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पदोन्नति में आरक्षण अवैध है !!

राजनीति का काम है रंग बदलना. यह कब और किस रंग में आपके सामने आएगी इसके बारे में तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. तरह-तरह के मुद्दों पर अपनी बात रखना और प्रतिवाद करना भारतीय राजनीति का एक अभिन्न अंग रहा है. असल में भारत की राजनीति पूरी तरह से कुछ शर्तों पर टिकी हुई है, यहां मात्र विशिष्ट लोग ही अपना पक्ष नहीं रखते हैं बल्कि आम जनता को भी पूरा हक है अपनी बात कहने का. वह समय-समय पर अपने इस अधिकार का प्रयोग करती भी है.

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एक और नई समस्या: उत्तर प्रदेश की राजनीति भी कुछ अलग ढंग की है. इसका कुछ अंश गुजरात की वर्तमान सियासत से मिलता है, जहां दो वर्ग हैं और दोनों वर्गों के बीच जातिवाद  जातिवाद जैसा मुद्दा खड़ा है. वर्तमान स्थिति में उत्तर प्रदेश के लाखों गैर दलित सरकारी कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं. मांग के आधार पर कहा जाए यह मुद्दा पदोन्नति में आरक्षण से जुड़ा है, जिसके अंतर्गत जो सुविधा एक दलित सरकारी कर्मचारी को मिलती है वो गैर दलित सरकारी कर्मचारी को नहीं मिलेगी. एक विरोधाभास और अलगाववाद के स्थिति की सृष्टि हो रही है जो कि भविष्य की राजनीति और जनता के लिए गलत साबित हो सकती है. जिस रूप में राजनीति की जा रही है उसका कहीं ना कहीं उसके परिणामस्वरूप राज्य में और वृहद रूप में तनाव पैदा होगा. एक वर्ग जो खुद को हमेशा ही कमजोर समझता है और यह भी समझता है कि उसके ऊपर अत्याचार किया जाता है वो कभी भी पूर्ण रूप से राज्य के विकास में शामिल नहीं हो पाएगा. उत्तर प्रदेश में गैर दलित और गुजरात में अल्पसंख्यक मुसलमान इसी धारणा से लिप्त रहते हैं.


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हड़ताल: इस पूरे धरना प्रदर्शन में एक बात कुछ अलग देखने को मिल रही है कि सरकार अभी तक इस पूरे मामले में नरम रुख अपना रही है. शायद मौजूदा सरकार अपना हित साधने में लगी हुई है. मायावती के शासन काल में दलितों के प्रति किए गए कार्य और गैर दलितों को दरकिनार किया जाना भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है. जिस प्रकार यह धरना प्रदर्शन चल रहा है वो इस बात की ओर मजबूती से संकेत दे रहा है कि आने वाले समय में इन सभी विरोधाभासों की वजह से हालात और खराब होने वाले हैं. हड़ताल कर्मचारियों ने सुबह से ही कई दफ्तरों में ताला बन्द कर काम रोक दिया औए धरना प्रदर्शन में जुट गए. हड़ताल पर गए कर्मचारी एक जुलूस निकालकर विधानसभा के सामने धरना प्रदर्शन पर बैठ गए, रास्ते में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ कुछ विरोध पर उनके झंड़े फाड़ने के मामले भी सामने आए हैं.


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मुद्दा: यह प्रमुख मुद्दा राजनीति से ही ताल्लुक रखता है. मुख्य तौर पर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के नियमों और सोच का ही परिणाम है यह आंदोलन. एक खास वर्ग के लिए काम करना उनके स्वार्थ को साधना और दूसरे को उनके हक से वंचित रखना भी एक कारण है जो आज अपने रंग दिखा रहा है. जिस तरह गेहूं के साथ-साथ घुन भी पिसता है उसी तरह यहां दो राजनैतिक गुटों के के मतभेद में जनता पिस रही है. वैसे जनता हमेशा से ही इस तमाशबीन राजनीति के लिए दावत बनती आई है अब देखना है इस बार क्या होता है?



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