं है और वह भी राज्य के विकास के जुड़ना चाहते हैं. जहां भाजपा के प्रमुख नेता जिनमें राम जेठमलानी और यशवंत सिन्हा ने अपनी तरफ से यह बात साफ कर दी है कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी ही सही हैं और जेठमलानी ने तो पूरी तरह से मोदी को धर्मनिरपेक्ष नेता करार दिया वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के घटक दल में प्रमुख जेडियू अभी भी अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोलना चाहती है.
इस सारे ड्रामे में नीतिश कुमार का नाम ना आना भी आने वाले समय में भाजपा के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर सकता है. नीतिश कुमार अब क्या नया रूप लेकर भाजपा और राजनीति में सामने आते हैं यह देखने वाली बात होगी.
राजनीति के हर मुद्दे पर नए आयामों का सामने आना भी एक बड़ी भारी परेशानी है, जिसका सामना भाजपा को करना पड़ सकता है.
नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज और नीतिश कुमार इन तीनों उम्मीदवारों में जीत किसकी होगी और कौन से नए राजनैतिक आंकड़े सामने आएंगे यह देखने वाली बात होगी. जहां नरेन्द्र मोदी के साथ संघ परिवार का साथ है, वहीं सुषमा स्वराज को शिवसेना का समर्थन प्राप्त है. यह बात देखने वाली होगी की इस पूरे चक्र में खुद को उलझाने के लिए नीतिश कुमार क्या नया दाव ले कर सामने आएंगे.
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