राजनीति में उन योद्धाओं की कहानी हमेशा सुनाई देती रहेगी जो पूर्ण रूप से सत्ता पर अपना अधिकार रखते हैं और जिन्हें किसी बात का भी डर नहीं रहता. ऐसे राजनेता मात्र अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए तत्पर रहते हैं. राजनीति में जितना जरूरी अपने वर्चस्व को बनाए रखना है उतना ही जरूरी है जन प्रतिनिधित्व हासिल करना. जनता के हर एक आयाम से खुद को जोड़ना भी वर्तमान राजनीति में बने रहने के लिए लाभप्रद होता है. ऐसे कई सारे मौके आते हैं जब अपने आप को साध कर सीमित रखना और सही मौके का इंतेजार करना जरुरी हो जाता है. गुजरात के लिए सबसे बड़े नेता सिद्ध हुए नरेन्द्र मोदी भी कुछ हद तक इन्हीं नियमों का पालन करते दिखते हैं.
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कैसे बने नरेन्द्र मोदी: नरेन्द्र मोदी अपने आप को कैसे आज तक गुजरात की राजनीति में बनाए हुए हैं यह बात कुछ हद तक मोदी की क्रियाशीलता और राजनैतिक समझ पर ही निर्भर करती है. किसी के लिए भी आसान नहीं होता की राजनीति जैसे महान रण में खुद को लगातर बनाए और बचाए रखे. भले ही नरेन्द्र मोदी पर कई सारे ऐसे आरोप और दाग लगे हैं जो आजीवन उनका पीछा करते रहेंगे पर आज की राजनीति में किसके ऊपर दाग नहीं लगता? क्या कोई भी ऐसा है जो इस दलदल में रह कर भी आजतक बेदाग रहा है? गुजरात की राजनीति जब एक समय एक खास वर्ग के लिए जानी जाती थी और जहां दूसरा वर्ग एक पीड़ित की अवस्था में था, अपनी गलती को सुधारते हुए नरेंद्र मोदी ने दोनों वर्गों को साथ मिलाने का प्रयास किया. इस प्रयास को सद्भावना का नाम देते हुए शुरु किया गया पर इससे कोई खास भावना की सृष्टि नहीं हुई बल्कि यह एक मुद्दे का रूप लेकर फैल गया. अपनी क्रियात्मकता के आधार पर नरेन्द्र मोदी ने कुछ हद तक इसे संभालने की कोशिश की पर वो आंशिक रूप से असफल रहें.
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झटका मिल सकता है: इतने बड़े योद्धा हो कर भी कोई चैन से नहीं रह सकता है, यहीं राजनीति की कहानी है. नरेन्द्र मोदी भी कुछ ऐसे ही संशय में फंसे हुए हैं. नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए ऐसे कई लोगों ने साजिश रची है. इसमें मुख्य रूप से अहमद पटेल का नाम आता है. अहमद पटेल एक ऐसा नाम है जो कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बाद सशक्त रूप से लिया जाता है. अहमद पटेल साल 1977 से 1989 तक तीन बार भरूच से लोकसभा सांसद रह चुके हैं. इसके बाद वो पिछले चार बार से राज्य सभा के सदस्य हैं. इनका नाम अमर सिंह के साथ कैश-फॉर-वोट घोटाले में सामने आया. यह एक ऐसा चेहरा है जो सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार के रूप में भी जाना जाता है. इससे भी इनकी अवस्था एक काबिल और महत्वपूर्ण नेताओं की सूचि में गिना जाता है. पहले कभी भी नरेन्द्र मोदी चुनाव के समय प्रचार करते हुए प्रांतिय नेताओं के नाम के साथ छेड़छाड़ नहीं करते थे पर अब शायद उन्हें भी लग रहा है कि अहमद पटेल उनको चुनौती देने के योग्य हैं. पहले की बात करें तो यह देखा गया है कि वो प्राय: सोनिया मैडम और राहुल “युवराज” ने नाम के साथ ही अझुराए मिलते थे पर अब शायद उन्होंने भी यह जान लिया है कि प्रांत में भी उनके खिलाफ आवाज बुलन्द हो रही है.
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शक्ति प्रदर्शन: चुनावी बज़ार में शक्ति-प्रदर्शन आवश्यक होता है. इसी पर पूरी तरह से चुनाव के परिणाम निर्भर करते हैं. कुछ और तथ्य जरुर हैं जिनपर भी चुनाव के परिणाम निर्भर करते हैं पर शायद उनको बोलना सही नहीं होगा. कुछ बातें अपनों तक सीमित रहें उसी में सब की भलाई है. नरेन्द्र मोदी जितना अपने विकास के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा उन बातों को लेकर वो सुर्खियों में छाए रहते हैं जिसे आरोप कहते है. विवादों की मार झेलते नरेन्द्र मोदी जिस प्रकार अभी तक अपने आप को दबंग साबित करते आए हैं क्या इस बार भी वो ऐसा करने में कामयाब रहेंगे? उनके खिलाफ बोलने में जहां भारत के प्रधानमंत्री भी नहीं चूकतें, ऐसे में कैसे वो अपनी कुर्सी को बचा पाएंगे? अपनी छवि को विकास के नाम से बचाने वाले नरेन्द्र मोदी पर अभी भी कई तरह के विकास से जुड़े सवाल दागे जा रहें हैं.
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