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यहां मोदी का जादू क्यूं नहीं चलता?

सत्ता में बने रहने और सत्ता में आने की जंग छिड़ी हुई है. दोनों पक्ष अपनी पूरी ताकत झोंक देने को उतारू हो गए हैं. चुनावी सरगर्मियां बहुत कुछ ऐसा कर जाती हैं जिनका किसी को कभी अंदेशा भी नहीं रहता है. राजनीति कब अपने तेवर तल्ख कर ले या कब किसी के ऊपर मेहरबान हो जाए किसी को पता नहीं है. गुजरात में अभी पूरी तरह से चुनावी बाजार छाया हुआ है. आज चुनाव का पहला चरण है और अभी से ही राजनैतिक विद्वानों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया है. सबसे प्रमुख बात यह है कि क्या पुराने समीकरण को बचाने में नरेन्द्र मोदी सफल रहेंगे या इस बार चुनाव के बाद कुछ नए चेहरे गुजरात की राजनीति में देखने को मिलेंगे?


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आंकड़े क्या वही रहेंगे?: अब जब चुनाव का समय आ ही गया है तो इसपर चर्चा भी खुल कर की जानी चाहिए. एक ओर जहां नरेन्द्र मोदी फिर से सत्ता में बने रहने के लिए परिश्रम कर रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी तथ्य सामने आ रहे हैं जो उनके लिए मुसीबत का कारण बन सकते हैं. भले ही चुनावी प्रचार में एक से बढ़ कर एक नए स्वप्न दिखाए गए पर अब वक्त आ गया है जहां जनता अपनी ताकत का प्रयोग कर सियासतदारों का चुनाव करेगी. यह हक तो हमेशा से ही जनता के पास रहा है पर ना जाने वह क्यों इसका प्रयोग सही तरीके से नहीं कर पाती है. यह शायद ही जनता की गलती हो पर कहीं ना कहीं यह भी लगता है कि उसे मजबूर किया जाता रहा है अपने हक से वंचित रहने के लिए. नरेन्द्र मोदी ने भले ही एक बड़े स्तर पर गुजरात के विकास में अपना योगदान दिया है पर एक वर्ग या एक पक्ष ऐसा भी है जो उनसे हमेशा रुष्ट ही रहा है. अल्पसंख्यक वर्ग के लिए गुजरात में परेशानियां हैं ऐसा कहा जाता रहा है, जो कहीं ना कहीं गुजरात के पूर्ण विकसित राज्य कहे जाने के ऊपर सवालिया निशान लगाता है.


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उन प्रांतों का क्या: गुजरात के कुछ ऐसे प्रांत हैं जिन पर हमेशा ही विपक्ष अपनी आवाज बुलन्द करता आया है. कुछ ऐसे नए-नए सवाल सामने आ रहे हैं जो नरेंद्र मोदी की मुसीबत को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं. जहां सौराष्ट्र में पानी की मार से जनता बेहाल है, वहीं कुछ ऐसे भी घटक हैं जो अपना निजी हित साधने के लिए मोदी की ओर बढ़ते नज़र आ रहे हैं. पानी की दिक्कत कुछ ऐसी है जो उन सारे प्रांतों को प्रभावित करती है जिससे खुद मोदी भी बच नहीं पाए हैं.प्रधानमंत्री का तो यहां तक कहना है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात में विभाजनकारी राजनीति कर रहे हैं, जो राज्य के विकास में अवरोध का कारण बनता जा रहा है. विकास का लाभ एक विशिष्ट वर्ग को ही मिल पा रहा है जो राज्य के विकसित होने पर सवाल उठाते हैं. मोदी ने यह बात फैलाई थी कि वो कट्टरवाद को परे रखते हैं परंतु इस बार भी उनका यह कथन सफल नहीं हुआ. इस बार की तालिका में एक भी मुस्लिम व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है. यह सब एक प्रखर कारण के रूप में उभर के आने वाला है गुजरात के चुनाव में और अब यह देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस किस तरह से इन सब का फायदा उठाती है और भाजपा किस तरह से अपने आप को फिर से गुजरात के लिए सक्षम सिद्ध कर पाती है.


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पूर्वानुमान: चुनाव के पहले चरण में यह तय करना काफी मुश्किल काम है कि किस तरफ का पलड़ा ज्यादा भारी होगा पर जहां तक मोदीवाद की बात आती है तो यह कहना थोड़ा आसान रहेगा की अपने अनुभव से मोदी कुछ ना कुछ तो जरुर हासिल करेंगे. विपक्ष भले ही उतनी मजबूत स्थिति में ना हो पर भाजपा का अंतरद्वन्द भी एक अहम मसला है जो चुनाव के आंकड़ों को प्रभावित कर सकता है.



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