‘घर का भेदी लंका ढाए’ यह एक ऐसी उक्ति है जिसका प्रयोग हमेशा किया जाता रहा है. कभी किसी संदर्भ में तो कभी दूसरे में पर राजनीति में इसे प्रयोग करना शायद ज्यादा सार्थक और प्रभावी होता है. राजनीति एक ऐसी विधा है जिसमें कभी भी दूसरे पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं किया जा सकता है और यहां ऐसा ही होता नजर आता है. गुजरात चुनाव में भाजपा की जीत कहें या नरेंद्र मोदी की, यह एक संशय की बात है. नरेन्द्र मोदी अपने शक्ति प्रदर्शन और विकास के लिए गुजरात की सत्ता पर अपना अधिकार जमा पाते हैं. इस बात को पूरी तरह दरकिनार नहीं किया जा सकता कि नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात का विकास नहीं हुआ है. भले ही कई सारे कारण दिए जाते हों उनके सत्ता प्राप्त करने के क्रम में पर विकास एक प्रधान मुद्दा है.
प्रधानमंत्री बनने के क्रम में: लगातार तीसरी बार की जीत के बाद केन्द्र की राजनीति और प्रधानमंत्री बनने तक का सफर नरेन्द्र मोदी के लिए आसान हो गया है. बड़े स्तर की राजनीति करने वाले नेता नरेन्द्र मोदी काफी कठिन परिश्रम से इस मुकाम तक पहुंच पाए हैं. अपनी कट्टरवादी छवि को बदलने के लिए नरेन्द्र मोदी ने कई सारे प्रयोग किए और लगता है कि उनमें से कुछ प्रयोग सफल रहे हैं जिसकी वजह से वो हैट्रिक लगा सके. अगर नरेन्द्र मोदी का सियासती कारवां गुजरात चुनाव तक ही सीमित रहता तो कोई बात नहीं होती पर उनके सपने बड़े हैं और उन पर यह भरोसा किया जा सकता है कि वो इस पद को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. इस पूरे रण में वही एक अकेले योद्धा नहीं हैं जो इस ख्वाब को अपने आंखों में सहेज रहे हैं. बिहार की राजनीति और विकास यात्रा को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने कदम केन्द्र की ओर बढ़ाने के बारे में सोच ही चुके होंगे. नीतीश कुमार को भी एक प्रबल दावेदार माना जा रहा है या आप ऐसा कह सकते हैं कि नीतीश कुमार भी खुद को प्रधानमंत्री के रूप में देखना भी पसंद करते हैं.
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चुभन तो हुई ही होगी: पार्टी के सदस्य होने के नाते भले ही नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को बधाई जरूर दे दिया पर क्या यह बधाई उन्होंने मन से दिया होगा? एक प्रतियोगी दूसरे प्रतियोगी का कितना ही खास मित्र क्यों ना हो प्रतियोगिता के दौरान शायद ही वो दोस्ती निभा पाता होगा !! नीतीश कुमार जहां खुद को भी प्रधानमंत्री पद के लिए एक प्रत्याशी मानते हैं तो यह कैसे संभव होगा कि हैट्रिक लगा चुके नरेन्द्र मोदी इस ओर अपना हित साधने नहीं आएंगे. नरेन्द्र मोदी के बारे में जिस प्रकार की राय उनके पार्टी के सदस्यों की है उससे यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि नरेन्द्र मोदी भारी पड़ेंगे. भाजपा के नेता गिरिराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया है कि नरेन्द्र मोदी ने तीन बार लगातर जीत कर खुद को जन नेता साबित कर दिया है और उनके नेतृत्व में भारत का विकास अच्छे रूप और अच्छी गति के साथ हो सकता है.
ऐसा होना शायद ही संभव हो: इतनी आसानी से राजनीति में कोई काम नहीं निकलता है. जनता दल यूनाइटेड पहले ही यह साफ कर चुकी है कि अगर नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया गया तो यह गठबंधन पल भर में ही टूट सकता है. बिहार में जिस प्रकार का विकास कर नीतीश कुमार ने अपनी पकड़ वहां बनाई है यह साफ तौर पर जाहिर करता है कि भाजपा और संघ परिवार के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार का चुनाव करना इतना आसान नहीं होगा.
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