भारतीय समाज की प्रवृति कुछ इस तरह की है जहां पिता अपने पुत्र को अपने जैसे मलाईदार पद पर देखना चाहता है. भारतीय राजनीति भी इससे अछूती नहीं है. भारत में राजनीति में परिवारवाद एक आम बात है. पिता के बाद पुत्र सत्ता की बागडोर संभाले इसका अपना ही इतिहास रहा है. राजनीति में परिवारवाद की परंपरा शुरू करने वाले कांग्रेस में आज इसलिए उत्साह और खुशी है क्योंकि नेहरू-गांधी परिवार के युवराज राहुल गांधी को परंपरा के मुताबिक वह जगह मिली है जिसके वह हकदार हैं. लेकिन कहीं न कहीं मन में यह संदेह भी उठता है कि क्या राहुल गांधी को पार्टी की बागडोर सौंपना पार्टी के हित में होगा?
Read: इसे चाटुकारिता कहें या फिर मूढ़ता !!
आजकल इसी तरह की सोच उत्तर प्रदेश के क्षत्रप मुलायम सिंह यादव अपने मन में पाले हुए हैं. तभी तो जो काम उत्तर प्रदेश की विपक्षी पार्टी बसपा और बीजेपी को करना चाहिए खुद मुलायम सिंह कर रहे हैं. वह उत्तर प्रदेश में जगह-जगह जाकर अपने पुत्र अखिलेश यादव की सरकार को सार्वजनिक रूप से नसीहत तो दे ही रहे हैं साथ ही कई तरह के सवाल भी उठा रहे हैं. उन्होंने पार्टी के कई बड़े नेताओं को जमकर लताड़ा. उन्होंने नौकरशाही के बेकाबू होने तथा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के मुद्दे को भी अखिलेश सरकार के सामने रखा.
मुलायम सिंह द्वारा दी गई इस तरह की नसीहत से कुछ जानकारों का मानना है कि मुलायम अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने से खुश नहीं हैं. उन्हें शायद यह लगता है कि अखिलेश में नेतृत्व करने की जो योग्यता होनी चाहिए उसमें कमी दिखाई दे रही है लेकिन पिता होने के नाते यह बात वह सबके सामने नहीं कह सकते.
वैसे अखिलेश सरकार की आलोचना करने के पीछे सबसे बड़ी वजह है 2014 का आम चुनाव. जानकार यह भी मानते हैं कि मुलायम सिंह के दिमाग में इस समय आगामी लोकसभा चुनाव है. वह चाहते हैं कि जिस तरह का भारी बहुमत 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने दिखाया था, उसी तरह का बहुमत अगर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल जाए तो जो प्रधानमंत्री बनने का सपना उन्होंने शुरू से पाल रखा था वह शायद पूरा हो जाए.
यही वजह है कि आजकल वह एक-एक कदम बड़ी ही सावधानी से रख रहे हैं. अब वह चाहे सरकार को समर्थन करने का मुद्दा हो या फिर एफडीआई के विरोध का मुद्दा. उनके जहन में कहीं न कहीं यह बात जरूर है कि उनकी पार्टी या सरकार की गलती उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को बर्बाद कर सकती है.
Read:
Read Comments