चाहे कैसी भी हो हार तो हार ही होती है. चाहे नजदीक आकर हारें या बड़े फासले से हार हुई हो इसमें भले ही गति और तरीके का जिक्र किया जाए पर यह कह देना शायद ठीक नहीं होगा कि मैं तो हार कर भी जीत गया और आप जीत कर भी हार गए. यह बातें कहीं ना कहीं इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से अपनी जीत को ही प्रधान मानते हैं और जनता के मतों का आपके नजर में कोई स्थान नहीं है. गुजरात और हिमाचल दोनों चुनावों के निर्णय सामने आ गए हैं. इसके बाद भी हार को स्वीकार करने में ना जाने क्यों कांग्रेस को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है?
गुजरात बनाम हिमाचल प्रदेश: दोनों राजनैतिक दलों ने अपनी–अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर के देख लिया. किसी ने भी रत्ती भर भी जगह ना छोड़ी थी अपनी शक्ति को दर्शाते हुए पर अंतिम विकल्प यही निकल कर सामने आया कि जिसके पास जो राज्य था वह उसी के पास रह गया ना तो उसमें कोई परिवर्तन आया और ना ही राजनैतिक परिस्थितियों में कोई बदलाव. इस जंग का जब आगाज हुआ था तब यह कहा जाता था यह सत्ता परिवर्तन की जंग है पर निर्णय के बाद यह देखा गया कि यह मात्र अपनी कुर्सी बचाने की लड़ाई थी. इस लडाई में अंतिम तौर पर यह देखा गया कि वो शासन घूम-फिर के उनके पास ही वापस चला गया जिनसे छीनने के लिए यहां सारा चक्रव्यूह रचा गया था. गुजरात में बीजेपी की शानदार जीत के बाद यह बातें भी सामने आ रही हैं कि राहुल गांधी से मोदी की तुलना करना क्या सही है? आखिरकार किस बिना पर यह तुलना की जा रही है? क्या लोग कांग्रेस जैसा वंशवाद भाजपा में भी पाने लगे हैं? शायद नहीं यह कांग्रेस की धरोहर है और उसी को इसे संचालित करने में महारत हासिल है.
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राहुल जी के पीछे हम हैं ना!!: कांग्रेस की एक विशेषता हमेशा से ही रही है कि अगर किसी ने भी सोनिया गांधी या राहुल गांधी के बारे कोई टिप्पणी की तो पूरी पार्टी उसका जवाब देने के लिए सामने आ जाती है जो अन्य राजनैतिक दलों में देखने को नहीं मिलता है. भले ही व्यक्तिवाद या व्यक्तित्व के करिश्मे का असर कम हो चला हो पर सबसे विशाल दल के सभी सदस्यों का समान रूप से विश्वास हासिल होना राहुल की सबसे बड़ी ताकत है, पर इसका कोई खासा फायदा राहुल उठाते हुए कभी नजर नहीं आए हैं. राजनीति के किसी भी क्षेत्र में वो अभी तक खुद को साबित करने में असफल ही रहे हैं. तुलना करते हुए इस बात का भी सारे प्रकार के बातों में ख्याल रखा गया है. इस तुलना के विरोध में कांग्रेस यह कह रही है कि ना ही हम भाजपा की तरह जातिवाद के बल पर राजनीति करते हैं और ना ही अल्पसंख्यकों को उनके हक़ से वंचित रखते हैं फिर तो यह तुलना करना व्यर्थ ही है.
कोई बात नहीं हम तो खुश हैं: कांग्रेस भले ही अपनी सत्ता कायम करने में गुजरात में नाकाम रही है पर उसे खुशी इस बात की है कि उसके वोट के प्रतिशत में वृद्धि अवश्य हुई है. हिमाचल के चुनाव और गुजरात के चुनाव के परिणाम में अंतर मात्र यही है कि कांग्रेस भले ही थोड़ी इज्जत बचाने में सफल रही है पर भाजपा गुजरात के अलावा हिमाचल में अपना कोई खास प्रभाव दिखाने में असफल रही है. यह असफलता क्या सही मायनों में खुशी दे पाएगी जिसकी चादर ओढ़ कर दोनों दल अपनी लाज बचा रहे हैं. अगर साफ लफ्जों में कहा जाए तो गुजरात में ना तो कांग्रेस हारी है और ना ही भाजपा की जीत हुई है वहां मात्र नरेन्द्र मोदी की जीत हुई है.
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